
-पी के आहूजा-
कोटा में दो दिन में ट्रक से दो दुर्घटनाओं में पुलिस के दो कांस्टेबलों की मौत हो चुकी है और एक कांस्टेबल गंभीर घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती है। इनमें एक महिला कॉन्स्टेबल है। एक अन्य घायल भी महिला कॉन्स्टेबल है । बुधवार को स्कूटी सवार महिला कांस्टेबल को ट्रक ने पीछे से टक्कर मारी थी जबकि आज गुरूवार को स्कूटी सवार सेंट्रल जेल में जेल प्रहरी के पद पर कार्यरत कांस्टेबल बलबीर सिंह गुर्जर और महिला कांस्टेबल सीमा की स्कूटीे माला फाटक फ्लाई ओवर में ट्रक के अचानक पीछे आने से चपेट में आ गई। होने को यह दो सामान्य दुर्घटनाएं हैं क्योंकि भारत विश्व में सड़क दुर्घटनाओं के मामले में बहुत बुरी स्थिति में है।

इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन कोटा में दो दिन में ट्रक की चपेट में आने से दो कांस्टेबलों की मौत कुछ अलग हटकर मानी जा सकती है। इसमें ट्रक चालक या स्कूटी सवार किस की गलती थी इसका पता तो पुलिस जांच में चलेगा लेकिन चिंता जनक सवाल यह है कि दिन के समय शहरी सीमा में ट्रक कैसे घुस आते हैं। प्रशासन ने जब शहर में भारी वाहनों की आवाजाही का समय तय कर रखा है तब ये दोनों ट्रक शहरी सीमा में कैसे आ गए। इन ट्रक को रोकने की जिम्मेदारी किस की है और यदि सम्बंधित अधिकारी, प्रशासन या व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार है तो अब तक उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।
घर से निकलने के बाद पता ही नहीं चलता कि जिस तरफ उसे जाना है वहां ट्रेफिक की क्या स्थिति है
दो छोटे बच्चों की मां महिला कांस्टेबल की बधवार को ट्रक की चपेट में आकर मौत के बाद सोशल मीडिया पर प्रबुद्ध नागरिकों ने यह सवाल उठाया लेकिन अफसोस यह है कि जिस गंभीरता को आम जन समझ रहा है उस पर पुलिस, प्रशासन और जन प्रतिनिधियों की नजर नहीं है। स्मार्ट सिटी योजना के तहत में पूरे शहर में बड़े पैमाने पर काम हो रहे हैं। जहां देखो भारी भरकम मशीनें काम में लगी हैं। लोग परेशान हैं, बार-बार जाम लगता है। घर से निकलने के बाद पता ही नहीं चलता कि जिस तरफ उसे जाना है वहां ट्रेफिक की क्या स्थिति है। आज जहां से निकले हैं जरुरी नहीं कल भी वहां से निकलने का रास्ता होगा पता नहीं।
सम्बंधित अधिकारी यह तक नहीं देखते की काम की क्वालिटी क्या है

बारिश हो जाए तो कहने ही क्या। सड़क पर पता ही नहीं चलता कि किस जगह गड्ढा या नाली खोदी गई है। पैदल या दुपहिया वाहन सवार उसमें गिर कर चोटिल हो जाए तो किसी को कोई मतलब नहीं। जब तक घायल की स्थिति गंभीर नहीं हो मामला नोटिस में नहीं आता। घायल खुद ही मरहम पट्टी कराकर ईश्वर का धन्यवाद अदा कर देता है कि कम से कम उसकी जान बच गई। प्रशासन ने टूटी फूटी और गिट्टियों से भरी सड़कों के पेच वर्क कराने का अभियान शुरू किया लेकिन अफसोस इसकी क्वालिटी को देखने वाला कोई नहीं है। चम्बल गार्डन से सीएडी रोड की ओर सड़क का पेचवर्क या दादाबाड़ी में जगह-जगह किया पेचवर्क इसका उदाहरण है। वाहन चालक गड्ढों या उखड़ी गिट्टियों से बचने के लिए प्रयास करते हैं और सामने या पीछे से आ रहे वाहन से टकरा जाते हैं। इसमें मूल समस्या सड़क की खराबी की है लेकिन इसकी ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। सम्बंधित अधिकारी यह तक नहीं देखते की काम की क्वालिटी क्या है नहीं तो पूरे शहर में सड़कों की इतनी बुरी स्थिति नहीं होती । सम्भवतया यह पहला मौका है जब पूरे शहर में एक भी सड़क चलने योग्य नहीं बची है।
ट्रेफिक को डायवर्ट या सुरक्षित निकालने के लिए ट्रेफिक पुलिस की व्यवस्था की जाए
स्मार्ट सिटी और सीवरेज लाइन के कामों को लेकर इन मशीनों के काम के बीच से ही ट्रेफिक निकलता रहता है। कोई यह देखने वाला नहीं कि जहां जेसीबी मशीनें और अन्य उपकरणों से काम हो रहा है वहां तो ट्रेफिक को डायवर्ट या सुरक्षित निकालने के लिए ट्रेफिक पुलिस की व्यवस्था की जाए लेकिन शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जहां यह व्यवस्था है। वाहन चालक या काम में लगी जेसीबी जैसी मशीन के चालक की मामूली चूक भी बड़ी दुर्घटना को जन्म दे सकती है। सवाल यह है कि क्या इस तरह के काम रात को नहीं किए जा सकते जब सड़कों पर ट्रेफिक न के बराबर होता है या सुबह और शाम को पीक ऑवर में इस काम को नहीं रोक दिया जाना चाहिए ताकि दुर्घटना की आशंका नहीं रहे।
कोई सुरक्षित नहीं है
दो दिन में दो कांस्टेबलों की दुर्घटनाओं में मौत पुलिस और प्रशासन के लिए गंभीर चेतावनी का संकेत होना चाहिए क्योंकि जो हालात बन रहे हैं उसमें कोई सुरक्षित नहीं है। इसलिए सड़कों की मरम्मत से लेकर ट्रेफिक तक सब कुछ व्यवस्थित किया जाना चाहिए नहीं तो पता नहीं कब तक लोग असमय मौत के शिकार होंगे जिसमें कोई बच्चा अनाथ होगा तो किसी का सुहाग उजड़ेगा । किसी माँ -बाप के लिए घर का रोजी रोटी का एक मात्र सहारा छिन जाएगा।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और व्यवसायी हैं)