-जल्द होंगे महाराष्ट्र की सत्ता की राजनीति से बेदखल !
-कृष्ण बलदेव हाडा-

अब एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री क्यों बने रहें? यह सवाल आज महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य के लिए काफ़ी अहम हो गया है क्योंकि अब हमेशा सत्ता पर कब्जा करने की जुगत में लगी रहने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए एकनाथ शिंदे अपनी अहमियत-प्रासंगिकता खो चुके हैं।
भारतीय जनता पार्टी को जब महाराष्ट्र में तख्तापलट करना था तो अपनी जरूरत होने के कारण एकनाथ शिंदे के अल्पमत में होते हुए भी भाजपा उन्हें बहुमत में ले आई ताकि शिव सेना को सबक सिखाया जा सके लेकिन अब अजित पवार का साथ मिलने के बाद खुद भारतीय जनता पार्टी बहुमत में है तो ऐसे में वह अल्पमत वाले एकनाथ शिंदे को क्यों ढोये? इसलिए महाराष्ट्र में जल्दी ही एक और तख्तापलट देखने को मिलना तय है।
इस साल के अंत तक तीन प्रमुख राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा वैसे भी महाराष्ट्र जैसे देश के प्रमुख राज्य की सत्ता पर एक बार फिर से काबिज होने के लिए पिछले काफी समय से छटपटा रही है और उनकी इस तड़प-कसक की एक बड़ी वजह यह भी है कि उनके पास में मौजूदा विधानसभा में एक मात्र पार्टी के रूप में सबसे अधिक विधायक होने के बावजूद कुछ महीने पहले उन्हें शिव सेना अौर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करके आए अल्पमत वाले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में कबूल करना पड़ा था और पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस अपमानित होने के बावजूद सत्ता में बने रहने की खातिर शिन्दे सरकार में उप मुख्यमंत्री बनने को राजी हो गए थे।
अजित पवार के एनसीपी से बगावत बाद एक बार फिर से भाजपा अपनी येन-केन-प्रकारेण सत्ता की बागडोर अपने हाथ में रखने की चिर-परिचित राजनीति के तहत अब एकनाथ शिंदे को बेदखल करने पर आमादा है और नतीजा जल्दी सामने होगा। वैसे भी दूसरे छोटे क्षैत्रीय राजनीतिक दलों का सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करने की आदी हो चुकी भारतीय जनता पार्टी की यह पुरानी फितरत रही है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अब किसी दोराहे, तिराहे या चौराहे पर नहीं खड़े हैं बल्कि एक अंधी गली के मुहाने पर हैं और उनके पास ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं बचे है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को छोड़कर वह आ चुके हैं और अब वहां लौट पाने की स्थिति में इसलिए नहीं है कि भले ही उन्होंने शिवसेना के ज्यादातर विधायकों को अपने पक्ष में तोड़ लिया हो मगर इससे महाराष्ट्र के शिवसेना समर्थकों में एकनाथ शिंदे के प्रति गहरी नाराजगी है और शिंदे के इस कृत्य के बाद महाराष्ट्र के लोगों में बड़े पैमाने पर उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति की लहर है जिसका निश्चित रूप से असर आने वाले चुनाव पर पड़ने वाला है।
शिंदे के पास दूसरा और आखिरी विकल्प यह है कि वे सत्ता छोड़ दे और भविष्य में बनने वाली भाजपा की सरकार का हिस्सा बने रहने को मजबूर हो जाएं या फिर बाहर से समर्थन दे लेकिन यह इतना आसान नहीं है क्योंकि शिवसेना छोड़कर उनके साथ आए विधायक किसी ने किसी पद के लालच में ही उनके साथ जुड़े हैं,बाहर से समर्थन देने के लिए नहीं। अजित पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से अलग होने के बाद अब महाराष्ट्र विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी 105 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है जबकि शिंदे गुट के पास 40 विधायक हैं और लगभग नौ विधायक अजित पवार के खेमे में है। ऐसे में यह तय है कि आने वाले कुछ दिनों में प्रदेश में भाजपा अपनी सरकार बनाने का दावा पेश करेगी। ऐसे ही में या तो एकनाथ शिंदे फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार रहें या भाजपा के आगे समर्पण कर दे जिसकी संभावना ज्यादा है क्योंकि उनके 16 विधायकों पर अयोग्य घोषित होने की तलवार पहले से ही लटकी हुई है और वैसे भी भाजपा के खिलाफ जाने वाले राजनेताओं पर प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो के छापे की तलवार तो हमेशा ही लटकी रहती है जिसके दबाव के चलते ही अजीत पवार और छगन भुजबल जैसे लोग शरद पवार के प्रति अपनी निष्ठा को त्यागकर भाजपा के सहयोग से बनी एकनाथ शिंदे की सरकार के पक्ष में खड़े हुए हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
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