
-किशन सनमुखदास भावनानी-
वैश्विक स्तर पर अशांति के प्रतीक प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, हिरोशिमा नागासाकी में परमाणु बम का उपयोग, सदियों पूर्व राजाओं महाराजाओं द्वारा अन्य राज्यों पर आक्रमण कर उन पर कब्जा करना, अंग्रेजों द्वारा भारत पर आधिपत्य स्थापित करना ऐसे अनेकों उदाहरण अशांति के प्रतीक के रूप में आज इतिहास में दर्ज हैं जिसमें लाखों मनीषियों की जनहानि, आर्थिक चोटें प्राकृतिक संसाधनों पर विपरीत प्रभाव सहित अनेकों हानियों को सहन करने की गवाह परिस्थितियां रही हैं। इसलिए शांति की ओर कदम बढ़ाने की जरूरत पड़ी और संयुक्त राष्ट्र ने 21 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस के रूप में घोषित किया, जो हर वर्ष अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2022 की थीम जातिवाद खत्म करें, शांति का निर्माण करें तय किया गया है।

सफेद कबूतर शांति का दूत
जीवन का प्रमुख लक्ष्य शांति और खुशी प्राप्त करना है, जिसके लिए मनुष्य निरंतर कर्मशील तो है लेकिन शांति के लिए प्रयासरत नहीं। विश्व स्तर पर शांति बनाए रखने के लिए इस दिवस को मनाए जाने पर मोहर लगी थी, परंतु वर्तमान में कहीं भी शांति के हालात नजर नहीं आते। इस विशेष दिवस के जरिए दुनियाभर के देशों और नागरिकों के बीच शांति के संदेश का प्रचार-प्रसार करने के लिए यह दिन मनाया जाता है। सफेद कबूतर को शांति का दूत माना जाता है। इसलिए दुनियाभर में शांति का संदेश पहुंचाने के लिए विश्व शांति दिवस पर सफेद कबूतरों को उड़ाकर शांति का पैगाम दिया जाता है तथा एक-दूसरे से भी शांति कायम रखने की अपेक्षा की जाती है।
नस्लवाद और नस्लीय भेदभाव से मुक्त दुनिया
पूरा विश्व, समस्त देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए प्रयासरत,इसके लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा कला, साहित्य, सिनेमा तथा अन्य क्षेत्र की मशहूर हस्तियों को शांतिदूत के तौर पर नियुक्त भी किया गया है। 2022 की थीम जातिवाद खत्म करें, शांति का निर्माण करें, रखी गई है। इसका मतलब दुनिया में एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जो किसी भी जाति का हो, सभी के साथ समान व्यवहार करना तथा जो सही मायने में शांति प्राप्त करने के लिए ऐसे समाज के निर्माण की आवश्यकता को भी दर्शाता है। इसलिए अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से विश्व में शांति कायम करना ही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है। यूएन का आव्हान है, हम नस्लवाद और नस्लीय भेदभाव से मुक्त दुनिया की दिशा में काम कर रहे हैं। एक ऐसी दुनिया जहां करुणा और सहानुभूति संदेह और घृणा को दूर करती है। एक ऐसी दुनिया जिस पर हम वास्तव में गर्व कर सकते हैं। शांति को बढ़ावा देने में हम सभी की भूमिका है। और नस्लवाद से निपटना योगदान करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। हम उन ढांचों को तोड़ने के लिए काम कर सकते हैं जो हमारे बीच में नस्लवाद की जड़ें जमाती हैं। हम हर जगह समानता और मानवाधिकारों के लिए आंदोलनों का समर्थन कर सकते हैं। हम अभद्र भाषा के खिलाफ बोल सकते हैं। हम शिक्षा और सुधारात्मक न्याय के माध्यम से नस्लवाद विरोध को बढ़ावा दे सकते हैं।
अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से शांति के आदर्शों को मजबूत करने के लिए समर्पित दिन
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से शांति के आदर्शों को मजबूत करने के लिए समर्पित दिन के रूप में घोषित किया है। लेकिन सच्ची शांति प्राप्त करने के लिए हथियार डालने से कहीं अधिक की आवश्यकता होती है। इसके लिए ऐसे समाजों के निर्माण की आवश्यकता है जहां सभी सदस्यों को लगता है कि वे फल-फूल सकते हैं। इसमें एक ऐसी दुनिया बनाना शामिल है जिसमें लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाता है, चाहे उनकी जाति कुछ भी हो। जैसा कि यूएन महासचिव ने कहा है, जातिवाद हर समाज में संस्थाओं, सामाजिक संरचनाओं और रोजमर्रा की जिंदगी में जहर घोल रहा है। यह लगातार असमानता का चालक बना हुआ है। और यह लोगों को उनके मौलिक मानवाधिकारों से वंचित करना जारी रखता है। यह समाजों को अस्थिर करता है, लोकतंत्रों को कमजोर करता है, सरकारों की वैधता को नष्ट करता है, जातिवाद और लैंगिक असमानता के बीच संबंध अचूक हैं।
भारत का योगदान
वैश्विक स्तर पर भारत शांतिपूर्ण विचारों के लिए जग प्रसिद्ध है। अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी जैसे महामानव की जन्मस्थली भारत को अनेक बार शांतिदूत की संज्ञा दी जाती है। भारत हमेशा शांति चाहता है परंतु वर्तमान परिस्थितियों में पड़ोसी मुल्क विस्तार वादी देश सहित कुछ देश भारत की शांति को अशांत करने की कोशिशों में जुड़े हुए हैं परंतु उनके देशों में ही अशांति बढ़ती जा रही है, इसकी ही बड़े बुजुर्गों की कहावत सटीक बैठती है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है और खुद ही उस गड्ढे में गिरता है। भारत श्शांति सुदृढ़ीकरण की योजना का समर्थन करता है। भारत 1950 से लेकर अबतक संयुक्त राष्ट्र में लगभग 195,000 सैनिकों का योगदान दिया है, जो किसी भी देश से सबसे बड़ा है योगदान है।
पूर्व पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा विश्व शांति के लिए दिए गए पांच मूल सिद्धांतों की करें तो, जिन्हें पंचशील के सिद्धांत कहा गया। (1) एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना। (2) एक दूसरे के विरूद्ध आक्रमक कार्यवाही न करना। (3) एक दूसरे केआंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना। (4) समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना। (5) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना। यह पांच बिंदुओं का अमल कर पूरे विश्व में शांति कायम रखी जा सकती है।
शांति दिवस की शुरुआत 1982 से
अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस के इतिहास की करें तो इसकी शुरुआत 1982 से हुई थी। 1982 से लेकर 2001 तक सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस या विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता था, लेकिन सन 2002 से इसके लिए 21 सितंबर की तरीख निर्धारित कर दी गई। तब से लेकर आज तक हर वर्ष 21 सितंबर के को विश्व शांति दिवस मनाया जाता।
(लेखक – कर विशेषज्ञ, स्तंभकार एडवोकेट)