
-डॉ साकेत गोयल-
(वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ)
मैं नये कोटा से बोल रहा हूँ … एक कहानी से शुरू करता हूँ। एक व्यक्ति ने अपने अथिति कक्ष का पुनुद्धार शुरू किया … बहुत जिज्ञासा और शौक़ से उसने उस कक्ष को सजाया … जब ये सजावट साकार हुई तो देखने लायक़ थी। इतनी ख़ूबसूरत, की अब उस व्यक्ति को किसी अथिति का आना जाना अखरने लगा … आख़िर सजावट को मैला होने से बचाना था। आज उस अथिति कक्ष को ताला लगा हुआ है।
नये कोटा के सभी बाशिंदे 4 साल से आईएल कॉलोनी में अपनी सुबह की सैर का त्याग कर बेसब्री से हरियाली को सज़ते देख रहे थे। हर दिन का इंतज़ार जब कुछ सालों में पूरा हुआ तो भी, कुछ महीने नया कोटा, चारदीवारी के बाहर से उद्घाटन और नियमों के इंतज़ार में अपनी हरियाली को निहारता रहा। लेकिन ऑक्सीजन पर तो टिकट लग गया … वो भी निश्चित समय सारणी में। सुबह की सैर तो नये कोटा को पशुओं के बीच में, टूटी सड़कों और बनती इमारतों के मलबे के बीच ही करनी होगी … ऐसा फ़रमान हो गया। रही सही कसर इस पार्क के आस- पास पर्यटन की भीड़ ने इस ऑक्सी-ज़ोन से टैक्सी-ज़ोन बना कर पूरी कर दी।
कोई तो प्रशासन में जाग कर नये कोटा की प्रबल इच्छा को पहचाने। अर्रे … हमारी नहीं तो इस ऑक्सी-ज़ोन की अभिलाषा ही सुन लो भाई –
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चाह नहीं मैं छपूँ न्यूज़ में पर्यटन पर इतराऊँ।
चाह नहीं मैं कश्मीर के शिकारे यूँ चलवाऊँ।
मुझे चाहिए मैं शहर की सेहत का रखवाला बन जाऊँ।
सुबह-सुबह कोटा चले तो ऑक्सी-ज़ोन मैं कहलाऊँ।