
-कृष्ण बलदेव हाडा-
Mr Prime Minister.
India has long prided itself on being the world’s largest democracy, but many human rights groups say your government has discriminated against religious minorities. The critics have been silenced. You are here today in the White House where many world leaders have reiterated their commitment to protect democracy. What steps are you and your government going to take to better the rights of Muslims and other minorities and to protect free speech?
यानि
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर,
भारत लंबे समय से दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र होने पर गर्व करता रहा है लेकिन कई मानवाधिकार समूहों का कहना है कि आपकी सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया है। आलोचकों को चुप कराया गया है। आप आज यहां व्हाइट हाउस में है जहां विश्व के कई बड़े नेताओं ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। आप और आपकी सरकार मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बेहतरी और आजाद अभिव्यक्ति की रक्षा करने के लिए क्या कदम उठाने जा रही है?
आखिर यही सवाल ‘यक्ष प्रश्न’ बनकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा हो ही गया जिससे बचने के लिए करीब नौ साल पहले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के शासन प्रमुख बनने के बाद से ही जवाब देने से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक कभी भी देश में कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की जबकि देश में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर श्री मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य भार संभालने के पहले के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह तक पत्र सूचना कार्यालय के माध्यम से या तो सालाना या जरूरी अवसरों पर संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करने की अघोषित परंपरा का अनुसरण करते आये है जिसका निर्वहन करने से श्री मोदी इसलिए ही अब तक बचते रहे हैं कि कही कोई पत्रकार यह यक्ष सवाल उनके सामने खड़ा नहीं कर दे, जैसा कि उनकी इस अमेरिका यात्रा के दौरान
एक अमेरिकी पत्रकार ने उनसे पूछकर खड़ा कर ही दिया।प्रधानमंत्री के रूप में देश और विदेश में नरेंद्र मोदी की यह पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। हालांकि श्री मोदी के सलाहकारों ने अपने प्रधानमंत्री को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बचाने की हर संभव कोशिश की और यह कहते रहे कि परम्परा के अनुसार प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करके व्हाइट हाउस में केवल एक संयुक्त बयान जारी किया जाएगा लेकिन उसमें कोई सवाल-जवाब नहीं होंगे, लेकिन जब अमेरिकी मीडिया का दबाव बना तो इस बात पर सहमति हुई कि दोनों देशों यानी अमेरिका और भारत के पत्रकारों की ओर से केवल दो-दो ही सवाल किए जाएंगे। इस सहमति के बाद ही यह प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी और इसमें भी केवल दो ही सवाल पूछने की अनुमति दी गई थी। नरेंद्र मोदी से यह अनुत्तरित ‘यक्ष प्रश्न’ अमेरिका के प्रमुख अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल की महिला संवाददाता सबरीना सिद्दीकी ने आखिर पूछे लिया। यह दीगर बात है कि सवाल की मूल आत्मा का जवाब देने के बजाय नरेंद्र मोदी लोकतंत्र की व्याख्या करने बैठ गए और सवाल यथावत रह ही गया।
देश के जाने-माने टीवी एंकर रवीश कुमार के शब्दों में कहा जाए तो इस प्रश्न को पूछे जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालत ऎसी किसी छात्र जैसी हो गई थी जिससे किसी अध्यापक ने कोई प्रश्न पूछ लिया हो। उनसे इस सवाल का जवाब देते नहीं बन रहा था। स्टेट गेस्ट की हैसियत से अमेरिका की यात्रा पर जाने से पहले परंपरा के अनुसार अमेरिका के इसी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल के तीन पत्रकारों के समूह ने अपने आधे घंटे के साक्षात्कार के दौरान भी लगभग ऐसा ही सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किया था लेकिन तब भी सीधे प्रसारण जैसे तनावपूर्ण हालात नही होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस ‘कठिन’ सवाल का आसान सा जवाब सवाल की भावना के अनुरूप नहीं दे पाए थे। श्री मोदी के लिए हालात उस समय अोर भी बदतर हो गए जब उनसे सीधे-सीधे ही भारत में उनके शासनकाल के दौरान अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार की घटनाओं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाई गई अघोषित रोक से जुड़ा एक अहम सवाल पूछ ही लिया गया जिसके किसी पत्रकार द्वारा पूछे जाने से वे नौ साल से बचने आ रहे थे।
नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर भारतीय मीडिया में खासतौर से यहां की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जो कुछ भी दिखाया जा रहा है या दर्शकों को परोसा जा रहा है, अमेरिका में वह श्री मोदी की यात्रा के दौरान के हालात के इसके बिल्कुल विपरीत है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जहां नरेंद्र मोदी को सवाल का सही जवाब नहीं दे पाने के कारण अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने नतमस्तक होना पड़ा, वही अमेरिका के राष्ट्रपति जॉ बाइड़ेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के 75 सांसदों ने बकायदा राष्ट्रपति को लिखित में प्रतिवेदन देकर बाइड़ेन से यह कहा कि अमेरिका की यात्रा पर आ रहे भारत की प्रधानमंत्री से यह पूछा जाना चाहिए था कि उनके शासनकाल में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को क्यों कुचला जा रहा है?
श्री मोदी की यात्रा के दौरान एक ओर जहां भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चंद लोगों के समूह को भारतीय झंडा तिरंगा लेकर मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए नृत्य करते हुए दिखाया जा रहा था, वहीं इसके विपरीत अमेरिका में कई जगह बीते कुछ दिनों में मणिपुर में हो रही घनघोर हिंसा सहित देश के ओलंपिक विजेता पहलवानों के साथ हुए दुर्व्यवहार की घटनाओं पर भारतीय मूल के लोग प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन यह सब खबरें भारतीय मीडिया से पूरी तरह नदारत है और वह सब परोसा जा रहा है जो नरेंद्र मोदी की “ठकुर सुहाति” में कहा जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)