राज्य पुनर्गठन की मांग, विकास या सियासत ?

यह इलाका काफी संवेदनशील है क्योंकि इन जिलों की सीमाएं नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से लगती हैं। यहां के कई संगठन उत्तरी बंगाल को अलग करने की मांग करते रहे हैं जिनके पीछे राजनीतिक शह बतलाई जाती रही है।

bannerpujo
symbolic photo courtesy https://www.wbtdcl.com/

#सर्वमित्रा_सुरजन

पश्चिम बंगाल को फिर से विभाजित करने की मांग उठ रही है। इसके पहले 1905 में औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड कर्जन ने अविभाजित बंगाल प्रांत को विभाजित करने का प्रस्ताव रखा था। इस पहल के खिलाफ पूरे देश, खासकर बंगाल सूबे में जबर्दस्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ था जिसके कारण अंग्रेजों को वह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था। ‘बंग भंग आंदोलन’ के नाम से यह इतिहास के पन्नों में दज़र् है। इसके बाद आजादी जब मिली तो सिंध प्रांत पूरा अलग हो गया और पंजाब के विभाजन के साथ ही इसी बंगाल का एक हिस्सा भी अलग होकर ‘पूर्वी पाकिस्तान’ कहलाया। 1971 में भाषा के आधार पर हुए एक जनविद्रोह ने शेष पाकिस्तान से अलग होकर खुद को ‘बांग्लादेश’ के नाम से पृथक राष्ट्र बना लिया। वैसे उधर झारखंड के विभाजन की मांग भी उठाई जा रही है। इन दोनों ही मांगों के पीछे विकास की मंशा कम और सियासत अधिक बतलाई जा रही है, जो दुर्भाग्यजनक है।

प. बंगाल के एक और विभाजन की मांग भारतीय जनता पार्टी की प. बंगाल इकाई के अध्यक्ष तथा केन्द्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने उठाई है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर उत्तरी बंगाल के 8 राज्यों को मिलाकर केन्द्र शासित राज्य (यूटी) बनाने का प्रस्ताव दिया है। उनके अनुसार इससे इस क्षेत्र का सिक्किम की तरह विकास करने में मदद मिलेगी। वह नॉर्थ इंडिया काउंसिल का हिस्सा बन जायेगा और उसे केन्द्रीय अनुदान का आवंटन हो सकेगा। मजूमदार चाहते हैं कि कूचबिहार, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी, अलीराजपुर, मालदा और कलिम्पोंग को मिलाकर यूटी बनाई जाये। यह मांग चाहे पश्चिम बंगाल के विकास के नाम से की गयी हो लेकिन इसके पीछे भाजपा का सियासी मकसद ही नज़र आता है। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि 2021 में पूर्व केन्द्रीय मंत्री जॉन बारला और मजूमदार ने ही इस मांग को उठाया था परन्तु जब इस पर हो-हल्ला हुआ तो मजूमदार ने इस मांग से खुद को अलग कर लिया था।

मजेदार बात तो यह है कि जहां एक ओर उत्तरी बंगाल के इन 8 जिलों को मिलाकर यूटी की मांग अब उठाई गयी है वहीं इसी इलाके के अलग-अलग हिस्सों को मिलाकर तीन राज्य बनाने की मांग उठती रही है। दार्जिलिंग में गोरखालैंड, कूचबिहार में ग्रेटर कूचबिहार और कामतापुरी की मांगें पुरानी हैं। सवाल यह उठ रहा है कि 10 वर्षों से केन्द्र में सत्ता होने के बाद भी भाजपा नेताओं ने यह काम क्यों नहीं कर लिया और यह मांग फिर से क्यों उठाई जा रही है? सुकांत अब राज्य मंत्री बन चुके हैं और सम्भवत: वे मानते हैं कि अपने बढ़े हुए कद और वजन से वे यह काम करा सकते हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण है राज्य में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रभाव घटाना। इन जिलों में अनुसूचित जातियों व जनजातियों की बहुलता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की 8 सीटों में से छह पर भाजपा को जीत मिली है। दूसरी तरफ उत्तर बंगाल की 54 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 6 पर उसे जीत मिली थी। यहां टीएमसी का दबदबा है। अगर यह इलाका अलग राज्य के रूप में बनाकर राज्य के नक्शे से अलग हो जाता है तो ममता की ताकत काफी घट जायेगी।

वैसे बता दें कि यह इलाका काफी संवेदनशील है क्योंकि इन जिलों की सीमाएं नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से लगती हैं। यहां के कई संगठन उत्तरी बंगाल को अलग करने की मांग करते रहे हैं जिनके पीछे राजनीतिक शह बतलाई जाती रही है। राज्यों के विभाजन या पुनर्गठन से किसी को कोई उज्र नहीं हो सकता लेकिन देखना यह होगा कि ऐसा करने का उद्देश्य क्या है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों बड़ी पराजय पाने के बाद से ही टीएमसी को नेस्तनाबूद करने पर भाजपा तुली हुई है। ममता विपक्षी गठबन्धन इंडिया का एक मजबूत पाया है और वह पीएम मोदी व केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बराबर चुनौतियां देती रहती हैं। संसद के दोनों ही सदनों में जिस प्रकार से टीएमसी सत्ता के लिये सिरदर्द बनी हुई है उसके चलते ममता की शक्ति कम करने की दृष्टि से यह मांग उठाये जाने का पूरा अंदेशा है। देखना होगा कि इसको लेकर प. बंगाल के लोगों और टीएमसी सहित अन्य राजनीतिक दलों की क्या प्रतिक्रिया होती है।

दूसरी तरफ झारखंड से भी कुछ इसी तरह के संकेत मिल रहे हैं। वहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान भाजपा भी कुछ इसी प्रकार के हथकंडे अपनाने की जुगत में लगी है। झारखंड के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तो झारखंड के संथाल परगना, बिहार के किशनगंज, कटिहार व अररिया और प. बंगाल के मालदा व मुर्शिदाबाद को मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की है। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि टीएमसी की उदार नीति के कारण बांग्लादेश के शरणार्थी भारत आ रहे हैं और इन इलाकों में फैल रहे हैं। उनका यह भी आरोप है कि संथाल परगना में आदिवासी आबादी अब घटकर 26 प्रतिश्ता रह गयी है जबकि पहले वे 36 प्रतिशत थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि सुनियोजित तरीके से हिन्दू आबादी को कम किया जा रहा है।

इन दोनों ही मामलों को देखकर साफ है कि विरोधी दलों के प्रभाव को घटाने के उद्देश्य से भाजपा राज्यों के विभाजन व पुनर्गठन का दांव चल रही है जिसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments