
-कृतिका शर्मा-

हमारे देश, हमारे समाज मे बहुत से कानून ऐसे हैं जो लड़कियों के पक्ष में हैं। फिर चाहे वो दहेज़ के लिए हो या फिर लडकियों के साथ दुर्व्यवहार करने पर सजा का। फिर भी ये अपराध ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहे। आज भी देश मे कहीं ना कहीं कोई ना कोई किसी ना किसी चीज़ का शिकार हैं। आज हम बात करते हैं कुछ ऐसे कानूनों की, जो या तो समाज द्वारा या फिर देश के द्वारा बनाये गये तो शायद थोड़े बहुत हालात सुधर सकते हैं। शायद ये क्राइम तब कम हो जाए जब एक क़ानून ऐसा भी हो,कि दहेज़ लेने वालों के साथ साथ दहेज़ देने वाले को भी कड़ी सज़ा हो। शायद हर बिटिया तब खुश रहे जब एक कानून समाज का उन माँ बाप के लिए भी हो, जिनको अपनी बेटी के हर नखरे उठाने वाल , उसकी हर ख्वाइश पूरी करने वाला दामाद तो चाहिए, लेकिन उनकी बहु की खुशी सोचने वाला पति भी उन्हे मंज़ूर नही।
शायद वृद्धाश्रम तब खाली होते नज़र आयें यदि एक कानून ऐसा भी हो कि जब किसी सास ससुर द्वारा किसी बहू को सताने पर कानून सज़ा देता हैं,तो किसी बहू द्वारा सास ससुर को सताने या उनको वृद्धाआश्रम जाने के लिए मज़बूर करने पर सज़ा बहु बेटे के लिए भी होनी चाहिए। शायद तब लडको के हाथ रुक जाये जब एक कानून ऐसा भी हो, कि जैसा किसी लड़की के साथ दुर्व्यवहार किया हो वैसा ही व्यवहार उस लड़के के साथ किया जाए।
एक कानून ऐसा भी हो कि जैसे लड़का किसी लड़की के साथ फ्राड करता हैं तो उसको सज़ा मिलती हैं, तो जब कोई लड़की किसी लड़के के साथ फ्राड करे तो सज़ा लड़की को भी मिलनी चाहिए।
शायद तब दुष्कर्म कम हो जाये जब एक कानून ऐसा भी हो कि जैसे लड़के रात को 11बजे तक बाहर घूम सकते हैं ,तो लडकियों को भी बहार जाने मे सुरक्षित महसूस हो। एक कानून ऐसा भी हो कि जैसे किसी लड़की को 14 सेकंड घूरने पर लड़के को सजा हो सकती हैं, वैसे ही लडकियों को भी किसी लड़के को घूरने पर सजा मिलनी चाहिए। शायद् तब लोगो की लड़कियों को लेकर माँगे खत्म हो जाए जब एक कानून समाज का ऐसा भी हो कि सीता जैसी चरित्रवान चाहिए तो बेटा भी तुम्हारा मर्यदा पुरुषोत्तम राम हो।
शायद तब लडकियों को ये समझ आ जाए कि सोमवार के व्रत रखने के साथ साथ धैर्य भी ज़रूरी हैं। जब एक क़ानून समाज का ऐसा भी हो कि पति अगर शिव जैसा चाहिए तो पत्नी मे भी पार्वती जैसा गुण हो। हम हमेशा कहते हैं कि बेटों के माँ बाप ने उसको लडकियों कि इज़्ज़त या सम्मान करने के संस्कार नही दिये।
पर हम ये क्यों भूल जाते हैं कि बेटियों के माँ बाप भी बेटियों को ये संस्कार दंे कि किसी बूढ़े माँ बाप को वृद्धा आश्रम का मुंह ना देखना पड़े या किसी वृद्ध माँ या बाप को आपकी बेटी की वजह से उनका बेटा छोड़ कर दूसरे शहर ना चला जाए।
जैसे हर बेटी चाहती हैं कि अगर उसका कोई भाई नहीं है तो उसका पति आने वाले समय मे उसके माँ बाप का ध्यान रखे या उनको अपने आस पास ही रखे, तो क्यों फिर अपने ही पति के माँ बाप से उनका बेटा दूर करती हो?
ज़रूरी नहीं कि गलती हमेशा लड़के की हो। जैसे आज के हालात हैं उसके हिसाब से तो लड़किया भी कम नहीं हैं।
जब बराबरी कि चल रही हैं, कि लड़का लड़की में कोई फर्क नहीं तो कानून भी सबके लिए समान होना चाहिए। चाहे कानून समाज का हो या फिर देश का ।।
(अध्यापिका एवं एंकर, यह लेखिका के अपने विचार हैं)