अरुंधति रॉय: गैरों की सराहना, अपनों का उल्हाना  

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photo courtesy arundhati roy social media account

-यूएपीए के तहत अभियोजन का सामना करने वाली स्वतंत्रता की चमकदार आवाज‘ को पेन पिंटर पुरस्कार मिला

—संजय चावला

sanjay chawala
संजय चावला

 अरुंधति रॉय ने गुरुवार को अपने “अडिग और निर्भीक” साहित्यिक कृतियों के लिए प्रतिष्ठित पेन पिंटर पुरस्कार 2024 जीता। 14 साल पहले कश्मीर पर अपनी विवादास्पद टिप्पणी के कारण, बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यासकार को वर्तमान में सख्त गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा चलाने की संभावना का सामना करना पड़ रहा है। पेन पिंटर पुरस्कार नोबेल पुरस्कार विजेता हेरोल्ड पिंटर के सम्मान में लेखन का सम्मान करता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए काम करता है। 10 अक्टूबर को रॉय पुरस्कार स्वीकार करेंगी और ब्रिटिश लाइब्रेरी द्वारा सह-आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देंगी।

वे उन्हें अंतर्राष्ट्रीयवादी विचारक कहते हैं

इंग्लिश पीईएन के अध्यक्ष बोर्थविक का कहना है कि रॉय बखूबी बुद्धिमत्ता और सौन्दर्यबोध के साथ अन्याय के विरुद्ध अपनी कलम चलाती हैं। भले ही उनका लेखन भारत पर केन्द्रित रहता है, पर वास्तव में वह एक अंतर्राष्ट्रीयवादी विचारक है, और उनकी दमदार आवाज को चुप नहीं कराया जा सकता । जूरी सदस्य अब्दुल्ला का कहना है कि अरुंधति रॉय स्वतंत्रता और न्याय की एक उजली आवाज हैं, जिनकी बातें लगभग 30 वर्षों से अत्यधिक स्पष्टता और दृढ़ संकल्प के साथ आ रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस वर्ष, जबकि दुनिया गजा में आज के दुखद इतिहास का सामना कर रही है, हमें ऐसे लेखकों की बहुत आवश्यकता है जो ‘अडिग और अटल’ हों। इस वर्ष अरुंधति रॉय को सम्मानित करते हुए, हम उनके काम की गरिमा और उनके शब्दों की प्रासंगिकता दोनों का जश्न मना रहे हैं, जो उनकी कला की गहराई के साथ ठीक उसी समय आती हैं जब हमें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। जूरी मेम्बर्स ने कहा कि मानवाधिकारों के उल्लंघन से लेकर पर्यावरणीय गिरावट तक के विषयों पर रॉय का गहन विश्लेषण, उत्पीड़ितों के लिए खड़े होने और यथास्थिति पर सवाल उठाने के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।

क्या भारत की सबसे प्रसिद्ध लेखिकाओं में से एक को एक दशक से भी अधिक पहले की गई टिप्पणियों के लिए वास्तव में अभियोजन का सामना करना पड़ेगा?

दिल्ली के सबसे वरिष्ठ अधिकारी ने शुरुआती आरोप के चौदह साल बाद पिछले हफ्ते बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यासकार अरुंधति रॉय पर भारत के सख्त आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) जमानत प्राप्त करना बहुत कठिन बनाने के लिए जाना जाता है, जिसके कारण अक्सर मुकदमे के अंत तक वर्षों की कैद हो जाती है। नयी सरकार के गठन के साथ ही 50 वर्ष पूर्व लगायी गयी इमरजेंसी को काला दिवस के रूप में याद किया गया क्योंकि उस समय बोलने की आज़ादी पर गहन अंकुश लगाया गया था। क्या आज स्थितियां बदल गयी हैं? एक शायर ने कहा था:

बदला है ज़माना बस, हालात नहीं बदले

हकगोई में लोगों को अब भी तो कबाहत है

कबाहत एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है परेशानी। क्या अब भी सरकार कानूनी प्रणाली का दुरुपयोग करके पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों सहित आलोचकों को चुप नहीं करा रही है? 62 वर्षीय लेखिका और सामजिक कार्यकर्ता सुश्री रॉय पर भारत में चल रहे एक ज्वलंत विषय कश्मीर के संबंध में की गई टिप्पणियों पर मुकदमा चलाया जा रहा है। अरुंधति रॉय का कश्मीर पर दिया गया वक्तव्य भले ही मुर्खतापूर्ण रहा हो पर उन्हें किसी भी सूरत में आतंकवादी तो नहीं कहा जा सकता।

बीजेपी की पुरानी रणनीति जारी है

सुश्री रॉय मोदी सरकार की मुखर आलोचक रही हैं, जिसके बारे में मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अत्याचार कर रही है और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हमला कर रही है। उनके अभियोजन के लिए अनुमोदन मोदी के तीसरे कार्यकाल शुरू होने के तुरंत बाद ही लिया गया है । कई लोग इसे भाजपा के राजनीतिक संकेत के रूप में व्याख्या करते हैं कि वह गठबंधन प्रशासन के तहत भी अपने दमनकारी तरीकों पर कायम रहेगी। कुछ लोग इसे मोदीजी से असहमत लोगों को डराने की एक और कोशिश के रूप में देखते हैं। लेखक अमिताव घोष ने एक्स पर लिखा: “अरुंधति रॉय का उत्पीड़न बिल्कुल अनुचित है। वह एक महान लेखिका हैं और उन्हें अपनी राय रखने का अधिकार है। एक दशक पहले उन्होंने जो कुछ कहा था, उसके लिए उन पर मुकदमा चलाने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश होना चाहिए।” कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार महेंद्र नेह ने टिप्पणी की है कि इस सम्मान से न केवल अरुंधति रॉय के लेखन में व्यक्त सामाजिक सचाइयों और उनकी निडरता का सम्मान बढ़ा है अपितु हेरोल्ड पिंटर जैसे लेखकों का भी मान बढ़ा है, जो अस्थाई और अल्प-कालिक सरकारों और व्यवस्था की तुच्छ कारगुजारियों की परवाह नहीं करके उन सचाइयों को लिखते हैं जो आने वाले युगों तक मनुष्य समाज को अपनी रोशनी से आलोकित करती रहेंगी।

रॉय का कृतित्व

पिछले बीस वर्षों में, सुश्री रॉय ने वैश्वीकरण, विशाल बांध, परमाणु हथियार, कश्मीर, माओवादी विद्रोहियों के साथ बातचीत और जॉन क्यूसैक और एडवर्ड स्नोडेन जैसे विषयों पर कई नॉन फिक्शन किताबें और कई निबंध लिखे हैं। एक चीज तय है। भारत के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक को जेल में डालने वाला एक कठोर आतंकवाद विरोधी कानून दुनिया भर में आक्रोश और निंदा फैलाएगा। एक शायर के शब्दों में:

मुझको ज़ख़्मी कर नहीं सकता कोई दस्ते सितम

मैं नदी का चाँद हूँ पत्थर नहीं लगता मुझे

(लेखक शिक्षाविद और विचारक हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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