
– एडवोकेट किशन भावनानी-
युद्ध कोई नया शब्द नहीं है। हजारों वर्ष पूर्व से ही युद्ध होते आ रहे हैं, परंतु वर्तमान प्रौद्योगिकी युग में युद्ध के लिए भूगोल बाधा नहीं रह गया हैै। वर्तमान में यूक्रेन-रूस, ताइवान-चीन की स्थिति और उससे उत्पन्न तीसरे विश्वयुद्ध के खतरे की बातें हो रही है, इसीलिए आज हर देश अपनी सेना को प्रौद्योगिकी से मजबूत और आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल पड़ा है, चूंकि आज किसी भी देश को रणनीतिक रूप से युद्ध में घेरने के लिए समुद्री क्षेत्र महत्वपूर्ण होता जा रहा है जिसका उदहारण हम चीन, अमेरिका और रूस की ताकत देख रहे हैं। इसी कड़ी में आईएनएस विक्रांत स्वदेशी भारतीय विमान वाहक युद्धपोत को भारतीय नौसेना में शामिल कर अब भारत स्वदेशी युद्धपोत बना सकने वाले क्लब में शामिल हो गया है।

आईएनएस विक्रांत भारत की आजादी के 75 साल के अमृतकाल के दौरान देश के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है और यह देश के आत्मविश्वास और कौशलता का प्रतीक भी है। आईएनएस विक्रांत के साथ, हमारा देश विश्व के उन विशिष्ट देशों के क्लब में प्रवेश कर गया है जो स्वयं अपने लिए विमान वाहक बना सकते हैं और इस उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का भागीदार बनना बेहद खुशी की बात है।
अगर हम पड़ोसी और विस्तारवादी मुल्क की दादागिरी पर लगाम लगाने की करें तो, सामरिक अनिश्चिता के इस युग में खतरों का पूर्वानुमान लगाना उत्तरोत्तर कठिन होता जा रहा है। इन खतरों का मुकाबला करने के लिए भारत को अपनी संपूर्ण राजनयिक, आर्थिक एवं सैन्य ताकत का उपयोग करना होगा। समुद्र में विस्तार वादी देश की दादागिरी पर लगाम लगाने और पड़ोसी मुल्कों के शैतानी मंसूबों को ध्वस्त करने के लिए भारतीय नौसेना ने समुद्र में तैरता एक दमदार और खतरनाक एयरफील्ड तैयार किया है। आईएनएस विक्रांत से विस्तारवादी देश को सबसे ज्यादा तकलीफ तो इस बात की है कि उसका 70 से 80 फीसदी एनर्जी ट्रेड भारतीय समुद्री सीमा से होकर गुजरता है, ऐसे में भारत जब चाहे उसे बाधित कर सकता है। वहीं पड़ोसी मुल्क से निपटने के लिए अरब सागर में भारतीय नौसेना का कैरियर बैटल ग्रुप तो तैनात है, लेकिन बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के इलाके पर अपनी ताकत को बरकरार रखने के लिए जल्द ही एक और करियर बैटल ग्रुप तैनात होगा।
अगर हम आईएनएस विक्रांत की विराटता और क्षमता की बात करें तो, इस एयरक्राफ्ट कैरियर की विमानों को ले जाने की क्षमता और इसमें लगे हथियार इसे दुनिया के कुछ खतरनाक पोतों में शामिल करते हैं। नौसेना के मुताबिक, यह युद्धपोत एक बार में 30 एयरक्राफ्ट ले जा सकता है। इनमें मिग-29 के फाइटर जेट्स के साथ-साथ कामोव-31 अर्ली वॉर्निंग हेलिकॉप्टर्स, एमएच -60 आर सीहॉक मल्टीरोल हेलिकॉप्टर और एचएएल द्वारा निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर भी शामिल हैं। नौसेना के लिए भारत में निर्मित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट – एलसीए तेजस भी इस एयरक्राफ्ट कैरियर से आसानी से उड़ान भर सकते हैं। मजेदार बात यह है कि भारत में बने पहले एयरक्राफ्ट कैरियर का नाम आईएनएस विक्रांत रखा गया है। जबकि इससे पहले ब्रिटेन से खरीदे गए भारत के पहले विमानवाहक पोत- एचएमएस हरक्यूलीस का नाम भी आईएनएस विक्रांत ही रखा गया था। बताया जाता है कि इसके पीछे भारत का पहले एयरक्राफ्ट कैरियर के प्रति प्यार और गौरव की भावना है। 1997 में सेवा से बाहर किए जाने से पहले आईएनएस विक्रांत ने पाकिस्तान के खिलाफ अलग-अलग मौकों पर भारतीय नौसेना को मजबूत रखने में अहम भूमिका निभाई थी।
नौसेना के मुताबिक, आईएनएस विक्रांत के भारत के जंगी बेड़े में शामिल होने से इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने में मदद मिलेगी। हालांकि सबसे पहली और गौर करने वाली बात यह है कि भारत में बने आईएनएस विक्रांत में इस्तेमाल सभी चीजें स्वदेशी नहीं हैं। यानी कुछ कलपुर्जे विदेश से भी मंगाए गए हैं। हालांकि, नौसेना के मुताबिक, पूरे प्रोजेक्ट का 76 फीसदी हिस्सा देश में मौजूद संसाधनों से ही बना हैं।
आईएनएस विक्रांत, मेक इन इंडिया- विमान वाहक युद्धपोत बनाने में भारत की आत्मनिर्भरता की क्षमता का प्रदर्शन हुआ। भारत विमानवाहक युद्धपोत बना सकने वाले देशों के क्लब में शामिल हुआ यह भारत के आत्मविश्वास और कौशल का प्रतीक है।
(लेखक – कर विशेषज्ञ, स्तंभकार है)