युगपुरूष जे आर डी टाटा

यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे उन्हें उनके जामाडोबा (धनबाद) दौरे के दौरान 1987 में प्रत्यक्ष देखने का मौका मिला। जो मुझे याद है - सरल व्यक्तित्व के धनी, गोरा चिट्ठा रंग, सामान्य सी काया, लम्बी नाक, चमकती आंखें और मोहक हल्की मुस्कान - जैसे सबको आश्वस्त कर रही हो, वो हैं तो किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं। ऐसा वात्सल्य भाव झलकता था उनके चेहरे पर। खुशहाल टाटा परिवार और खुशहाल देश उनका सपना था और वे अंतिम सांस लेने तक इसके लिए काम करते रहे।

जेआरडी टाटा के जन्मदिवस पर संस्मरण

 

जेआरडी ‘क्रोनी कैपिटलिस्ट’ यानी सत्ता की जी-हुजूरी करके अपना काम निकालने वाले कारोबारी नहीं थे। यह बात आज भी टाटा समूह को देखकर समझी जा सकती है। उनका मानना था कि समाजवाद से सिर्फ़ अर्थव्यवस्था का ही नुकसान नहीं हुआ, कभी-कभी कुछ दूसरे उद्देश्य भी शहीद हो गए। यह भी कि भारत की मुश्किलों को हल करने के लिए विशेषज्ञों की ज़रूरत है न कि राजनेताओं और नौकरशाही की।

-माला सिन्हा-

mala sinha
माला सिन्हा

जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा यानी जेआरडी या ‘जेह’, का नाम सुनते ही ज़ेहन में ऐसे शख़्स की तस्वीर उभरती है जो देश का सबसे पहला कमर्शियल पायलट रहा, अपनी दूरदर्शिता से टाटा संस कंम्पनी को बुलन्दियों पर ले जाने वाले जे आर डी टाटा के साथ एयर इंडिया के बनने की दास्तां जुड़ी है, जिन्होंने टाटा स्टील, टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी (टेल्को) की स्थापना की और जिन्होंने अपनी सारी संपत्ति टाटा संस के नाम कर दी। टाटा संस के इस चेयरमैन को अपने उसूलों के चलते कई बार नुकसान उठाना भी पड़ा।
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा भारत में वो नाम है जो आज भी बेहद सम्‍मान के साथ लिया जाता है। बेहद अमीर परिवार में जन्‍म लेने के बाद भी जमीन से जुड़े हुए इंसान थे वे। हालांकि उनका जीवन भी चुनौतियों से घिरा हुआ था, लेकिन वो हर चुनौती का सामना करते हुए आगे बढ़ते चले गए। टाटा स्‍टील के अलावा एयर इंडिया की कमान संभालने वाले जे आर डी टाटा खुद एक बेहतरीन कमर्शियल पायलट थे। अपने व्‍यस्‍त जीवन में से वो इसके लिए भी समय निकाल ही लिया करते थे।
29 जुलाई 1904 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में पैदा हुए जेआरडी की शुरुआती शिक्षा भी वहीं हुई थी। उन्‍होंने बाद में वहां की सेना में भी अपनी सेवाएं दी। इसकी वजह थी कि वे हर वक्‍त कुछ नया करने और सीखने के जुनूनी व्‍यक्ति थे। जब उनके पिता को इसका पता चला तो उन्‍होंने जेआरडी को भारत वापस बुला लिया। 1930 में जेआरडी का विवाह थेलमा विका जी से हुआ था। भारत सरकार ने 26 जनवरी 1955 को जेआरडी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 26 जनवरी 1992 को उन्‍हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्‍‌न’ की उपाधि से अलंकृत किया गया था। इसके अलावा परिवार नियोजन एवं जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
जन कल्याण के क्षेत्र में भी जेआरडी ने अद्वितीय योगदान किया। उनका मानना था कि मनुष्य का महत्व मशीन से कम नहीं है। उनकी देखभाल करना एक अच्छे प्रबंधन से अपेक्षित है। उनके मार्गदर्शन में ही टाटा स्टील में पर्सनल विभाग की स्थापना हुई। समाज कल्याण की योजनाएं भी विकसित होती गई। ग्रामीण विकास, सामुदायिक विकास समेत विभिन्न ट्रस्टों सहित कई महत्वपूर्ण संस्थाएं जेआरडी की दूरदृष्टि का ही परिणाम है।
जेआरडी ‘क्रोनी कैपिटलिस्ट’ यानी सत्ता की जी-हुजूरी करके अपना काम निकालने वाले कारोबारी नहीं थे। यह बात आज भी टाटा समूह को देखकर समझी जा सकती है। उनका मानना था कि समाजवाद से सिर्फ़ अर्थव्यवस्था का ही नुकसान नहीं हुआ, कभी-कभी कुछ दूसरे उद्देश्य भी शहीद हो गए। यह भी कि भारत की मुश्किलों को हल करने के लिए विशेषज्ञों की ज़रूरत है न कि राजनेताओं और नौकरशाही की।
इनसे जुड़ी हुई उपलब्धियों और घटनाओं का ब्यौरा तो बहुत लंबा है जिसे कुछ पंक्तियों में नहीं समेटा जा सकता फिर भी एक रोचक वाक्या का ज़िक्र यहां ज़रूरी है।
ये साठ के दशक की बात है। मशहूर फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और जेआरडी टाटा एक ही प्लेन में सफ़र कर रहे थे। उस वक्त दिलीप कुमार कामयाबी की बुलंदियों पर थे। दिलीप कुमार ने जेआरडी टाटा को पहचान लिया, लेकिन टाटा अपने ही काम में मगन थे। वो सफ़र के दौरान भी कुछ फाइलों में उलझे हुए थे। दिलीप कुमार ने किसी भी तरह से उनसे बातचीत की शुरुआत करनी चाही। आखिरकार वो एक स्टार थे। लेकिन टाटा ने उनकी तरफ आंख उठाकर देखा भी नहीं। आख़िर दिलीप कुमार से जब नहीं रहा गया तो वो बोल पड़े- हेलो, मैं दिलीप कुमार। टाटा ने उनकी तरफ देखा। अंचभित होकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और मुस्कुराते हुए फिर अपने काम में मगन हो गए। दिलीप कुमार से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने दोबारा कहा – मैं दिलीप कुमार हूं। मशहूर फिल्म स्टार, जेआरडी टाटा बोले- सॉरी, मैं आपको पहचान नहीं पाया जनाब। वैसे भी मैं फिल्में नहीं देखता। दिलीप कुमार रुपहले पर्दे के हीरो थे और टाटा रियल लाइफ के हीरो। तो ऐसा था युगपुरूष जेआरडी टाटा का व्यक्तित्व, जिन्होंने अपने दम पर जिस औद्योगिक रियासत टाटा संस को खड़ा किया वह उस सदी में कल्पना से बाहर की बात थी।
उन्होंने देश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कई क्षेत्रों में कम्पनी की स्थापना की और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसी दौर में टी सी एस जैसी कम्पनी अस्तित्व में आई, जो आज देश की सबसे बड़ी आई टी कम्पनी है। यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे उन्हें उनके जामाडोबा (धनबाद) दौरे के दौरान 1987 में प्रत्यक्ष देखने का मौका मिला। जो मुझे याद है – सरल व्यक्तित्व के धनी, गोरा चिट्ठा रंग, सामान्य सी काया, लम्बी नाक, चमकती आंखें और मोहक हल्की मुस्कान – जैसे सबको आश्वस्त कर रही हो, वो हैं तो किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं। ऐसा वात्सल्य भाव झलकता था उनके चेहरे पर। खुशहाल टाटा परिवार और खुशहाल देश उनका सपना था और वे अंतिम सांस लेने तक इसके लिए काम करते रहे। 29 नवंबर 1993 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में 89 वर्ष की उम्र में भारत रत्‍‌न जेआरडी टाटा ने अंतिम सांस ली थी। उनकी मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद उनकी धर्मपत्‍‌नी थेलमा का भी निधन हो गया।
गर्व है मुझे कि मैं इसी टाटा परिवार का हिस्सा 35 वर्षों तक रही। जयंति पर कोटि कोटि नमन।
माला सिन्हा

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