लौह महिला का कोमल पक्ष

इंदिरा गांधी का योगदानरू मसूरी को नया जीवन और उत्तराखंड के वन क्षेत्रों को दिया अभय दान: यह सर्वविदित है कि जंगल ही पहाड़ का प्राण हैं। इन्हें लील लेने पर क्या शेष रह जाएगा ? फिर भी राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से परियोजनाएं स्थापित करने के नाम पर राज्य सरकारें जंगलों पर हमला बोल देती हैं

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इंदिरा गांधी। फोटो प्रतिभा नैथानी की फेसबुक वाल से साभार

-प्रतिभा नैथानी-

प्रतिभा नैथानी

अपनी आबोहवा के लिए प्रसिद्ध मसूरी को अंग्रेजों के जमाने से ही ‘पहाड़ों की रानी’ का दर्ज़ा हासिल है। अंग्रेजों को यहां की ठंडी हवा बहुत पसंद थी, इसलिए उनके रहते हुए मसूरी दिनोंदिन हरा होता गया। आजादी के बाद साठ के दशक में एक समय ऐसा आया जब मसूरी की पहाड़ियां एकदम नग्न हो गईं।
कारण बनीं यहां की चूना-खदानें। इनके दोहन का सिलसिला जोरों पर था। देहरादून से मसूरी की ओर जाने वाली राजपुर रोड पर विजय लक्ष्मी पंडित का घर था। उनके पिता मोतीलाल नेहरू और माता स्वरूपरानी नेहरू के साथ-साथ भाई जवाहर लाल नेहरू का भी देहरादून- मसूरी से विशेष लगाव था। विदेशों में अपनी लंबी राजनयिक सेवाएं देने के बाद जीवन का शेष समय सुकून से बिताने के लिए विजयलक्ष्मी पंडित को भी यही घाटी याद आई।

दून में ही राजीव गांधी और संजय गांधी की भी पढ़ाई हुई तो इंदिरा जी का भी यहां आना-जाना लगा ही रहता था। एक बार बुआ से मिलने जब वह उनके घर गईं तो विजयलक्ष्मी पंडित ने उनसे शिकायत की कि घर से सटी रोड पर रातभर चूना पत्थर से भरे ट्रक चलते रहते हैं, और मैं ठीक से सो नहीं पाती हूं। यूं बुआ-भतीजी में हमेशा अनबन ही रहती थी, मगर इस बात पर कार्रवाई करने में इंदिरा जी ने तनिक देर नहीं लगाई।  मसूरी में चूना खदानों का दोहन तत्काल बंद हुआ।
मसूरी की नग्न हो चुकी पहाड़ियों पर सेना के जवानों ने नए सिरे से छोटे-छोटे जंगल तैयार कर दिए।
इंदिरा जी ने अपनी बुआ की नींद को खलल से बचाने मात्र के लिए यह नहीं किया था। बरसों पहले जब उनकी मां कमला नेहरू क्षय रोगी हो गईं तो इलाज़ के लिए उन्हें भवाली स्थित टी.बी सैनिटोरियम में भर्ती करवाया गया था।
225 एकड़ में फैले इस सैनिटोरियम को अंग्रेजों ने स्थापित किया था। उस समय टी.बी की दवा और वैक्सीन की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी, लेकिन यह सिद्ध हो चुका था कि देवदार और चीड़ की वायुसेवन से यक्ष्मा का रोग साल- छह महीने में बिल्कुल ठीक हो जाता है । इसी सैनिटोरियम में फिरोज गांधी ने कमला नेहरू की जी भर सेवा की थी। हालांकि कमला नेहरू को बचाया नहीं जा सका, लेकिन पेड़-पौधों की जीवनदायिनी शक्ति का अहसास उनकी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शनी को भरपूर हो चुका था।

यह सर्वविदित है कि जंगल ही पहाड़ का प्राण हैं। इन्हें लील लेने पर क्या शेष रह जाएगा ? फिर भी राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से परियोजनाएं स्थापित करने के नाम पर राज्य सरकारें जंगलों पर हमला बोल देती हैं। चिपको आंदोलन के प्रसिद्ध नेता सुंदरलाल बहुगुणा इस बात की शिकायत लेकर जब- तब दिल्ली पहुंच जाया करते थे।
उनकी बात सुनते हुए वनों को सुरक्षित रखने के लिए इंदिरा जी ने हिमालय पर्यावरण नीति तैयार की थी। इसके तहत अगले 15 सालों तक हिमालय के जंगल काटने पर उन्होंने रोक लगवा दी । इस तरह मसूरी को नया जीवन देने के साथ-साथ उत्तराखंड के अन्य वन क्षेत्रों की हरियाली को भी अभय दान मिला।
राजनीति में शत्रुहंता व्यक्तित्व की धनी इंदिरा प्रियदर्शनी के इस कोमल पक्ष से बहुत सारे लोग अनजान होंगे।
लौह महिला को उनके जन्मदिन पर विनम्र श्रद्धांजलि

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