
-गुलाम नबी आजाद को झटका, कांग्रेस को मिलेगी ताकत
-द ओपिनियन-
कांग्रेस इस खबर से खुश हो सकती है कि जम्मू-कश्मीर में उसका साथ छोड़कर गए उसके कई बड़े नेताओं समेत करीब 17 नेता वापस पार्टी में लौट आए हैं। इन नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री ताराचंद और पूर्व मंत्री पीरजादा मोहम्मद सईद, पूर्व मंत्री डॉ. मनोहरलाल शर्मा, पूर्व विधायक बलवान सिंह शामिल हैं। इन बड़े नामों पर नजर डाले तो इन नेताओं की घर वापसी गुलाम नबी आजाद के लिए झटका ही कही जाएगी।
दो माह पहले आजाद से जुड़े इन नेताओं की घर वापसी से कांग्रेस को ऐसे समय में ताकत मिली है जब उसकी भारत जोड़ो यात्रा जम्मू कश्मीर पहुंचने वाली है। इससे निश्चित रूप से कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढेगा क्योंकि ये कश्मीर में बड़े नाम है। कांग्रेस के इन पूर्व नेताओं ने घर वापसी दिल्ली में पार्टी के मुख्यालय में की जहां ताराचंद का कहना था कि कांग्रेस को छोड़ना उनकी भूल थी। वहीं कांग्रेस के संगठन महासचिव वेणुगोपाल ने उनका स्वागत किया। जम्मू-कश्मीर कांग्रेस अध्यक्ष विकार रसूल वानी घर वापसी समारोह के दौरान मौजूद रहे।
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आजाद की पार्टी पर उठे सवाल
इन नेताओं की वापसी से यह सवाल भी उठता है कि क्या आजाद की पार्टी बिखर जाएगी। हालांकि एकाएक इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह आजाद को सियासी झटका है। आजाद के लिए यह चुनौती है कि उनके साथ आए नेता बिखरें नहीं। अगर लोगों में यह संदेश गया कि आजाद पार्टी को एकजुट नहीं रख पा रहे हैं तो उनकी राजनीतिक संभावनाओं व छवि पर प्रतिकूल असर नहीं पडेगा। इन नेताओं की घर वापसी से पहले ताराचंद व उनके कुछ साथियों को आजाद की पार्टी से बाहर कर दिया गया था इसलिए यह भी साफ है कि आजाद के साथ्ज्ञ आने के बावजूद वे पार्टी के साथ सहज नहीं हो पाए थे।
गत दिनों चर्चा यह भी चल रही थी कि गुलाब नबी आजाद की घर वापसी हो सकती है। कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओें ने इस सिलसिले में उनसे संपर्क किया है। हालांकि बाद में खुद आजाद ने ही इन खबरों पर यह कहकर विराम लगा दिया था कि वह कांग्रेस मेें वापसी नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस के साथ आजाद का लंबा जुड़ाव रहा है और उनके कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के साथ बहुत करीबी रिश्ते रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के कुछ नेता इस पक्ष में हैं कि आजाद पाार्टी में लौट आएं तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। लेकिन इस तरह की सियासी वापसी इतनी आसान नहीं होती। आजाद ने पार्टी से अलग होते समय राहुल गांधी पर हमला बोला था और कांग्रेस नेताओं ने आजाद की पीएम मोदी के साथ रिश्तों को लेकर तीखे प्रहार किए थे। इसलिए सौहार्द का पुल इतनी जल्दी बनने के आसार बहुत कम हैं।
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इस साल विधानसभा चुनाव होने के आसार
जम्मू कश्मीर में इस साल विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। प्रदेश में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का कार्य पूरा हो गया है और मतदाता सूचियों के संशोधन का काम चल रहा था। यानी चुनावों की प्रशासनिक तैयारियां जारी हैं। ऐसे में इस नए राजनीतिक घटनाक्रम को आगे के चुनावी समीकरणों से जोडकर देखना अपरिहार्य है। कौन किसके साथ जाएगा यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है वहां राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतरें।
आजाद का कांग्रेस से अलग होना एक अलग राजनीतिक मसला है लेकिन उनकी यह प्रतिबद्धता स्वागत योग्य है कि वह जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनावों में भाग लेंगे। इसी तरह नेशनल कांन्फ्रेंस के प्रमुख फारूख अब्दुल्ला ने भी गत दिनों कहा था कि राज्य में चुनावों में भाग लेंगे।