बिहार में जातीय जनगणना और सत्ता में हिस्सेदारी !

-विष्णुदेव मंडल-

विष्णु देव मंडल

बिहार सरकार ने जातीय सर्वेक्षण का कोड जारी कर दिया है। इसके तहत बिहार में निवास कर रहे विभिन्न जातियों को कोड आवंटित किया गया है। बिहार सरकार द्वारा आवंटित कोड की संख्या पर गौर करें तो कुल 216 जातियां बिहार में हैं।
बिहार सरकार के मंत्रियों का कहना है जिनकी जितनी भागीदारी सत्ता में उनकी उतनी ही हिस्सेदारी। अब सवाल उठता है कि क्या जाति जनगणना के आधार पर बिहार में निवास कर रहे लोगों को सत्ता में भागीदारी मिलेगी ? क्योंकि बिहार के पूर्व का इतिहास बताता है कि सत्ता में चाहे कांग्रेस रही हो या फिर लालू यादव, चाहे नीतीश कुमार किसी दल और नेताओं ने सत्ता में हिस्सेदारी या फिर भागीदारी कई उप जातियों को नहीं दी है जिनकी आबादी बहुत कम है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है की 1990 से पहले जब बिहार में कांग्रेस पार्टी सरकार में थी तो 90ः से भी ज्यादा सीटों पर अगड़ी जातियों के लोग बिहार के विधानसभा और लोकसभा के प्रतिनिधित्व करते थे।
2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश और लालू साथ साथ आए थे तो लालू प्रसाद यादव ने अपनी बिरादरी को 50 फ़ीसदी सीट आवंटित की थी। हालांकि नीतीश कुमार ने कॉन्ग्रेस और लालू प्रसाद यादव की अपेक्षा सभी पिछड़ी जातियों एवं अल्पसंख्यकों को सत्ता में हिस्सेदारी देने की माकूल प्रयास जरूर किया है लेकिन वह भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता।
यहां यह सवाल उठना भी लाजमी है कि विगत के 33 सालों से बिहार में 15 साल लालू प्रसाद यादव ने सरकार चलाई, वही 18 सालों से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, फिर 3 दशक के बाद इन नेताओं को जातीय जनगणना कराने को क्यों सूझी! जबकि बिहार देश का सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है जहां बेरोजगारी चरम पर है। यह राज्य पलायन में नंबर वन है। यहां अपराध चरम पर है, भूख भय और भ्रष्टाचार चारों तरफ व्याप्त है। पिछले दिनों बिहार में दंगे भी हुए हैं। इन सबसे इतर बिहार सरकार जातीय जनगणना और हर जातियों को कोड आवंटित कर रही है। क्या लोग इन आवंटित कोडों के सहारे जीवन यापन करेंगे।
वहां के लोगों में राजनेता यह कान भर रहे हैं कि आप को सरकारी नौकरी में, राजनीति में हिस्सेदारी मिलेगी। आप जनगणना में उसी कोड को अंकित करें जो आपको आवंटित किए गए हैं। बिहार को विकास से महरूम रखने वाले नेताओं ने आगामी लोकसभा और विधानसभा जीतने के लिए एक नया पैंतरा खेला है। इन्हें उम्मीद है की जातियों कीे गोलबंदी करके वह आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करेंगे।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इफ्तार पार्टी में शिरकत की थी। जिन का बैकग्राउंड लाल किले का था। अर्थात जनता दल यूनाइटेड के नेताओं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ऐसा लग रहा है वही जातीय सांठगांठ के सहारे इस बार दिल्ली की गद्दी तक पहुंच सकते हैं और नरेंद्र मोदी के विजय रथ को वह बिहार से ही रोक सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि जातीय जनगणना का जिन्न अब अन्य राज्यों के नेता भी अपने सूबे में निकालने का प्रयास कर रहे है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव एवं तमिलनाडु में एमके स्टालिन भी केंद्र सरकार से देश में जाति जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं। कुल मिलाकर सभी राज्यों में जातीय गोलबंदी के सहारे देश में एक बार फिर जनमानस को भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा हैं इनमें वे कितना सफल होंगे यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तो तय है की जातीय जनगणना और जाति कोर्ट को आवंटित करने भर से बिहार का भला नहीं हो सकता।

(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनकी निजी राय है)

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