राहुल की भारत जोड़ो यात्राः वोट में तब्दील करने में क्यों विफल रही

विडंबना यह रही कि राहुल की यात्रा ने भीड़ तो खूब जुटाई लेकिन यह भीड़ वोट में तब्दील नहीं हुई। इससे साफ जाहिर है कि वोट देना और यात्रा को समर्थन दो अलग बाते हैं। यदि ऐसा होता तो तेलंगाना की मुनुगोडे उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिलनी चाहिए थी। लेकिन यहां तो कांग्रेस अपनी सीट तक नहीं बचा सकी। यह सीट 2018 में कांग्रेस ने जीती थी लेकिन इस बार उसका प्रत्याशी जीत तो क्या जमानत तक नहीं बचा सका।

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राहुल गांधी तेलंगाना में यात्रा के दौरान। फोटो साभार एआईसीसी

-द ओपिनियन-

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दक्षिण भारत चरण में हजारों लोग जुड़े और कांग्रेस और विशेषकर राहुल समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ी । राहुल के साथ हर वर्ग के लोग यात्रा में नजर आए। चाहे गरीब हो या अमीर, हिन्दू हो या मुसलमान, छात्र हो या व्यवसायी। इससे एक बारगी यह अभास तो हुआ कि शायद दक्षिण भारत में कांग्रेस को पुनर्जीवन मिल जाएगा। क्योंकि हिन्दी भाषी विशेषकर उत्तर भारत के इलाकों में तो फिलहाल लोग भगवा के रंग में रंगे हैं। छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों के उपचुनाव इसकी बानगी भी पेश करते हैं। लेकिन विडंबना यह रही कि राहुल की यात्रा ने भीड़ तो खूब जुटाई लेकिन यह भीड़ वोट में तब्दील नहीं हुई। इससे साफ जाहिर है कि वोट देना और यात्रा को समर्थन दो अलग बाते हैं। यदि ऐसा होता तो तेलंगाना की मुनुगोडे उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिलनी चाहिए थी। लेकिन यहां तो कांग्रेस अपनी सीट तक नहीं बचा सकी। यह सीट 2018 में कांग्रेस ने जीती थी लेकिन इस बार उसका प्रत्याशी जीत तो क्या जमानत तक नहीं बचा सका।

राहुल की भारत जोड़ो यात्रा ने तेलंगाना में 11 दिन बिताए और महाराष्ट्र में प्रवेश से पूर्व दक्षिण भारत में ही उनकी यात्रा रही। तमिलनाडु से शुरू हुई इस यात्रा ने दक्षिण के पांचों राज्यों केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को नापा लेकिन विचारणीय मुद्दा यह है कि राहुल की इस यात्रा से उन्हें या उनकी पार्टी को क्या लाभ होने वाला है। जबकि उन्होंने इस यात्रा की वजह से गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों के प्रचार से खुद को अलग रखा है। इन दोनों राज्यों में ही भाजपा की सरकार हैं और यहां कांग्रेस को एंटीइनकंबेंसी का लाभ मिल सकता था। विशेषकर हिमाचाल प्रदेश में जहां प्रति पांच वर्ष में सरकार बदलने की परंपरा है।

तेलंगाना में यात्रा के दौरान राहुल गांधी एक बच्चे को दुलराते हुए। फोटो साभार एआईसीसी

राहुल इस यात्रा के दौरान दक्षिण भारत के चरण में अपने साथ जुड़ने वाले लोगों को देखकर कई बार अभिभूत नजर आए। हालांकि उनके साथ आने वालों में ज्यादातर सामाजिक कार्यकर्ता और गैर सरकारी संगठनों के लोग और आम जन रहे। कांग्रेस के नेता तो समय-समय पर आकर चलते बने। इनमें चाहे सचिन पायलट रहे हों या अशोक गहलोत या पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे। लेकिन उनके साथ जुड़े लोगों में आम जन थे। यह किसान, श्रमिक, महिलाएं, छात्र-छात्राएं, शिक्षाविद, लेखक, पत्रकार और एसे अनेक लोग थे। इन लोगों की मौजूदगी पर राहुल गांधी ने कहा भी कि केन्द्र सरकार की नीतियों के कारण आम जन परेशानी में हैं।
राहुल ने कई बार कहा कि उनकी यात्रा भारत को एकजुट करने और हाशिए पर रहने वालों की बात उठाने के लिए है। यहां तक कि उनकी यात्रा की सफलता से कांग्रेस के ही कुछ लोग भी आश्चर्यचकित नजर आये। उनको भी लग रहा था कि कम से कम दक्षिण भारत में तो कांग्रेस अपना पुराना गौरव हासिल कर सकेगी। संकट के समय हमेशा दक्षिण ने कांग्रेस की मदद की है। चाहे इंदिरा गांधी रही हों या राहुल गांधी उन्हें जब उत्तर भारत में नकारा गया तो उन्होंने दक्षिण से ही जीतकर संसद में प्रवेश किया। लेकिन मुनुगोडे विधानसभा उपचुनाव परिणाम ने कांग्रेस को नए सिरे से सोचने पर विवश कर दिया है।
दूसरी ओर राहुल समर्थकों का मानना है कि राहुल गांधी फिलहाल इस यात्रा से यह तो साबित करने में सफल रहे हैं कि उनकी सोशल मीडिया के मार्फत जो छवि गढी गई वह उससे एक दम अलग हैं। वह कितने संवेदनशील हैं यह बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते या किसी बच्चे को अपनी गोद में लेकर दुलराते अथवा अपनी मां सोनिया गांधी के जूते के फीते बांधते फोटो से जाहिर हो जाता है। उन्होंने यह भी दिखा दिया कि दमखम के मामले में उनका कोई सांई नहीं है। फ़िलहाल उनकी यात्रा की सफलता का मूल्यांकन राजस्थान में प्रवेश के साथ होगा जहां कांग्रेस की सरकार है।

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