आखिरकार झुकी ही रही पीसा की मीनार…

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पीसा की मीनार क्षेत्र का विहंगम दृश्य। फोटो अजातशत्रु

मेरा सपना… 23

 

-शैलेश पाण्डेय-

इटली के पडोवा में रात्रि विश्राम कुछ सुखद नहीं रहा। यूरोप में पहली बार तेज गर्मी का सामना करना पड़ा उस पर होटल में कमरे में एसी खराब था। टूर मैनेजर राहुल जाधव के होटल स्टॉफ से काफी हील हुज्जत के बाद हम दो परिवारों के कमरे बदले गए लेकिन कोई खास राहत नहीं मिली। लेकिन सुबह का बेसब्री से इंतजार था क्योंकि विश्व विख्यात पीसा टॉवर को देखना था। पडोवा से करीब तीन घंटे का सफर कर हम महान वैज्ञानिक गेलीलियो के जन्मस्थली पीसा पहुंचे। यह पीसा की मीनार के लिए ही नहीं बल्कि इटली के प्रमुख औद्योगिक शहर के तौर भी प्रसिद्ध है। यदि आप इटेलियन फूड के शौकीन हैं तो यहां आपको ऑथेंटिक पिज्जा और पास्ता खाने को मिलेगा। हालांकि मिर्च मसाले के शौकीनों को यह उतना नहीं भाएगा जैसा भारत में आमतौर मिलता है। लेकिन यदि आपने दिल्ली के बिग चिल जैसे रेस्त्रां में इन व्यंजनों का स्वाद लिया है तो फिर आपको मजा आ जाएगा।

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हमारे बाएं ओर पीछे एक पर्यटक पीसा की झुकी मीनार को थामते हुए की फोटो खिंचवाते हुए।

पीसा शहर के टूर की शुरूआत मिनी ट्रेन नुमा व्हीकल से की। इस 45 मिनट के ऑडियो आधारित टूर में रोमन और गोथिक आर्किटेक्चर की आकर्षक इमारतें देखने को मिली। हमने वाडूज में भी इसी तरह से सिटी टूर किया था लेकिन यहां सड़कों पर वाहन और पैदल चलने वाले लोग बहुत मिले। यूरोप के अन्य देशों के मुकाबले इटली में चर्च और ऐसे ही धार्मिक स्थल अधिक देखने को मिल रहे थे। क्योंकि हमें पीसा की मीनार देखने की अधिक उत्सुकता थी इसलिए इस टूर को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। सिटी टूर खत्म होने पर एक इतालवी रेस्त्रां में पिज्जा और पास्ता का लुत्फ लिया। इनके साथ फ्रेंच फ्राई थे। यह नीलम जी जैसों को खास पसंद नहीं आए और उन्होंने बेमन से ही थोड़ा बहुत खाया लेकिन मैंने और अजात ने भरपूर आनंद लिया। इसके साथ आइसक्रीम ने मजा और बढ़ा दिया। पहली बार किसी रेस्त्रां में इतनी ज्यादा भीड़ देखी। इसी से इस रेस्त्रां के यहां के पिज्जा और पास्ता के स्वाद का पता चल जाता है।

यहीं से हम पैदल पीसा मीनार की ओर बढ़े । हालांकि आसमान से आग बरस रही थी लेकिन पीसा की मीनार का आकर्षण हमें अपनी ओर खींचे चला जा रहा था। संकरी गलियों के बीच से गुजरते हुए जब पीसा मीनार के क्षेत्र ‘पियाज़ा देई मीराकोली’ में पहुंचे तो दूर से ही ‘लीनिंग टावर ऑव पीसा’ के साथ सैकड़ों की संख्या में मौजूद पर्यटक नजर आए। दूर से ही यह 179 फीट ऊँची इमारत एक ओर झुकी नजर आई। यह विशालकाय परिसर में स्थित है। जिसमें कई अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतें भी हैं। इस परिसर को कैथेड्रल स्क्वायर के तौर पर भी जाना जाता है।

पूरा क्षेत्र करीब 22 एकड़ में दीवार से घिरा है। पूरे परिसर में मध्ययुगीन यूरोपीय आर्किटेक्चर देखने को मिलता है। अभी तक हम जिन यूरोपीय देशों में गए वहां आर्किटेक्चर ही प्रमुख आकर्षण है। लेकिन इटली की कुछ हद तक बराबरी पेरिस ही कर सकता है। इसका विवरण फ्लोरेंस और रोम तथा वेटिकन के टूर के समय करेंगे। पीसा की मीनार के क्षेत्र में हरे-भरे लॉन, कैथेड्रल, बैपटिस्टरी और स्मारक कब्रिस्तान का आर्किटेक्चर देखने लायक है। इसके बावजूद संगमरमर से निर्मित पीसा की मीनार की खूबसूरती से ज्यादा लोग इसके झुके होने को अधिक तवज्जो देते हैं। पर्यटकों का हुजूम इसके आसपास ही मंडराता मिलेगा। बड़ी संख्या में पर्यटक इस अंदाज में फोटो खिंचाते हैं मानो वे मीनार को सीधा करने या गिरने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में एक ऐसा फोटो भी देखा जिसमें हाथी पीछे के दो पैरों पर खड़ा होकर आगे के दो पैरों से पीसा की मीनार को थामे हुए है।

हालांकि गर्मी और धूप बहुत थी लेकिन तेज हवाओं की वजह से राहत भी महसूस हो रही थी। हवा की तेजी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ट्रिपॉड पर मोबाइल लगाकर ब्लू टूथ से फोटो खींचने की कोशिश में अजातशत्रु का महंगा मोबाइल फर्श पर धड़ाम से जा गिरा। गनीमत थी कि टूटा नहीं। कैम्पस इतना बड़ा था कि बाहर से ही अन्य इमारतों को देखा उनके अंदर जाने की जहमत नहीं उठाई। इसके बावजूद थकान होने लगी थी। लेकिन घूम फिरकर वापस पीसा की मीनार के पास पहुंच जाते। यह एफिल टावर के बाद का सबसे बड़ा आकर्षण था।

पीसा की मीनार के पास विभिन्न एंगल से फोटोग्राफी करने के बाद हम राहुल जाधव द्वारा तय किए समय पर बस के पास पहुंच गए जहां से हमें ऐतिहासिक फ्लोरेंस सिटी के लिए रवाना होना था। यहीं हमें रॉबर्ट को विदा देना था। यहां से हमारे साथ नई बस कैप्टन क्रिस्टीना जुड़ी जो इतालवी मूल की थीं। क्रिस्टीना का भी अंग्रेजी के मामले में रॉबर्ट जैसा हाल था। लेकिन जहां रॉबर्ट अनुशासन के पक्के लेकिन बहुत व्यवहार कुशल और नम्र इंसान थे वहीं क्रिस्टीना तेज तर्रार और सबसे भिड़ जाने वाली शख्सियत थीं।

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