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नामीबिया से कुनो-पालपुर लाया गया चीता

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। केंद्रीय राजनीति में राजस्थान के कमजोर नेतृत्व दखल के कारण जिस तरह से ईआरसीपी (ईस्टर्न राजस्थान केनाल प्रोजेक्ट) सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा हासिल नहीं हो पाया,वैसे ही कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के उपर्युक्त पाए जाने के बावजूद यहां चीता बसाने का सपना साकार नहीं हो सका। यही वजह है कि कई दशकों पहले बीती सदी में ही वर्ष 1952 में देश में विलुप्त हो चुके चीतों के बरसों बाद कदम मध्य प्रदेश की कूनो अभयारण्य में पड़े और इस दुर्लभ का अवसर का साक्षी बनने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी वहां गए थे।

कृष्ण बलदेव हाडा

हर कोई अपनी राजनीति चमकाने में लगा है

इस बारे में कोटा जिले की सांगोद विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर ने भी स्पष्ट कहा है कि कोटा का कोई नेता चीते की चिंता करने को तैयार नहीं है। हर कोई अपनी राजनीति चमकाने में लगा है जबकि कोटा, झालावाड़ और चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा क्षेत्र तक विस्तृत मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीते को बसाया जाना कम महत्वपूर्ण नही है क्योंकि यह आने वाले समय में कोटा में पर्यटन के विकास और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता था। राजस्थान सरकार ने दरा के इस 80 वर्ग किलोमीटर के एनक्लोजर में चीते बसाने पर अघिकारिक तौर पर अपनी सहमति दे दी थी लेकिन भरत सिंह को छोड़ किसी ओर सक्षम राजनीतिक व्यक्ति ने कोई गंभीर पहल तो क्या इस पर राय तक व्यक्त नहीं की। वन्यजीव और पर्यावरण प्रेमियों में इस बात को लेकर गहरी चिंता है कि नामीबिया की अध्ययन दौरे पर आई टीम ने मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य के साथ-साथ कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में दरा अभयारण्य क्षेत्र वाले 80 वर्ग किलोमीटर के एनक्लोजर को अफ्रीकन चीते बसाने की दृष्टि से उपयुक्त पाया था लेकिन स्थानीय के साथ प्रदेश नेतृत्व और केंद्र में कोटा का पक्ष मजबूती से रख पाने में विफलता के साथ राज्य के वन्यजीव विभाग की अकर्मण्यता के कारण वर्ष 1952 के बाद देश से विलुप्त घोषित कर दिए गए चीतों को भारत में फिर से आबाद करने का श्रेय मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के हिस्से में गया।

ऐन वक्त पर हाथ मलते हुए ही रह गए

राजस्थान का वन्यजीव विभाग तो कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के साथ बारां जिले के शेरगढ़ अभयारण्य को भी चीते बसाने के लिए उपर्युक्त बताने का दावा करते हुए ऐन वक्त पर हाथ मलते हुए ही रह गया। नामीबिया के चीता विशेषज्ञों के स्थानीय पारिस्थितिकी की परिस्थितियों का अवलोकन करने के बाद जब उनके द्वारा मुकुंदरा के दरा अभयारण्य क्षेत्र वाले हिस्से को चीता बसाने की दृष्टि से उपर्युक्त पाए जाने के उपरांत राज्य के वन्यजीव विभाग ने इसी दावे को मजबूती के साथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के समक्ष मजबूती से रखने के बजाय इसी दौरान एक नया शगूफा सामने लाया गया कि बारां जिले के शेरगढ़ अभयारण्य में चीता बसाने की विपुल संभावना है। अब इस नए दावे के पक्ष में कुछ महीनों पहले वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ड़ब्ल्यूआईआई) की एक टोली के शेरगढ़ अभयारण्य क्षेत्र के दौरे का हवाला दिया गया है कि टीम ने शेरगढ़ को चीते बसाने के लिए उपर्युक्त पाया है, जबकि शेरगढ़ अभयारण्य मात्र 90 वर्ग किलोमीटर के दायरे में ही फैला होने के वजह से यहां पर्याप्त जगह का अभाव है। बाद में देहरादून से आई भारतीय वन्यजीव संस्थान की टीम ने भी प्रारंभिक अवलोकन के बाद इस बात की तस्दीक की कि शेरगढ़ अभयारण्य का क्षेत्र कम है लेकिन मीड़िया रिपोर्ट के अनुसार साथ ही यह सुझाव भी दे ड़ाला कि अभयारण्य के नजदीकी क्षैत्र के सूरपा गांव को विस्थापित किया जा सकता है और आसपास की वन विभाग की अन्य जमीनों को सम्मिलित करने करके चारों ओर फ़ैंसिग करवाकर तीन-चार चीते यहां आबाद किए जा सकते हैं।

मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में आबाद गांव को वन्य जीव विभाग अभी तक विस्थापित नहीं कर पाया

इस हास्यास्पद कथन के विपरीत जमीनी हकीकत यह है कि एक दशक पहले अस्तित्व में आ चुके मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में आबाद गांव को वन्य जीव विभाग अभी तक विस्थापित नहीं कर पाया है और न ही यहां सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त हैं। शिकारियों के अभयारण्य क्षेत्र में घुस जाने, सुरक्षा के लिए बनाई गई दीवारों को आसपास आबाद गांव के पशुपालकों के अपने मवेशियों को घुसा देने के लिए तोड़ने की घटनाएं आम है। इन्हीं खोखले दावों के बीच वन विभाग शेरगढ़ अभयारण्य में चीते बसाने की तैयारी में जुट भी गया था एवं शेरगढ़ क्षेत्र के सूरपा ही नहीं बल्कि पांडाखोह गांव का भी विस्थापन की उम्मीद करते हुए शेरगढ़ अभयारण्य का क्षेत्रफल 90 वर्ग किलोमीटर से 300 वर्ग किलोमीटर तक बढ़ाने की तैयारी की गई। इसके लिए इसी साल एक अगस्त से सर्वे शुरू करने की भी तैयारी थी, लेकिन अब उस सर्वे का कोई अता-पता नहीं है। हालांकि यहां पांच तेंदुए छोड़े गए। सूरपा माला-नाहरिया माला ईको ट्रेल तैयार किया गया लेकिन नतीजा सिफर ही रहे। स्थिति यह बनी कि कोटा एवं बारां दोनों जिलों की सीमा से सटे मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाकर आठ चीते छोड़ भी दिए गए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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