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युंगफ्रा में बर्फ का साम्राज्य। फोटो अजातशत्रु

मेरा सपना…18

-शैलेश पाण्डेय-

स्विस एल्पस की गोद में बसे इंटरलेकन के सम्मोहन से निकलकर अब हमें एक ओर भव्य स्थल युंगफ्रा (Jungfrau) का सफर तय करना था। हालांकि बर्नीस ओबरलैंड (Bernese Overland) क्षेत्र में स्थित युंगफ्रा जाने के लिए इंटरलेकन से ट्रेन की उपलब्धता की भी जानकारी मिली लेकिन हमारा यूरोप का सफर मर्सिडीज बेंज की बस से था इसलिए इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। युंगफ्रा का रेलवे स्टेशन यूरोप का सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित है। 4158 मीटर की उंचाई पर स्थित होने से युंगफ्रा को ‘टॉप ऑफ यूरोप’ भी कहा जाता है। यह असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य और अद्वितीय भूवैज्ञानिक विशेषताओं के कारण स्विट्जरलैंड आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद है।

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युंगफ्रा के सफर पर ग्लोबल फैमिली के सदस्य।

हमारे बस कैप्टन रॉबर्ट के पहाड़ी रास्तों पर कुशलता से बस को दौड़ाने के साथ ही हम स्विस एल्पस के नैसर्गिक सौंदर्य में खोते गए। रास्ते में पहाड़ियों पर बसे मकान और हरे भरे मैदान या पेड़ों के झुरमुट ही नजर आते थे। नीचे जगह- जगह नदी दिखती जिसका पानी दूर से भी कांच की तरह साफ नजर आता। करीब एक घंटे बाद जब युंगफ्रा के बेस केम्प ग्रिंडेलवाल्ड टर्मिनल (Grindelwald Terminal) पर पहुंचे तब पता नहीं था कि हम प्रकृति के ऐसे नजारे से रूबरू होने जा रहे हैं जिसकी स्वर्ग से तुलना की जाती है।

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युंगफ्रा के शिखर पर।

टूर मैनेजर राहुल जाधव ने प्रत्येक सदस्य को टिकट थमाने के साथ ही कह दिया था कि इसे पूरे समय संभालकर साथ रखना है। हम पहले एक ट्राइकेबल इगर एक्सप्रेस (Tricable Eiger Express) से एइगर ग्लेशियर (Eiger Glacier) स्टेशन पहुंचे। यह ट्राइकेबल इगर एक्सप्रेस भारत में केबल कार जैसा लेकिन तेज गति से चलने वाला होता है।

यहां से हमें युंगफ्रा तक कोगवील ट्रेन (cogwheel train) से जाना था। ट्राइकेबल के सफर के दौरान चारों ओर का दृश्य देखने का अलग ही अनुभव था। हालांकि उंचाई से डरने वाले लोगों के लिए यह अनुभव घबराहट भरा भी था। जब कोगवील ट्रेन के लिए स्टेशन पहुंचे तो हमारी एक टीम साथी का टिकट खो चुका था। इससे कुछ परेशानी हुई लेकिन किसी तरह समाधान निकाला गया।

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युंगफ्रा के शिखर पर स्विस ध्वज के साथ।

जिस ट्रेन में हमें सफर करना था वह सुरंग में संचालित होती है इसलिए बाहर कुछ दिखाई नहीं देता। यह 11333 फीट पर यूरोप के सबसे ऊँचे रेलवे स्टेशन पर उतारती है। यहीं से हम युंगफ्रा के शिखर पर पहुंचते हैं। शिखर क्या था चारों ओर ऊँचे पहाड़, ग्लेशियर और आसमान के बादल के समन्वय का जोड़ से जो अहसास हो रहा था उसे बयां नहीं कर पा रहे थे। इस दौरान फेसबुक पर कुछ चित्र पोस्ट किए तो हमारे मित्र सिद्धार्थ भट्ट ने कमेंट किया कि आप तो स्वर्ग में पहुंच गए हो। सिद्धार्थ जी ने बिल्कुल सही टिप्पणी की थी क्योंकि इससे बाद अहसास हुआ कि यह तो वाकई स्वर्ग समान है।

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बर्फ में कलाकारों द्वारा उकेरी कलाकृतियां।

यहीं पर स्नो भी थी। स्नो का मेरा पहला अनुभव था इसलिए फिसलन के बावजूद इस पर चलने और फिल्मों में देखे दृश्यों की तरह एक दूजे पर स्नो बॉल्स फेंकने का ‘नाटक’ भी किया। इस मजे के बीच तेज शीत लहर ठिठुरा रही थी। राहुल ने पहले ही बता दिया था इसलिए जैकेट, मफलर जैसे गर्म कपड़ों से लदे पहुंचे थे लेकिन यह शीतलहर से बचाव में असरदार नहीं थे। नीलम जी तो ठिठुरने के कारण शीघ्र वहां से हटकर ऐसे स्थान पर आ गईं जो बंद था लेकिन मैंने अजातशत्रु के साथ काफी देर तक चारों ओर घूमकर अप्रतिम दृश्य को जेहन में उतारने का प्रयास किया।

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अल्पाइन सेंसेशन।

अभी हमें यहां और भी कई अनुभवों से गुजरना था इसलिए चोटी से नीचे आए जहां आइस पैलेस देखना था। बर्फ की सिल्लियों से बने सुरंगनुमा आइस पैलेस में बर्फ से कई तरह की आकृतियां उकेरी हुई थीं। यह बिल्कुल ऐसा महसूस होता था मानों किसी ने कांच को सांचे में ढालकर पेंगुइन, भालू और अन्य कलाकृतियां बनाए हों। लेकिन यह कलाकारों की बर्फ की तराशी कलाकृतियां थीं। एक जगह सिंहासन भी था जिस पर बैठकर सभी फोटो खिंचवा रहे थे लेकिन यह अनुभव भरी ठण्ड में बर्फ की सिल्ली पर बैठने जैसा था। यहां बर्फ को जिस तापमान में फ्रीज किया गया था उसे छूने पर भी आपके हाथ गीले नहीं होते। हालांकि यह रोमांचक अनुभव था लेकिन फर्श भी बर्फ का होने से फिसलने का खतरा था। हमारे एक साथ फिसलने से चोटिल हो गए। ऐसा ही एक स्थान अल्पाइन सेन्सेशन था जहां रंगीन रौशनी से आकृतियां बनती थीं। यह युंगफ्रा के निर्माण में योगदान देने वाले श्रमिकों को समर्पित था।

परिसर में हर जगह कांच लगी खिड़कियां थी जहां से आप बाहर ग्लेशियर और पहाड़ों की सुंदरता का नजारा ले सकते थे। इसी परिसर में रेस्त्रां, स्मृति चिन्ह इत्यादि की दुकानें भी थीं। यहां के अनुभव को बनाए रखने के लिए एक पासपोर्ट भी दिया गया था जिस पर युंगफ्रा का सफर पूरा करने के बाद वीजा की मोहर भी लगाई जाती। हम सभी ने इसे यादगार के तौर पर रखा।

हम आइसक्रीम और कॉफी का मजा ले रहे थे तभी अन्य पर्यटकों में से कुछ को ऑक्सीजन की कमी की वजह से उल्टी और चक्कर आने की समस्या हुई। हमें राहुल ने पहले ही इस बारे में बता दिया था और कहा था कि यदि समस्या हो तो आराम करें। लेकिन हम भाग्यशाली थे कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब शाम हो चुकी थी इसलिए वापस लौटना था। पहले ट्रेन और फिर ट्राइकेबल इगर एक्सप्रेस से बेस पर पहुंचे। यहां से बस से होटल लौटने के दौरान रास्ते में इंडियन रेस्त्रां में भोजन किया। अगले दिन एक और रमणीक स्थल माउंट टिटलिस के सफर की तैयारी करनी थी।

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