तालिबान ने की भारत से मदद की गुहार, निवेश की दरकरार

किसी भी मदद से पहले भारत के हितों की गारंटी दे तालिबान , भारत अपने जख्मों को भूल नहीं सकता

-द ओपिनियन-

तलिबान काबुल पर काबिज हुआ तो पाकिस्तान को सबसे ज्यादा खुशी हुई थी। तब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पूरी दुनिया से तालिबान के कब्जे के मान्यता देने व उसकी मदद करने की हिमायत की थी। पाकिस्तान को लगता था कि अफगानिस्तान उसके आतंकी मंसूबों को पूरा करने के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन जाएगा जहां से वह भारत के खिलाफ आतंकियो को सहज ही इस्तेमाल कर सकेगा। लेकिन यह मिठास ज्यादा दिन रही। अब तालिबान को जब देश चलाना पड रहा है तोउसको भारत कीयाद आ रही है। वह देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भारत की मदद चाहता है। भारत ने तालिबान के सत्ता में आने से पहले हमीद करजई व बाद की सरकार के कार्यकाल में अफगानिस्तान में काफी बडा निवेश किया और वहां के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए भी कई परियोजनाएं शुरू कीं। भारत ने काबुल में संसद भवन बनाकर अफगानिस्तान को दिया। इसके अलावा एक बांध व अन्य कई परियोजनाएं पूरी की और कई पर काम चल रहा था। लेकिन तालिबान के काबुल मंे काबिज होने के बाद भारत ने वहां से अपने दूतावास कर्मियों को वापस बुला लिया था। लेकिन अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देना जारी रखा। इसी के लिए भारत ने अपनी तकनीकी टीम को वहां तैनात किया था। भारत अब भी तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है। हाल में काबुल में अफगानिस्तान के शहरी विकास व आवास मंत्री हमदुल्ला नोमानी ने भारतीय तकनीकी टीम के प्रमुख से मुलाकात की और भारतीय निवेश और भारतीय मदद वाली बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने की बात कही। इस तरह तालिबान ने भारत की ओर दोस्तीक हाथ बढाता नजर आ रहा है लेकिन उसके मंसूबे को समझना बहुत जरूरी है। उस पर सहज रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता। तलिबान ने भारत को बहुत जख्म दिए हैं। भारत ने एक मित्र देश के रूप में अफगानिस्तान की समय समय पर बहुत मदद की है लेकिन पाकिस्तान के दुष्चक्र में फंसकर तालिबान ने भारत से खिलाफ दुश्मनों जैसा व्यवहार किया और कश्मीर में आतंककारी हिंसा को समर्थन व सहायता दी। ऐसे में तालिबान की किसी भी तरह की मदद के पहले भारत को जरूरी ऐहतियाती कदम भी सुनिश्चित कर लेने चाहिए कि क्या उस पर विश्वास किया जा सकता हैै। मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार तालिबान ने भारत के प्राइवेट सेक्टर से अफगानिस्तान में निवेश करने का आग्रह किया है ताकि उसकी माली हालत सुधर सके। बात साफ है कि भारत वहां निवेश करता है या भारत का निजी क्षेत्र वहां निवेश करता है तो परियोजनाओं का काम शुरू होगा, रोजगार के अवसर पैदा होंगे और दुनिया में अल थलग पडंे अफगानिस्तान को मुख्यधारा में लौटने का फिर से अवसर मिल जाएगा।
अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति पाकिस्तान को फूटी आंख भी नहीं सुहाती। वह इसके खिलाफ लगातार साजिश रचता रहा है। लेकिन लगता है पाकिस्तान के भी तालिबान से अब रिश्ते सामान्य नहीं है। हाल में दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई है। डुरंड सीमा रेखा पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान में मतभेद चल रहे हैं।अफगान सीमा पर पाकिस्तान व तालिबान में तनातनी की स्थिति है।पाकिस्तान अफगानिस्तान को अपनी मनमर्जी से चलाना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब अफगानिस्तान को भारतीय निवेश चाहिए तो उसे सबसे पहले भारत के हितों की रक्षा की गारंटी भी लेनी होगी। वह पाकिस्तान की गोद में बैठकर भारतीय निवेश की उम्मीद नहीं कर सकता। भारत से दोस्तान रिश्तों के लिए जरूरी है कि तालिबान खुद आगे बढकर नर्इ्र पहल करे। भारत वहां कोई परियोजना शुरू करता है तो वहां उसके श्रमिकों की, उसके निवेश की क्या गारंटी है? ऐसे में तालिबान को जमीनी स्तर पर अपने रुख में बदलाव लाना होगा और उसे साबित करना होगा।

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments