shakoor anwar books

ग़ज़ल

शकूर अनवर

शकूर अनवर
अपना ही बोझ काॅंधों पे ढोते हुए से हम।
सहरा* में अपने आप को खोते हुए से हम।।
*
अपने दुखों के गहरे समंदर के दरमियाॅं।
ख़ुशियों की अपनी नाव डुबोते हुए से हम।।
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साज़िश कहें इसे या मुक़द्दर को दोष दें।
बेदार* है ज़माना तो सोते हुए से हम।।
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मस्जिद की सीढियाॅं हों कि मंदिर का द्वार हो।
सद भावना के फूल पिरोते हुए से हम।।
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ज़ुल्मो सितम* की फ़स्ल गले काटती हुई।
अम्नो अमाॅं* के बीज ही बोते हुए से हम।।
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मस्ती में चूर तुम कहीं बज़्मे निशात में।
दुनिया के ग़म में पलकें भिगोते हुए से हम।।
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अपना ही क़िस्मतों का सितारा नहीं बना।
“अनवर” ज़मीं पे ख़ाक ही होते हुए से हम।।
*
शकूर अनवर
सहरा*रेगिस्तान
बेदार* जागृत
ज़ुल्मो सितम*अन्याय अत्याचार
अमनो अमाॅं* सुख शांति चैन
बज़्मे निशात*खुशियों की महफ़िल
ख़ाक* मिट्टी धूल

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