हंगामेदार रहा संसद का बजट सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित

नई दिल्ली। संसद का बजट सत्र गुरुवार को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार समाप्त हो गया, लेकिन सत्र का चार सप्ताह लंबा दूसरा चरण संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित करने की विपक्ष की मांग और सत्ता पक्ष की कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लंदन में की गई लोकतंत्र पर हमले वाली टिप्पणी के लिए माफी मांगने की मांग को लेकर हंगामे की भेंट चढ गया।

सूरत की एक अदालत द्वारा 23 मार्च को एक आपराधिक मानहानि के मामले में राहुल गांधी को दोषी ठहराए जाने और इसके अगले दिन उनको लोकसभा से अयोग्य घोषित किए जाने के बाद सरकार और विपक्ष के बीच कड़वाहट तेज हो गई।
लोकसभा और राज्यसभा में गुरुवार को भी राहुल गांधी और अडानी का मुद्दा गूंजा। सत्ता पक्ष ब्रिटेन में राहुल गांधी की ओर से लोकतंत्र पर दिए गए बयान को लेकर माफी की मांग पर अड़ा रहा तो विपक्ष भी अडानी मामले में जेपीसी गठन की मांग पर अडिग रहा। दोनों मुद्दों पर हंगामे के बाद लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।

कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने संसद के बजट सत्र के आखिरी दिन एकजुटता दिखाते हुए आगे भी मिलकर काम करने का संकल्प लिया और आरोप लगाया कि इस सत्र में कार्यवाही बाधित रहने के लिए पूरी तरह सरकार जिम्मेदार है।

सत्र खत्म होने पर विपक्षी सांसदों ने संसद से विजय चौक तक तिरंगा मार्च निकाला। इस मार्च में 20 पार्टियां शामिल हुईं। तिरंगा मार्च में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी शामिल हुए। इस दौरान विपक्षी दलों ने दावा किया कि अगर सरकार का यही रुख रहा तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा और देश तानाशाही की तरफ बढ़ जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि मोदी सरकार लोकतंत्र के बारे में बातें तो बहुत करती है, लेकिन कहने के मुताबिक चलती नहीं है। 50 लाख करोड़ रुपये का बजट सिर्फ 12 मिनट में बिना चर्चा किए पारित कर दिया गया।

मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि कभी आपने सुना है कि सरकार के लोग ही माफी मांगो-माफी मांगो बोलकर सदन न चलने दें? वे संविधान को नहीं मानते, लोकतंत्र को नहीं मानते। खरगे ने दावा किया कि सत्तापक्ष की तरफ से संसद की कार्यवाही में बार बार व्यवधान डाला गया। ऐसा पहली बार हुआ है। पूर्व में ऐसा कभी नहीं देखा। खरगे ने आरोप लगाया कि सरकार की मंशा थी कि सत्र नहीं चले। इस व्यवहार की हम निंदा करते हैं। अगर सरकार का रुख ऐसा ही रहता है तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा और देश तानाशाही की तरफ बढ़ जाएगा।

 

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