
-देवेंद्र यादव-

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी ने नहीं बल्कि कांग्रेस नेताओं और चुनावी रणनीतिकारों ने हराया है। हरियाणा विधान सभा चुनाव शुरू होने से पहले और टिकट बटने के बाद तक लिखता रहा कि राहुल गांधी को कांग्रेस के भीतर बैठे नेताओं के जाल से बचना और निकलना होगा, तभी कांग्रेस देश और राज्यों में मजबूत होकर चुनाव जीत पाएगी। हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस और राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में बैठे नेताओं के जाल के बीच मैं फंसा हुआ देखा जा सकता था।
हरियाणा विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले और चुनाव के अंत तक भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को अपने जाल में फंसा कर रखा। राजनीतिक गलियारों और मीडिया के भीतर चर्चा चलती रही कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार रही है और कांग्रेस चुनाव जीत रही है। जब पलवल की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से यह कहा कि यह हरियाणा चुनाव में उनकी आखिरी सभा है तब कांग्रेस के नेता खुश हुए और कहने लगै कि मोदी ने हार स्वीकार कर ली है, जबकि यह भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों की एक रणनीति थी कांग्रेस को जाल में फंसाने की। भाजपा के रणनीतिकार इसमें सफल भी रहे। कांग्रेस इस मुगालते में रही कि भारतीय जनता पार्टी हरियाणा में चुनाव हार रही है और इधर कांग्रेस के नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर अपने-अपने दावे ठोकते हुए नजर आए। भले ही हरियाणा के यह नेता राहुल गांधी के सामने एकजुट नजर आ रहे थे मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर एकजुट दिखाई नहीं दे रहे थे। उनके मन में तो यही सवाल उठ रहा था कि भाजपा जा रही है और कांग्रेस आ रही है और दिल में मुख्यमंत्री की कुर्सी चहल कदमी कर रही थी। जब राहुल गांधी भारत में थे तब कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों ने हरियाणा चुनाव में एक भी प्रत्याशी घोषित नहीं किया था। जैसे ही राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर गए कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी और उसमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों को लगभग 70 टिकट दे दिए। इससे भारतीय जनता पार्टी को मौका मिल गया हरियाणा के चुनाव को दलित वर्सेस जाट और जाट वर्सेस गैर जाट का मुद्दा बनाने का।
राहुल गांधी ने कोशिश भी की कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को एकजुट करने की, मगर तभी हरियाणा कांग्रेस चुनाव के राष्ट्रीय पर्यवेक्षक अजय माकन, अशोक तंवर को कांग्रेस में ले आए। अशोक तंवर ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल इसलिए हुए थे क्योंकि उनकी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नहीं बनती थी। मतदान से ठीक पहले कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों ने अशोक तंवर की कांग्रेस में एंट्री करवा कर अंदर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा को नाराज कर दिया।
कुल मिलाकर राहुल गांधी के पास अभी भी समय है वह कांग्रेस के भीतर बैठे नेताओं के जाल से निकले। अभी भी कांग्रेस का बब्बर शेर राहुल गांधी के साथ खड़ा हुआ है। जिसका इस्तेमाल राहुल गांधी केवल चुनाव लड़ने के लिए नहीं बल्कि संगठन को मजबूत करने के लिए भी करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)