
-प्रतिभा नैथानी-

गत 27 अक्टूबर को कपाट बन्द होने के साथ ही बैंड-बाजे और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के बीच केदारनाथ की डोली ऊखीमठ रवाना हो गई। ऊखीमठ वह जगह है जहां बाणासुर की पुत्री ऊषा, हिमालय राज की पुत्री पार्वती के विद्यालय में संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करती थी। बाद में ऊषा का विवाह भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध के साथ हुआ। इन्हीं देवी ऊषा के नाम पर ऊखीमठ का नाम पड़ा है। अगले छः महीनों तक बाबा केदार की पूजा उखीमठ में ही होगी।
इसी तरह बद्रीनाथ के कपाट भी 19 नवंबर को बंद हो जाएंगे और भगवान बद्री विशाल की डोली जोशीमठ आ जाएगी। जोशीमठ में नरसिंह भगवान के मंदिर में अगले छह महीनों तक वह पूजे जाएंगे। गंगोत्री और यमुनोत्री की डोलियां भी क्रमशः मुखबा और खरसाली के लिए रवाना हो जाएंगी।
चारधाम की यात्रा के लिए हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। विग्रह डोलियों के शीतकालीन आवास स्थल मुख्य स्थलों सा ही महत्व रखते हैं और प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी यह सभी बहुत सुंदर हैं। इनकी यात्रा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त हो सकता है।
गर्मियों में पीक सीजन की आसमान छूती कीमतों के मुकाबले भोजन और आवास के इंतज़ाम इन दिनों यहां बहुत कम दामों में उपलब्ध हैं। मौसम भी अति शीत न घाम जैसा सुखदाई है। भीड़ के नाम पर सिर्फ़ कुछ बंगाली पर्यटक दिखाई देंगे।
वैसे ईश्वर तो पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण हर दिशा में व्याप्त हैं, लेकिन धर्म-अध्यात्म संग यदि पर्यटन का लुत्फ़ भी उठाना चाहें तो हिमालय की धवल चोटियों संग नदियों के संगम के विहंगम दृश्य आपकी प्रतीक्षा में हैं।