
-लक्ष्मण सिंह-

दर्द मेरा है मैं ही संभालूँगा
दर्द तेरा है मैं ही मिटाऊँगा
छोड़ देते है निकल गया मतलब
पर तुम्हारे काम मैं ही आऊँगा
इश्क बस तुमसे किया है मैंने तो
यह विरासत को मैं स॔भलाऊँगा
बावफ़ा तुम जो रही नहीं मुझसे
पर वफ़ा कर तुझ से निभाऊँगा
दूर जाना तेरी तो रही फितरत
फासला हर हाल में घटाऊँगा
हिज्र में कटती नहीं ये शब देखो
वस्ल मिल जाए गले लगाऊँगा
ढूँढता उल्फ़त में इक सकूँ यारों
पा के फिर आगोश मुस्कुराऊँगा
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