ज़माना पूछेगा, वो एक शायर कहां गया, कभी जो रहता था इस शहर में

हमारे जाने के बाद यारों ज़माना पूछेगा तुमसे आकर, वो एक शायर कहां गया, कभी जो रहता था इस शहर में, उनसे कह दो अपने वक्त के टाइम कैप्सूल साधे शताब्दियों के सभागार में अनश्वर आसीन हूं। याद करने पर मै खयालों की इबारत में लिखा आऊंगा। आप एहसास की आंखों से मुझे पढ लेना।

mayookh
फोटो बशीर अहमद मयूख की फेसबुक वाल से साभार

 -अख्तर खान अकेला –

akhtar khan akela
अख्तर खान अकेला

बशीर अहमद मयूख साहित्य खासकर हिंदी साहित्य की दुनिया के सर्वाेच्च स्थान प्राप्त व्यक्तित्व हैं।  बशीर अहमद मयूख, जैसा नाम वैसा काम। बशीर यानि अच्छी खबर। अहमद यानी खुदा का शुक्रगुज़ार।  मयूख यानी रौशनी की किरण। यक़ीनन बशीर अहमद मयूख, हिंदी साहित्य के लिए अच्छी खबर हैं।  वोह विनम्र हैं। हर आलोचना के बाद भी विनम्र जवाब के साथ खुदा के शुक्रगुज़ार हैं। बशीर अहमद जब साहित्यिक दुनिया में मयूख बने तो यक़ीनन वोह एक साहित्य की रौशनी की किरण ही थे, जो आज एक सूरज की तरह चमक रहे हैं, जग-मग हो रहे हैं। बशीर अहमद मयूख आज़ादी की जंग के साथ आज़ादी के जश्न के गवाह हैं। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने जब  उनकी साहित्यिक सेवाओं को देखकर पहली बार साहित्यकार पेंशन शुरू की। कोटा में मयूरेश्वरमंदिर के निर्माण के बाद कुछ भाजपाई लोगों से नज़दीकियों को देखकर  तात्कालिक साहित्य एकेडमी के चेयरमेन वेदव्यास ने जब मयूख को दक्षिण पंथी , साहित्यिक सोच की तरफ बढ़ने वाला बताया तो वोह आहत हो गए। बशीर अहमद मयूख लगातार आरोपों से, उनकी उपेक्षा से आहत थे। उन्होंने कोई विवाद नहीं किया। क़लमकार थे। अल्फ़ाज़ों के जादूगर थे। उन्होंने विनम्रता से अपने शब्दबाण छोड़े। शब्द युद्ध में महारत इस योद्धा ने वेदव्यास और विरोधी साहित्यकारों द्वारा उठाये गए हर प्रश्न का लाजवाब जवाब दिया। हर अलफ़ाज़ में विनम्रता, गंभीरता थी। 14 अप्रेल 2013 को लिखे इस पत्र के ज़रिये उन्होंने एक एक आरोप के जवाब को विनम्र ऐतिहासिक दस्तावेज बना दिया। उन्होंने मयूरेश्वर मंदिर के आरोपों के बारे में भी सफाई देते हुए लिखा ,, मेरा लेखन धार्मिक नहीं आध्यात्मिक राष्ट्रीय है। मयूरेश्वर महादेव मंदिर के प्रवेश द्व्रार पर , शिलापट्ट पंक्तियों में, ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, चाहे कहो, चाहे कहो श्रीराम , सब का मालिक एक है, अलग अलग है नाम, का हवाला देकर खुद को सभी धर्मों का पैरोकार बताने का प्रयास किया।  उन्होंने लिखा कि पेंशन आपने नहीं दिलवाई। अस्थाई पेंशन हरिदेव जोशी ने शुरू की। जिसे खुद के आग्रह पर अशोक गहलोत जी ने स्थाई पेंशन कर मेरे  जीवन की व्यवस्था कर दी। मयूख ने स्पष्ट किया  उनकी हर कविता, हर साहित्य में  उनका मंतव्य साफ रहता है।

mayookh 1
फोटो बशीर अहमद मयूख की फेसबुक वाल से साभार

वोह आठवीं पढ़े लिखे  होने पर भी , बहतरीन लिख रहे हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि वर्ष 1950 से 1972 तक वोह समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे उन्होंने वर्ष 1954 में समाजवादी पार्टी से चुनाव भी लडा। फिर वोह कोटा बूंदी, झालावाड़, कोटा संभाग के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।  अब 6 जून 1972 से वोह राजनीति से सन्यास ले चुके हैं। वह लोहिया प्रभावित हैं। उन्होंने याद दिलाया , वेदों की ऋचाओं में देखें ,, तो अद्देत की आयत में अल्लाह नज़र आये, उन्हीं की पत्रिका में उनकी कविता प्रकाशित हुई है। उन्होंने अपना दुःख व्यक्त करते हुए लिखा, हुशियार कलमकारों ,, नाख़ून सियासत का शब्दों क , परिंदों के पर नोच ना जाएँ, मेरी आत्मा नोच गए। बशीर अहमद मयूख ने  सिक्स्थ क्लास में पढ़ते वक़्त उनके जीवन की पहली कविता लिखी थी। फिर तो वोह लिखते गए और अपने शहर कस्बे छबड़ा से ,कोटा, फिर संभाग, हाड़ोती फिर राजस्थान फिर सम्पूर्ण भारत फिर सम्पूर्ण विश्व के हिंदी कवि और साहित्यकार के रूप में  विश्व हिंदी के गुरु बन गए। वह रेल्वे सहित भारत सरकार की सभी हिंदी उत्थान समितियों, हिंदी समितियों के, ज़िम्मेदार, पथ प्रदर्शक, सलाहकार रहे है।
उन्होंने कविता और हिंदुत्व के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। उन्होंने ऋग्वेद की ऋचाओं का हिंदी काव्यानुवाद किया है। सभी धर्माे के प्रमुख ग्रंथों के खास- खास सूक्तों को भी हिंदी कविता की लड़ियों में पिरोया है। कोटा में उनके द्वारा निर्मित शिव मंदिर में नियमित पूजा अर्चना होती है। बिड़ला फाउंडेशन ने उनकी पुस्तक अवधूत अनहद नादष्् को बिहारी पुरस्कार प्रदान किया है। जापान के एक विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में उनके द्वारा लिखी कविता पढ़ाई जा रही है। मयूख को वर्ष 2018  में, केंद्र सरकार की ओर से, प्रवासी भारतीय केंद्र नई दिल्ली में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद द्वारा विश्व हिन्दी सम्मान से भी नवाजा गया है। आपके द्वारा 1973 में प्रकाशित ‘स्वर्ण रेख’, जिसमें ऋग्वेद की ऋचाओं का भावानुवाद है, उनका कवि सम्मेलनों में हजारों श्रोताओं के बीच में एक ऋषि की ओजस्वी वाणी में वाचन करना, अपने आपमें अद्भुद प्रयास रहा है।
श्री मयूख ने, जैन सूक्तों का, गुरुग्रन्थ साहिब का भावानुवाद कर,
एक मुस्लिम भारतीय सांस्कृतिक मन की जिस उदात्तता का परिचय
दिया है, वह अद्भुत्त  है,,,
1. ‘स्वर्ण रेख’- (ऋग्वेद की ऋचा मंत्रों का काव्य रूप है- जो 1973 में
प्रकाशित हुआ है। दो कविताएं, एन.सी. आर.टी. द्वारा प्रकाशित हिन्दी
के 11वीं व बारहवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है।
2. ‘अर्हत ’(1975) सूक्त काव्य का भाषानुवाद
3. ‘ज्योतिपथ (1984)’ वेद, उपनिषद, गीता, कुरान, गुरुग्रन्थ साहिब,
जैन, बौद्ध आगम का भाषानुवाद
4. ‘सूर्य बीज’ (1991)
5. ‘अवधू अनहद नाद श् (1998) …., बिहारी पुरस्कार प्राप्त।
6. संस्कृति के झरोखे से (2000) सांस्कृतिक निबन्ध संग्रह
‘… कवि ‘मयूख  भारतीय संस्कृति की उदात्त  धरोहर के पक्षधर हैं, उसीे मार्ग पर वे चल रहे हैं, और अपनी कविता में, साझा संस्कृति की पुष्प गंधी सुगंध अनवरत निसृत कर रहे हैं। वोह हास्य काव्य के ज़रिये साहित्य से विमुख व्यवस्था के खिलाफ भी है। बशीर अहमद मयूख ने  सैकड़ों कविताएं,  कई दजर्न पुस्तकें, सैकड़ों पत्र लिखे हैं। कवि सम्मेलनों की शोभा बढाई है।

(अख्तर खान अकेला एडवोकेट और स्वतंत्र पत्रकार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments