
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
शहर में घर बनाना अलग बात है।
जंगलों में ठिकाना अलग बात है।।
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अपना दुश्मन ज़माना अलग बात है।
आपसे दोस्ताना अलग बात है।।
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रास्ते की मुलाक़त कुछ और थी।
उसका घर आना जाना अलग बात है।।
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चाॅंदनी का अलग लुत्फ़ है दोस्तो।
धूप का शामियाना अलग बात है।।
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दर्द के इस किनारे में शिद्दत कहाँ।
ग़म के उस पार जाना अलग बात है।।
मरना जीना तो “अनवर” रहेगा सदा।
ज़िंदगी कर दिखाना अलग बात है।।
शकूर अनवर
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