लोक परंपरा का लोक उत्सव है छठ पूजा

डूबते सूर्य को अर्घ्य देना सूर्य भगवान की पूजा मूलतः पुत्र की समृद्धि के लिए पूजा है । इस व्रत में पवित्रता का बहुत ज्यादा ख्याल किया जाता है । इस समय जितने तरह के फल फूल आते हैं वो सब चढ़ता है और ठेकुआ , खजूर ठेकुआ जैसा ही होता आदि चढ़ता । इस व्रत से नदियों सरोवर व पोखरे तालाब की रौनक अलग ही हो जाती । जहां तालाब आदि नहीं हैं और छत व फ्लैट आदि पर जब छठ पूजा को करते हैं तो बड़े पारात में ही खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देने का दृश्य भी दिखता है । यह आज की सुविधा और फ्लैट संस्कृति में अपने गांव व समाज को लाना महसूस करना व अनुभव करना भी है । हम कहीं भी क्यों न चलें जाये अपने साथ परंपरा और संस्कृति को जरूर साथ लेकर चलते रहते हैं ।

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फोटो अखिलेश कुमार

-दिनेश कुमार मिश्र-

dinesh kumar mishra
दिनेश कुमार मिश्र

(एडीशनल कमीश्नर, व्यापार कर , आगरा -2)

छठ पूजा मूलतः सूर्य की पूजा है। उस सूरज देव की जिसके उपर पूरा जीवन संसार टिका है। जगत में जीवन का, उर्जा का सबसे बड़ा स्रोत यदि कोई है तो वह सूर्य की किरणें हैं। सूर्य के अस्त होने से लेकर सूर्य के उदय होने तक जीवन का समूचा विस्तार है और इस जीवन को संरक्षित करने के लिए ही जगत, लोकमानस सूर्य की पूजा करता है। यह वह आम संसार है जो सीधे-सीधे अपने देवता से जो रोज दिखता है जो हमारे जीवन में रोज आता है और हमारे होने का नित्य कारण बनता है। उस देवता से आम आदमी अपनी इच्छाओं की मांग करता है अपने और अपने परिवार के जीवन की रक्षा चाहता है वह लोक सूर्य की पूजा करता है। सूर्य के प्रकाश में अपने होने को अपने अस्तित्व को होते हुए देखता है।

 

सूर्य के पृथ्वी के साथ सहज रिश्ते का पर्व

 

यह लोक पर्व छठ पूजा सूर्य के पृथ्वी के साथ सहज रिश्ते और उस जीवन को परिभाषित करने का पर्याय है कि पृथ्वी पर जो जीवन है वह सूर्य के कारण ही है अतः इस सूर्य देव की पूजा लोक आस्था से की जाती है, इसे खुले संसार में सरोवर, पोखरा, नदी और जल स्रोत के किनारे वेदी स्थापित कर जीवन की अनंत संभावना को सामने रखकर पूजा की जाती है। इस पूजा में पूरा घर एक उत्सव की तरह अपने को शामिल कर लेता है। घर में कोई एक या दो लोग मां, भाभी, चाची आदि रहते हैं पर पूरा घर ही इस व्रत को, इस पूजा को अपनी समूची सत्ता व शक्ति से मनाता है। इस पूजा में नये अन्न, नई सब्जियों के साथ जितने भी तरह के फल लोक में प्रचलित हैं वो सब नये सूप और नये छिट्टे में या द्यौरा में रख लेते हैं, साथ में पूर्ण शुद्धता के साथ बने प्रसाद ठेकुआ, रोट, और रोट के अलग अलग रूप को बनाकर थाल में सजा कर पोखरा या जल स्रोत के किनारे ले जाते हैं। थाल परात को ले जाने का कार्य घर के पुरुष पिता या पुत्र या पति करते हैं और मां भाभी चाची मन में सूर्य देव को स्मरण करते हुए गीत गाते चलें जाते। सूर्य के अस्त होते ही सरोवर, पोखरे में असंख्य दीपक लोक आस्था के जल जाते, प्रकाश की मानव निर्मित शक्तियां सामने होती और इस तरह एक उजास एक उर्जा सूर्य के साथ ही जल तरंगों से होते लोगों के जीवन में आ जाता।

 

सूरज देव की आराधना करने का अद्भुत दृश्य

 

डूबते सूरज की पूजा कर छठ्ठी मइया का गीत गाते हुए स्त्रियां घर आती हैं और पूरी रात जागरण कर सूर्य देव को याद करते हुए पुनः भोर में ही गीत गाते हुए जल स्रोत के किनारे सब चलें जाते हैं और सूर्य के उदय होने तक सूरज देव की आराधना करने का अद्भुत दृश्य लोक के इस छठ पर्व पर देखने को मिलता है। यह लोक उत्सव लोक मेला का रूप ले लेता है यहां सब कुछ सहज भाव से भक्ति और आस्था में समा जाता है। यह पर्व जीवन की सिद्धि का बन जाता है। अपनी कामना और संतति प्राप्ति से लेकर उसके रक्षण के लिए यह पूजा मूलतः जीवन की पूजा बन जाती है। यह पर्व जीवन का उत्सव है। लोक परंपरा का लोक उत्सव है। यह पर्व जीवन को संयोजित करते हुए प्रकृति की लोकसत्ता का जीवन में पाठ है । यह प्रकाश पर्व है सूर्य की पूजा मूलतः शक्ति की और उर्जा की तथा जीवन में तेजस्विता की भी पूजा है । छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डूबते सूर्य को व्रती स्त्री पुरुष अर्घ्य देकर के पूजा का शुभारंभ करते हैं तथा अगले दिवस को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन करते हैं। छठ मनाने की परंपरा कब से कहां से शुरू हुई इस खोज में स्मृति पुराणों में जाने पर बाल्मीकि रामायण में उल्लिखित राम रावण युद्ध में निरंतर राम जब रावण से पराजित होने लगे तब महर्षि अगस्त मुनि की सलाह पर सूर्य देवता की स्तुति के परिणाम स्वरुप रावण पराजित हुआ।

 

परात में आ जाता है सरोवर 

 

आधुनिक युग में यात्रा के समय हाइवे पर जलने वाले बड़ी-बड़ी लाइटें सोलर ऊर्जा से ही संचालित हो रही है। यही नहीं बॉलीवुड के कलाकार ऋतिक रोशन की पिक्चर जिसमें एलियन किसी दूसरी दुनिया से आता है वह भी सूर्य के प्रकाश से ही ऊर्जावान रह कर अपने जीवन को संचालित कर पाता है। भारतीय परंपरा में छठ पर्व मनाने का चलन पुराना है जिसमें महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और प्रातः काल सूर्य को अर्घ देने के पश्चात ही हैं कुछ ग्रहण करती हैं। इस सीजन में होने वाले फलों सब्जियों सब को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। विशेष पकवान जो घर पर निर्मित करते हैं जैसे ठेकुआ, रोट, आधुनिक रोस्टेड प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है । गांव शहर से लेकर आधुनिक फ्लैट संस्कृति तक गांव समाज का यह उत्सव अपने ढ़ंग से गति करता चला आ रहा है। अब शहर के फ्लैट में सरोवर कहां मिलेगा तो इसका भी हल लोक मन अपने ढ़ंग से निकाल लेता है और परात में सरोवर आ जाता है। आकार प्रकार छोड़ दें तो मन में तालाब पोखर सब यहीं आ जाता है। गांव में यह उत्सव बिहार, बलिया, देवरिया से चलकर कब आया इसकी जांच करने पर मां ने बताया कि तुम्हारे पैदा होने के पहले से यह त्यौहार परिवार के तीन परिवारों द्वारा मनाया जाता था। यह बात 70 के दशक की है। घर में इस व्रत को मां द्वारा शुरू किया गया । मां ने इस व्रत का शुभारंभ नाना के घर से किया । आज व्रत को मेरे परिवार में मेरी पत्नी भाभी एवं बहनों द्वारा भी किया जा रहा है। आज मेरे गांव में पोखर पर तीन परिवारों से शुरू हुआ छठ पर्व 3000 परिवारों तक जा पहुंचा।

 

लोक की शक्ति से चल रहा है लोक आस्था का पर्व

 

यह लोक आस्था की शक्ति है कि छठ्ठी मइया की कथा सुनकर हर मन लोक आस्था से इस पर्व को अपना ही मान बैठता है। छठ पूजा के विस्तार में किसी मीडिया किसी बाजार या किसी संस्थान का कोई योग नहीं है। यह लोक आस्था का पर्व लोक की शक्ति से चल रहा है। यह हमारी लोक भावना लोक मानस के लोग जीवन से निकला हुआ उत्सव है। जिसमें समाज के अन्य लोगों के बीच रहकर प्रकृति द्वारा उत्पादित प्राकृतिक सामग्री को निर्मित करते हुए प्रकृत के साक्षात देवता सूर्य की स्तुति है । सूर्य से प्राप्त का ऊर्जा का पूरा लोक साक्षात्कार करता है। अपने जीवन में शक्ति उर्जा और जीवन पूरे वर्ष सूर्य की किरणों से ही प्राप्त करते हैं। सूर्य की ऊर्जा से अपने व अपने परिवार के लोक कल्याण में लग जाते हैं। आज इस त्यौहार को मनाने में बाजार की अपनी दुनिया अपनी शक्ति लग जाती है और लोक की ताकत को देखकर प्रकृति के इस अपूर्व पर्व को सब अपने अपने ढ़ंग से भुनाने में लग जाते हैं पर लोक , इस पर्व से जीवन की शक्ति और उर्जा को प्राप्त करना चाहता है। इसे पाने के कठिन से कठिन तप करता हर तरह के कष्ट सहता और इस व्रत को पूर्ण शुद्धता से करने में ही जीवन की सिद्धि समझता। लोक पर्व को लोगों द्वारा मनाने हेतु किसी सरकार के सहयोग की आवश्यकता नहीं लोक के इस पर्व के लिए सूर्य की शक्तियां ही काफी हैं। आइए सूर्य देव को नमन करें ।

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