
-डॉ अनिता वर्मा-

(सहआचार्य हिन्दी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैं। एकाकीपन का साथी, ज्ञान का भंडार सब कुछ विज्ञान, तकनीक, मनोरंजन, साहित्य, शोध, इतिहास, भूगोल ,समाज, घर ,परिवार ,राष्ट्र, कानून, देश- विदेश ,मानव मन का विज्ञान, जटिलताएं, समाधान क्या नहीं है पुस्तकों में। पर आज एक प्रश्न ने मुझे अंदर तक आहत किया कि पुस्तकों को रखने की जगह घरों में कम हो गई है या है ही नहीं फिर समय के साथ शरीर भी थकने लगता है। इंटरनेट के इस युग में किताबों की संभाल कौन करे। इतने आत्मीय भाव से जिन पुस्तकों का संग्रह किया उसकी संवेदना को महसूस किया, आज लोगों में उसकी कमी हो गई है। सब प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में लगे हैं। पर मेरा जुड़ाव आज भी उतना ही है जितना बचपन में होता था। जब तक कोई भी पुस्तक जो हाथ आ गई उसे पूरा पढ़कर ही छोड़ती थी। हाँ अब पुस्तक पढ़ने की बैठक की संख्या बढ़ गई है। आठ दस बैठक में समाप्त हो पाती है। बहुत वर्षाे के जतन से एक पुस्तकों का संसार मेरे घर के एक कोने में बसा हुआ है। जब भी संवेदनाओं का स्पंदन होता है । अंतर्मन में कुछ उमड़ने को तत्पर होता है पहुँच जाती हूँ घर के उस कोने में जहाँ मन को राहत मिलती है। भाँति-भाँति की पत्र -पत्रिकाएँ ,लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकारों की पुस्तकें, कविता संग्रह, कहानियां, उपन्यास, समीक्षा ग्रन्थ, साथी साहित्यकारों की पुस्तकें बहुत कुछ। छुट्टियों के दिनों में इन्हें सँभालने और साफ सफाई का समय मिलता है। पुस्तक प्रेमी होने के कारण इनसे मेरा आत्मीय नाता है। मैं इनके बीच खो जाती हूँ । पता नहीं कब कौनसी जानकारी लेने की जरुरत पड़ जाये। समस्या अब पुस्तकों को सहेजने की है। घर में जगह कम पड़ने लगी है। जितनी जगह है पुस्तकें अलमारी में सजा रखी हैं पर सफाई करते समय अहसास होने लगा प्रति माह पत्र -पत्रिकाएँ आती हैं पढ़ने के बाद सहेज कर रख दी जाती हैं। कुछ समय बाद पत्र पत्रिकाएं एकत्र हो जाती हैं। इनका क्या करें, कैसे सहेजें पुस्तक। पाठकों के लिए पुस्तकें अमूल्य धरोहर होती है। जब भी अवसर मिले है मन नहीं लग रहा हो ,पहुँच जाओ पुस्तकों की दुनियां में। वहाँ पहुँच कर आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। पुस्तकों से तो धूल साफ होती ही है साथ ही मन पर पड़ी आलस्य की धूल भी साफ हो जाती है। पुस्तकें संवाद करती हैं, समस्याओं का समाधान बताती हैं। एक क्षण में निराश मन में उमंग उत्साह भर देती हैं। बस शर्त इतनी सी है कि पुस्तकों के बीच विचरण करने की आदत होनी चाहिए। बचपन में हमारे यहाँ चंपक, चंदामामा, नंदन जैसी बाल पत्रिकाएँ आती थी । पढ़ने का चाव और सृजन का बीजांकुर यहीं से पुष्पित पल्लवित हुआ। आज की युवा पीढ़ी पुस्तकें पढ़ना नहीं चाहती। उन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है, फिर उनके पास इतना समय कहाँ जो पुस्तकों को पढ़े, संवाद करें। ज्ञान की अनेक खिड़कियाँ उनके पास है। उनकी अपनी दुनिया है गूगल पर सर्च करते ही सब कुछ उपलब्ध हो जाता है। जो भी पढ़ना चाहो। आधुनिक युग में सुविधा का विस्तार अवश्य हुआ है। किन्तु पुस्तक पढ़कर आनंद की जो अनुभूति होती है उसे वही महसूस कर सकता है जिसने पुस्तकों के पन्नों को स्पर्श किया हो, जो पुस्तकों के बीच से गुजरा हो। वही पुस्तकों की खुशबू के जादुई अहसास को समझ सकता है महसूस कर सकता है। मेरी छोटी सी घरेलू लाइब्रेरी में जब फुर्सत के क्षणों में जाती हूँ तो लगता है, अद्भुत संसार में पहुँच गई हूँ। हाथ लगा कर उन्हें उलटती पलटती हूँ । साफ करती हूँ और पुस्तक के उस संसार में पहुँच जाती हूँ जिसके आसपास सकारात्मक वातावरण निर्मित है। हर मर्ज की दवा इन पुस्तकों में मिल जाती है। पुस्तकों के सुन्दर सजे मुखपृष्ठ ओहो! कितने मनमोहक विविध रंगों से सजे ,कुछ प्रतीकात्मक, आड़ी तिरछी रेखाओं से सुसज्जित, कुछ बोलते चेहरे , कुछ पुस्तक की आत्मा को उकेरते, उद्घाटित करते मुखपृष्ठ ये भी पुस्तक का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। कई बार मुखपृष्ठ इतना आकर्षक और प्रभावी होता है कि पुस्तक को समर्पित पाठक उसे खरीदनें और पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पाता। तुरंत खरीद कर उसे पढ़ना चाहता है। पुस्तकों के अद्भुत संसार में कही काव्य की सरस धारा कविताओं के रूप में बहती है ,कही कहानियों की चौपाल पुस्तकों में सजती हैं, तो कहीं उपन्यास के रूप में समाज के विविध रूप सामाजिक सरोकार, परिवर्तित परिवेश, बदलते रिश्ते ,सुप्त होती संवेदनाएं ,प्रेमिल अनुभूतियाँ, वृद्धावस्था की पीड़ा ,बाल मनोविज्ञान सब कुछ इन उपन्यासों की मूल संवेदना को विस्तार से साक्षात्कार कराता प्रतीत होता है। कही बालमन का कोना ,बालगीत, बाल कविताओं बाल पहेलियां के साथ पुस्तकों में अभिव्यक्ति पाता है उस पर सुन्दर -सुन्दर चित्र और छोटी छोटी बाल मन को लुभाने वाली सामग्री सुर, लय और औत्सुक्य भाव से सजी होती है। बाल पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ के तो क्या कहने पेड़ पहाड़, झरने, तितली ,सूरज, चंदामामा, पशु -पक्षियों से सजी बाल पत्रिकाएँ आकर्षित करती हैं। तभी तो पुस्तकों को सच्चा दोस्त कहा गया है जो कभी आपका साथ नहीं छोड़ती निराशा और अवसाद के समय आपको संबल प्रदान करती है। मासिक- त्रैमासिक, पत्र पत्रिकाएं आपको देश दुनियां की सैर कराते हुए आपके सामान्य ज्ञान में अभिवृद्धि भी करती है। सरस कहानियाँ, लघुकथाएँ जहाँ मनोरंजन करती हैं वही सामाजिक सरोकार का भी ईमानदारी से निर्वहन करती चलती हैं। अपने भीतर सन्देश को समाहित करती ये कथाएँ कब मानव मन को भीतर तक स्पर्श कर जाती हैं कभी अन्तः स्थल को भिगो देती हैं, पता ही नहीं चलता। कितनी सरसता,सहजता और ईमानदारी से पाठकों को आत्मीयता की डोर से बांध देती है । यह तो पुस्तक में डूबने वाला ही जान सकता है। निराशा और हताशा के बीच पुस्तकों का वह कोना जहाँ पुस्तकें करीने से सजी होती हैं अपने हाथों से उन पुस्तकों का स्पर्श कीजिये, मनचाही पुस्तक पढ़िए फिर देखिये कैसे अद्भुत संसार में आप पहुँच जाते है। हम कह सकते है पुस्तकों में ज्ञान, मनोरंजन, देश विदेश की जानकारी , अंतरिक्ष के किस्से, भूगोल, पर्यावरण, तकनीकी ,आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश ,घर ,परिवार, पड़ौस आदि सब कुछ तो पुस्तकों में समाया हुआ है। पुस्तकों को सहेजने वालों को अपनी पुस्तकों का कोना या वह स्थान जहाँ पुस्तकें रखी होती हैं अत्यंत प्रिय होता है स्पर्श मात्र से पता लग जाता है अलमारी में कौनसी पुस्तक कहाँ रखी है। जो पुस्तकों से लगाव रखते है उन्हें पता होता है कौनसी पुस्तक अलमारी के किस खंड में रखी हुई है। मतलब पुस्तक और पाठक दोनों आत्मा के स्तर पर जुड़ाव महसूस करते हैं। इतना समृद्ध खजाना होने पर भी पुस्तक पढ़ने वालों की और घरों में
पुस्तक रखने, सहेजने की समस्या अक्सर देखने सुनने को मिल जाती है। ये पुस्तकें हमारी सभ्यता और संस्कृति की अनवरत यात्रा की साक्षी हैं इनसे प्यार कीजिये दुलार कीजिये फिर देखिये आपको ये कौनसी दुनियां की सैर कराती हैं। घर में भी अन्य वस्तुओं की तरह इनका स्थान कोना निर्धारित कीजिये। जब मन उदास हो कही न लग रहा हो पहुँच जाइये पुस्तकों के संसार में जहाँ जीवन के विविध रंग शब्दबद्ध होकर पुस्तकों में समाये हुए हैं। अपनी पसंद की पुस्तक चुनिए और भूल जाइये सारी चिन्ताएं कुछ क्षण के लिए पुस्तकें औषधिय गुणों से भी भरपूर होती है। डूब जाइये पुस्तकों के बीच व्यस्तता के बीच कुछ समय निकाल कर फिर देखिये जादू ।
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डॉ अनिता वर्मा
संस्कृति विकास कॉलोनी-3
कोटा राजस्थान
पिन 324002