
-संजीव कुमार-

समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से खम ठोंक रही हैं। जबकि भाजपा ने सपा के पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य को मैदान में उतारा है। यह सीट दिग्गज नेता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई है। हालांकि डिंपल यादव पूर्व में दो बार सांसद रह चुकी हैं, वहीं एक बार फिरोजाबाद और एक बार कन्नौज लोकसभा सीट से उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा है।
शाक्यों की अच्छी खासी संख्या वाली इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य के उतरने से मुकाबला रोचक हो गया है।
विरासत की लड़ाई में डिंपल आगे
सपा के दबदबे वाली वाली मैनपुरी सीट पर विरासत की लड़ाई में फिलहाल डिंपल यादव आगे नजर आ रही हैं। डिंपल के साथ परिवार की एकजुटता भी दिख रही है। हालांकि नामांकन के समय मुलायम सिंह के भाई और जसवंतनगर के विधायक शिवपाल सिंह यादव उनके साथ नहीं दिखे। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से पूरी तैयारी के साथ डिंपल का साथ देने का निर्देश दिया। यहां बता दें कि शिवपाल सिंह यादव की सीट जसवंतनगर मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र के अंतगर्त आती है। राजनीतिक विश्लेषक और व्यापारी नेता राजेश श्रीवास्तव बताते हैं कि अगर शिवपाल रूठे रहते तो सपा के लिए नेताजी की विरासत बचाना मुश्किल हो जाता, लेकिन शिवपाल के समर्थन के कारण डिंपल यादव की राह आसान हो गई है। नामांकन के समय ही सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने साफ कर दिया था कि डिंपल यादव को शिवपाल यादव की सहमति से मैनपुरी से चुनाव में उतारा गया है।

नेताजी पांच बार जीत चुके हैं
नेताजी मुलायम सिंह यादव पांच बार मैनपुरी सीट से सांसद रहे हैं। उन्होंने 1996,2004,2009,2014 और 2019 में यह सीट अपने नाम की। लेकिन पिछले चुनाव 2019 में उनकी जीत का अंतर घट गया। जहां 2004 में उन्हें 64 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट दिए, वहीं 2019 में उनकी जीत का अंतर 94389 रह गए। तब यह चुनाव सपा ने बसपा के साथ मिलकर लड़ा था। 2019 में मुलायम सिंह यादव को 524926 वोट मिले थे, जबकि भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य ने 430537 वोट अपने नाम किए थे।
क्या कहते हैं जातीय समीकरण
मैनपुरी के जातीय समीकरण में पिछडे़ वर्गों के वोट सबसे ज्यादा अहमियत रखते हैं। जो भी उम्मीदवार इन्हें साध लेगा, उसकी नैया पार लग जाती है। यहां सबसे ज्यादा साढ़े तीन लाख यादव वोट हैं। शाक्य वोटों की संख्या एक लाख साठ हजार, ठाकुर वोट एक लाख पचास हजार, जाटव मतदाता एक लाख चालीस हजार, ब्राह्मण वोट एक लाख बीस हजार जबकि एक लाख के करीब लोधी और राजपूतों के वोट हैं। इसके अलावा वैश्य और मुस्लिम भी एक लाख के करीब हैं। मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में कुल वोटर करीब 17 लाख हैं। इन वोटों में यादव वोट सीधे सपा को मिलते हैं, जबकि शाक्य सहित अन्य वोट बंट जाते हैं। शाक्यों की अच्छी खासी संख्या को देखते हुए ही भाजपा ने कुछ समय पहले ही सपा से नाता तोड़कर पार्टी में आए पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य को मैदान में उतारा है।
सहानुभूति की लहर पर सवार हैं डिम्पल
समाजवादी पार्टी को पूरी उम्मीद है कि नेताजी के निधन की सहानुभूति का लाभ डिम्पल यादव को मिलेगा। मुलायम सिंह की बहू के नाम से चुनाव लड़ने वाली डिम्पल ने नामांकन दाखिल करने से पहले अपने पति अखिलेश यादव के साथ नेताजी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। मैनपुरी के सपा दफ्तर से प्रचार अभियान की शुरूआत करते हुए डिम्पल ने इसे नेताजी के सम्मान का चुनाव कहकर इस बात पर मोहर भी लगा दी उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा है कि सभी लोग मिलकर उन्हें चुनाव जिताएंगे। मौजूदा सरकार सिर्फ बड़े बड़े दावे करती है और जनता को धोखा देती है। ये चुनाव नेताजी के सम्मान का चुनाव है, उन्हें उम्मीद है कि सभी उनका मान सम्मान रखेंगे। नेताजी का मैनपुरी ने सदैव सम्मान बनाए रखा। उनकी सोच और विचारों को हम सब आगे लेकर जाएंगे।
बता दें मैनपुरी लोकसभा सीट में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, इनमें चार सीटें मैनपुरी, भोगांव, किशनी और करहल मैनपुरी जिले में हैं, जबकि एक सीट इटावा जिले की जसवंतनगर है, जो कि इस लोकसभा सीट का हिस्सा है। करहल सीट से स्वयं अखिलेश यादव विधायक हैं। इसका भी फायदा समाजवादी पार्टी को मिलने की उम्मीद है।
(लेखकर यूपी के इटावा जिले के मूल निवासी तथा स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)