-विष्णु देव मंडल-

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का यह भावुक बयान भी उपचुनाव में काम नहीं आया जिसमें उन्होंने कहा था कि लालू जी की किडनी का प्रत्यारोपण है। हम सिंगापुर जा रहे हैं। अगर लालू जी पूछेंगे कुढनी में का हाल बा…..हम क्या जवाब देंगे ?
बता दे ं कि बिहार की कुढनी सीट 2020 में राजद ने मामूली अंतर से जीती थी। उस वक्त नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहते हुए एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन अब वह महागठबंधन में हैं और अपने सीटिंग सीट पर बड़ा दिल दिखाते हुए राजद ने जदयू को यह सीट दे दी। महागठबंधन के सभी 7 दलों ने इस सीट पर प्रचार किया था। जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और नीतीश की कैबिनेट के कई मंत्रियों ने इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। वे प्रचार करने हर गांव, कस्बे और टोले तक पहुंचे थे। यहां तक की चुनाव के दिन भी जनता दल यूनाइटेड के अधिकांश बड़े नेता कुढनी विधानसभा क्षेत्र में कैंप कर रहे थे। महागठबंधन प्रत्याशी को जिताने के लिए तेजस्वी यादव ने भी 4 सभाएं की थी। उन्होंने अपने पिता के बीमारी को हवाला देते हुए यह बात कही थी कि हम अपने पिताजी के किडनी का ऑपरेशन वास्ते विदेश जा रहे हैं जब लालू जी पूछेंगे कुढनी का का हाल बा तो हम क्या जवाब देंगे? बाबजूद इसके प्रतिष्ठा का सीट कुढ़नी में एनडीए की जीत यह स्पष्ट इशारा करती है कि बिहार के आवाम के सामने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी अप्रासंगिक हो गई है। जो विश्वास बिहार कीे जनता ने नीतीश जी पर न्योछावर किया था वह अब खत्म होने के कगार पर है।

ध्यान देने वाली बात यह भी है की इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी कैंडिडेट केदार गुप्ता को हराने के लिए वीआईपी मुकेश साहनी की पार्टी ने भी उम्मीदवार खड़ा किया था। उन्हें 9800 से भी अधिक मत मिले। इसके बावजूद इसके भाजपा प्रत्याशी का 3645 मतों से जितना आगामी 2024 के चुनाव में भाजपा को सुपडा साफ करने की बात करने वालों के लिए संकेत है कि चुनाव जीतने के लिए सिर्फ सोशल इंजीनियरिंग और जातीय गणित ही काफी नहीं है।
यहाँ इस बात का भी उल्लेख करना जरूरी है कि जनता दल यूनाइटेड ने कुढनी में मनोज कुशवाहा जो कोईरी समाज से आते हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा जो फिलवक्त जनतादल यूनाइटेड के बड़े कद्दावर नेता हैं को इस सीट पर करीब 10 हजार वोट मिले थे। ऐसे में मनोज कुशवाहा की हार भी इस बात की तसदीक़ करती है कि बिहार के मुख्यमंत्री सुशासन बाबू अब बिहार में अप्रसांगिक हो गए हैं। महागठबंधन इस बार यह कहकर भी नहीं बच सकते कि औवेसी की पार्टी ने महागठबंधन की वोट काट लिये, जिससे उनको हार का सामना करना पड़ा। औवेसी की पार्टी को महज 3000 वोट मिले जबकि हार का अंतर 3645 है।
उल्लेखनीय है पिछले उपचुनाव में गोपालगंज और मोकामा सीटों में से मोकामा राजद तो गोपालगंज में भाजपा जीती थी! हालांकि इस सीट पर महागठबंधन की हार पर समीक्षा होने लगी है। जहां कांग्रेसी इसे शराबबंदी का मामला बता रहे हैं वही हम पार्टी इसे राष्ट्रीय जनता दल की नाकामी बता रही ह। वहीं जदयू इस हार पर समीक्षा की बात कर रही है।
Pura prasasan ake hi kam daru ke peechhe laga rahata hai develop ment se koi lena nahi hai berojgari charm per hai palayan day by day badhta hi ja Raha hai bahut durbhagya ki baat hai.