
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
दर्द हो दिल में प्यार यही है।
प्यार की अंतिम धार यही है।।
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संग तुम्हारे जीवन गुज़रे।
इच्छा तो सरकार यही है।।
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पग पग पर घाटे का सौदा।
दिल का कारोबार यही है।।
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कर्म करो और फल मत चाहो।
गीता का भी सार यही है।।
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मन में प्रेम की कोंपल फूटे।
सावन का उपहार यही है।।
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आंख के रस्ते दिल में उतरो।
प्रेम नगर का द्वार यही है।।
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अंबर से आगे भी अंबर।
नज़रों का विस्तार यही है।।
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दर्शन को दुर्लभ मत करना।
ज़ख़्मों का उपचार यही है।।
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अब तो “अनवर” क़लम उठाओ।
अपना तो हथियार यही है।।
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शकूर अनवर
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