
-स्टेपी ईगल (चील) पर लुप्त होने का खतरा
-हर्षित शर्मा-
(शोधार्थी)
कोटा। स्टेपी ईगल (चील) एक प्रवासी रैप्टर है जिसकी जनसंख्या में अपनी सभी सीमाओं के भीतर बहुत तेजी से गिरावट हुई है। इसका कारण इसके निवास स्थान पर अतिक्रमण या नष्ट कर दिए जाने तथा फसलों में कीट नाशकों का प्रयोग प्रमुख है। इनके हाई टेंशन टावर से टकराने से भी मरने के मामले सामने आए हैं। स्टेपी ईगल्स हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर अपने प्रवास पर जाते हैं। यह पक्षी आईयूसीएन रेड लिस्ट के तहत लुप्तप्राय श्रेणी में रखा गया है। यह सर्दियों के मौसम में रूस, कजाकिस्तान और मंगोलिया से भारत में आता है।

डा. सुब्रत शर्मा के निर्देशन में शोध कर रहे शोधार्थी हर्षित शर्मा ने बताया कि यह स्टेपी ईगल (चील) मध्य एशिया के घास के मैदानों से सर्दियों में भारत के घास के मैदानों में पहुंचता है। स्टेपी ईगल बड़े पक्षियों, बत्तखों और खरगोश तक का शिकार करने में सक्षम होता है। कोटा में गिद्ध पक्षियों के झुण्ड को एक साथ मृत पशुओं को खाते हुए इन्हें देखा जा सकता है। यह बड़े शिकारी चील- बाज आदि के पक्षी समूह में एकमात्र शिकारी पक्षी है जो घास के मैदानों पर ही प्रजनन करता है। इसकी सबसे ज्यादा संख्या मध्य एशिया के कजाकिस्तान में मिलती है। ये पक्षी कजाकिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज पर भी अंकित है और मिस्र का राष्ट्रीय पक्षी भी है।
अंशु शर्मा ने बताया कि वयस्क पूरी तरह से गहरे भूरे रंग के होते हैं। किशोर और अपरिपक्व पक्षी में पंखों पर काले रंग की सीमा वाली एक विशिष्ट चैड़ी सफेद पट्टी होती हैं। किशोरो को पूर्ण वयस्क पंख प्राप्त करने में चार साल का समय लगता है।