पहले अपने गिरे बां में झांके…

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कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सीएम स्टालिन की पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक। फोटो साभार सोशल मीडिया

-विष्णुदेव मंडल-

विष्णु देव मंडल

(बिहार मूल के चेन्नई निवासी स्वतंत्र पत्रकार)

चेन्नई। कहते हैं जिनके घर शीशे का हो दूसरे के घरों में पत्थर नहीं मारा करते, यह प्रसंग बिहार के राजनीतिक दलों पर सटीक बैठता है। पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु के तिरुपुर और कोयंबतूर इलाकों में प्रवासी मजदूरों पर तमिल लोगों द्वारा हमले की अफवाहों ने भारत की राजनीति में हलचल मचा दी है। आलम यह है कि तमिलनाडु सरकार और तमिलनाडु पुलिस दोनों प्रवासी देहाडी मजदूरों को विश्वास में लेने के लिए हर जिले प्रखंड मुख्यालयों में जहां अतिथि मजदूर निवासरत हैं उनके साथ बैठकें कर रहे हैं। इसी कड़ी मे बिहार से चार सदस्यीय टीम रविवार को तिरूपुर पहुंची थी। टीम ने तिरूपुर स्थित टेक्सटाइल कंपनियों के मजदूरों से उनका पक्ष जाना और उन्हें आश्वस्त किया कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। तमिलनाडु सरकार और पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए तैयार है इसलिए वह तिरुपुर छोड़कर ना जाएं।
गौरतलब है कि तिरुपुर में करीबन डेढ़ लाख से भी अधिक प्रवासी मजदूर टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में लंबे समय से काम कर रहे हैं। उनमें से अधिकांश की तमिल भाषा पर भी अच्छी खासी पकड़ है और उन्हें यहां मिल रहे रोजगार पर भी भरोसा है लेकिन उत्तर भारतीय राज्यों में तमिलनाडु में उत्तर भारतीय हिंदी भाषियों पर हमले की अफवाह के कारण इन लोगों में भी डर का माहौल पैदा हुआ।
बहरहाल तमिलनाडु से संचालित बिहार और झारखंड की ट्रेनों में होली महोत्सव के कारण भारी भीड़ उमड़ रही है। जब ट्रेन पटना, दरभंगा, दानापुर, मुजफ्फरपुर आदि स्टेशन पर पहुंचती है तो वहां के यूट्यूब पत्रकार एवं अन्य समाचार एजेंसी मजदूरों से तमिलनाडु में उनके साथ हुए व्यवहार के बारे में पूछते हैं। उन मजदूरों में अधिकांश लोगों का कहना होता है कि हमारे साथ कुछ घटित नहीं हुआ है लेकिन वीडियो और अखबार में छपी खबरों के डर से हम गांव चले आए हैं। वही बहुतेरे मजदूरों का कहना होता है कि वह होली के उत्सव मनाने के लिए बिहार आए हैं फिर छुट्टी खत्म होने पर वह वापस चले जाएंगे।
यहां उल्लेख करना जरूरी है की बिहार और तमिलनाडु दोनों अलग अलग राज्य हैं लेकिन दोनों राज्यों की कानून व्यवस्था का चर्चा करें तो तमिलनाडु बहुत ही बेहतर है जहां पर कानून का राज कायम है। यहां अपराधिक वारदात गाहे-बगाहे ही घटित होती हैं जबकि बिहार में कानून व्यवस्था बेहद लचर है। गैंगवार,डकैती,आपसी रंजिश में कत्लेआम जमीनी विवाद पर एक दूसरों को मार डालने की घटनाएं आम बात है।
यहां यह सवाल उठाना जरूरी है की जब बिहार सरकार या पुलिस बिहार के लोगों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते हैं या फिर बिहार में अमन चैन कायम नहीं कर सकते, बिहार में रोजगार पैदा नहीं कर सकते,ऐसे में बिहार के बाहर रह रहे लोगों की चिंता करना भी बेमानी प्रतीत हो रहा है। या यूं कहें बिहार सरकार या फिर बिहार की विपक्षी पार्टियां तमिलनाडु पर लांछन लगाकर अपनी सियासी रोटी सेंकना चाहती हैं।
हालांकि तमिलनाडु पुलिस महानिदेशक श्री शैलेंद्र बाबू ने रविवार को भारतीय जनता पार्टी के तमिलनाडु राज्य के अध्यक्ष उपाय के अन्नामलाई को समन भेज दिया है। वहीं अन्य राज्यों के राष्ट्रीय अखबारों के संपादक एवं अन्य नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई के संकेत दिए थे जिन्होंने फेक न्यूज़ को प्रसारित किया और तमिलनाडु की विधि व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं।
हम बिहार सरकार से अपील करते हैं और बिहार के विपक्ष के नेताओं से भी मांग करते हैं कि वह पहले अपने राज्यों की कानून व्यवस्था मुकम्मल करें और एक ऐसी व्यवस्था बनाएं ताकि लोग अपने घर में सुरक्षित महसूस करें। अधिकांश प्रवासियों का कहना होता है कि जब प्रवासी मजदूर अन्य शहरों से कमाकर वापस अपने गृह राज्य पहुंचते हैं तो कई दफे वह रास्ते में ही अपने लोगों के द्वारा लूट लिए जाते हैं। ऐसे में बिहार के राजनीतिक दलों का अन्य राज्यों की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाना अनुचित है। बिहार के राजनीतिक दलों को अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है।

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