
मेरा सपना… 12
-शैलेश पाण्डेय-
पेरिस को अलविदा कहते हुए बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में यूरोप के मध्यकाल के बाद के इतिहास को देखने परखने का अवसर था। होटल से सुबह साढ़े तीन सौ किलोमीटर के सफर पर रवाना होते समय ही टूर मैनेजर राहुल जाधव ने सचेत कर दिया था कि हाईवे पर बस की स्पीड 100 से 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रहेगी ऐसे में सीट बेल्ट लगाने में कोताही नहीं बरतें। हालांकि यहां अचानक ब्रेक लगाने जैसे हालात नहीं होते लेकिन कभी ऐसी स्थिति आई तो चोट लगने का खतरा है। रास्ते में हरी भरी वादियों और पहाड़ी क्षेत्र से गुजरते हुए करीब दो घंटे बाद हमें एक पेट्रोल पंप पर कुछ देर फ्रेश होने का समय दिया गया। यहाँ पेट्रोल पम्प नाम का ही होता है जबकि एक अच्छे खासे डिपार्टमेंट स्टोर की सुविधा होती है।
हम फ्रांस से बेल्जियम की सरहद में पहुंचे तो सड़कों से ही अंदाजा हो गया। यह छोटा देश है और अन्य पड़ोसी यूरोपीय देशों जैसा समृद्ध नहीं है। हालांकि ब्रुसेल्स में यूरोपियन यूनियन का मुख्यालय है। बेल्जियम की अन्य समृद्ध देशों के मुकाबले कमजोर आर्थिक स्थिति का कारण यह बताया जाता है कि जर्मनी ने जब भी यूरोप में अपना विस्तारवादी अभियान शुरू किया तो बेल्जियम होकर ही उसकी सेनाएं बढ़ी। इसका हर बार नुकसान बेल्जियम को उठाना पड़ा। ब्रुसेल्स के विख्यात ग्रैण्ड प्लेस चौक में स्थित एक रेस्त्रां में भोजन को रूके। ब्रुसेल्स में हमें रूकने का जो समय दिया था उसको देखते हुए यहां कुछ ज्यादा ही समय बर्बाद हो गया। फिर पैदल पहले एक चाकलेट शॉप पर गए जिसका यहां ऑथेंटिक चॉकलेट निर्माता होने का दावा था। शॉप ज्यादा बड़ी नहीं थी लेकिन उन्होंने नमूने के तौर पर जो चॉकलेट चखने को दी वह भारत में मिलने वाली चॉकलेट से अलहदा और बहुत ज्यादा स्वादिष्ट थीं।

वहीं पास में ऐतिहासिक मन्नेकेन पीस को देखने का अवसर मिला। इसमें आधा मीटर लम्बाई की बच्चे की कांस्य प्रतिमा को एक फव्वारे में शू-शू करते दर्शाया गया था। जगह बहुत छोटी थी लेकिन वहां एकत्र पर्यटकों की भीड़ को देखकर आश्चर्य हुआ। लेकिन जब राहुल जाधव ने उसके बारे में प्रचलित अलग-अलग किवदंतियों के बारे में बताया तो महत्व समझ आया। इसमें मुख्य बात यह निकलकर आई कि जिस बालक को शू-शू करते दर्शाया गया है उसने बुसेल्स को दुश्मन के हमले में भस्म होने से बचाया था। इसलिए इसे बहुत महत्व दिया जाता है।

इसके आसपास दुकानें और रेस्त्रां हैं। ज्यादातर दुकानों पर यहां का ऑथेंटिक चॉकलेट, पेस्ट्री और अन्य बेकरी आइटम तथा आइसक्रीम के अलावा स्मृति चिन्ह मिल रहे थे। पर्यटक बड़े चाव से बीयर की चुस्कियां ले रहे थे। ब्रुसेल्स की खासियत में यहां का भोजन और बीयर भी शामिल है। क्योंकि जिस जगह हम थे वह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र था इसलिए स्थानीय लोग कम नजर आए। ब्रुसेल्स छोटा शहर है लेकिन बहुत ही खूबसूरती से बसावट दिखी। वाहनों की रेल पेल नहीं थी जबकि साइकिल सवार ज्यादा दिखे । इस शहर की आबादी दो लाख भी नहीं है। इसमें भी एक तिहाई हिस्सा गैर बेल्जियमवासियों का है।

अब मौका था ऐतिहासिक ग्रैण्ड प्लेस चौक को निहारने का। यहां भव्य ऐतिहासिक इमारतें हैं। हम जब पहुंचे तो वहां किसी बड़े कार्यक्रम के लिए स्टेज तैयार किया जा रहा था। लेकिन चौक के चारों ओर की इमारतों की वास्तुकला मन मोहने वाली थी। चारों तरफ घूम घूम कर एक एक इमारत को निहारा। वाकई इसे दुनिया के सबसे खूबसूरत स्थलों में इसी वजह से जाना जाता है। इमारतें 17वी शताब्दी के आसपास की थीं। पर्यटकों की भीड़ इसकी गवाह थी। यहां रात को ध्वनि और प्रकाश शो भी होता है जो पर्यटकों के आकर्षण का एक केन्द्र है। आश्चर्य की बात यह है कि फ्रांस के राजा लुई 14वें की फौज ने ब्रुसेल्स के इस प्रमुख चौक को सन् 1695 में तोपों से गोले बरसा कर तीन दिन में तहस नहस कर दिया था। इसका मकसद स्थानीय लोगों का स्वाभिमान नेस्तानाबूद करना था लेकिन ब्रुसेल्सवासियों ने इसे फिर से खड़ा कर दिया। आज यहाँ की इमारतों का वास्तुशिल्प विश्व भर में एक मिसाल है। इसी वास्तुशिल्प को देखने दुनिया भर से पर्यटक यहाँ आते हैं।
इसकी कुछ दूरी पर एक और चौक नुमा जगह थी। जहां एक आदमकद मूर्ति के पास कुछ कलाकार गिटार के साथ गा रहे थे। सामने गिटार का केस खुला था जिसमें पर्यटक क्वाइन और यूरो भेंट कर देते। हम भी कुछ देर खड़े होकर उनका संगीत सुनते रहे. कुछ ही देर में उनका कार्यक्रम खत्म होने के बाद मूर्ति के पास बैठकर सुस्ताने लगे क्योंकि हमारे टूर साथियों को खरीदारी कर वहीं आना था। जहां से हमें ब्रुसेल्स के एक और आकर्षण मिनी यूरोप मिनियेचर पार्क जाना था।