
-डॉ. विवेक कुमार मिश्र-
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
महादेवी वर्मा ने छायावाद , रहस्यवाद , व मुक्ति चेतना की भावभूमि को लयात्मक प्रवाह से गीतात्मक अभिव्यक्ति में जो ख्याति अर्जित की है उससे एकदम से अलग ही कविता की गूंज सामने आती है । अपनी एक साफ-सुथरी भाषा , टकसाली भाषा के साथ महादेवी वर्मा के गीत हृदय में बजते रहते हैं जैसे कि पत्थर पर पानी की धारा गिरते हुए ध्वनित होती रहती है। महादेवी वर्मा की कविताओं को पढ़ना एक लयात्मकता, एकतानता और एक संगीत प्रवाह के साथ रहस्य चेतना को स्पर्श करने जैसा अनुभव होता है। जीव का परात्पर ब्रह्म से मिलना और आनंद की अनुभूति को चेतना की मनोभूमि के साथ जोड़ कर देखना।

एक अखंड आनंद सत्ता को अनुभव के रास्ते महसूस करना अर्थात महादेवी जी की कविता को पढ़ना होता है। एक अविरल प्रवाह की तरह जड़ संसार और चेतन संसार उनके गीतों में आता रहता है। महादेवी जी के यहां आधुनिकता बोध की स्वतंत्र चेतना के साथ जीवन के सारे राग विराग व प्रश्नों को चेतना से, परात्पर मन से जोड़ते हुए रहस्यात्मक चेतना को, आध्यात्मिक अनुभूति को गाढ़ा होते देखते हैं। रहस्य अनुभूति के क्रम में उन्हें हम आधुनिक युग की मीरा के नाम से अभिहित करते हैं। छायावाद, रहस्यवाद व आधुनिकता बोध के साथ स्वतंत्र चेतना की मनोभूमि में अपनी मनोभूमि से स्वतंत्र चेतना का पाठ पढ़ाते हुए आगे आती हैं। यहां पर स्वतंत्र चेतना के जागरण से चेतना के प्रवाह में कविता से साक्षात्कार होता है। यहां जगती के सारे विषाद दूर हो जाते हैं। आत्मा एक निर्विकल्प आनंद की अनुभूति करते हुए जीवन का पाठ करती है। महादेवी के गीत में स्वतंत्र चेतना के स्वर हैं। अपनी पीड़ा को परात्पर ब्रह्म से जोड़ते हुए साक्षात्कार के क्रम में मुक्ति का संसार है। संसार को जीते हुए संसार से संघर्ष करते हुए संसार से मुक्ति यात्रा का सच मिलता है। जहां तक कविताओं का सवाल है तो आधुनिक युग की मीरा चेतना के संसार से हमें सीधे जोड़ देती हैं। उनके गीत एक रहस्य चेतना से आत्मा का परमात्मा से मिलन की रहस्यानुभूति को, स्वतंत्र चेतना की भूमि से जोड़ने का काम करती है। उनके यहां स्वतंत्रता सीधे-सीधे जीवन के राग विराग से जुड़ी है । महादेवी की कविता है
‘जो तुम आ जाते एक बार…
कितनी करुणा कितनी संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आंसू लेते वे पद पखार ।
हंस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता ओंठो से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित पराग
आंखें देती सर्वस्व वार।
महादेवी के यहां जो मुक्ति का छांव है वह दुनिया के यथार्थ के संकटों से जूझते हुए परात्पर मन की गाथा है। इसे हम उनकी और कविताओं में भी देखते हैं
कौन हो तुम मेरे हृदय में ?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित ?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित ?
स्वर्ण – स्वप्नों का चितेरा
नींद के सुने निलय में !
कौन तुम मेरे हृदय में ?
कौन तुम मेरे हृदय में आखिर तुम हो कौन किसके संकेत से मिलते रहते हो ? कौन है जो अभिसार करने चल पड़ा है ।
एक लघु क्षण दे रहा
निर्वाण के वरदान शत् शत् ।
‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
पथ को आलोकित करना जीवन पथ के निर्माण पद से है। यहां दीपक अमरता का, पल पल जलते रहने का, साहस का प्रतीक है। मधुर मधुर मेरे दीपक जल प्रियतम का पथ आलोकित कर! इस पृथ्वी को प्रकाश से आलोकित करता है। तुम्हारी उपस्थिति से प्रकाश का संचरण होता है। दीपक होना अपने आप को गतिमान करना है मैंने तुम्हें संभाल कर रखा है। तुम घड़ियां मत गिनो तुम्हारा प्रकाश चिर है। कभी भी नष्ट नहीं होता। महादेवी कह रही हैं कि यह दीपक का जो प्रकाश है यह आत्म तत्व है जो निरंतर जलती रहती है अंधकार के छाए कण-कण को तुम्हारी ज्योति से मुक्ति मिलती है। हमारी जो दुनिया है जो चेतना में है करीब आता जाता है। हे मेरे दीपक प्रियतम का पथ आलोकित करते चल मेरी आत्म यात्रा के पथ को आलोकित करते चलों-
‘मैं नीर भरी दुख की बदली
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा
क्रंदन में आहत विश्व हंसा
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली ।’
मेरे ऊपर दुखों का, त्रास की चादर चलती रहती है। मेरे एक एक आहट में चिर शांति बसा दें। तुम्हारे होने से यह सारा संसार चलता रहता है। त्रासद दुःख से मुक्ति का पथ चेतना की यात्रा में ही मिलती है। मेरी मुक्ति के रास्ते भी निकलते हैं। पथ को आलोकित करते चलें। यह जो विराट संसार में किसी राग से बंधन से बंध कर किसी छोटी सी जगह को अपनी जगह बना कर मुझे नहीं चलना है। कोई कोना मेरा अपना नहीं है। मेरा संसार ही मेरा है मेरी परिधि में पूरा संसार ही आ जाता है। पृथ्वी के कण-कण में मेरी सत्ता है। महादेवी की कविताओं में परम ब्रह्म और परात्पर तत्वों से साक्षात्कार की एक मनोभूमि मिलती है। उनकी कविताओं में सांसारिक दुख संकट है उसे आत्म के धरातल पर चेतना के धरातल पर मुक्ति के सपनों से जोड़ कर देखा गया है। उनके यहां मुक्ति चेतना का स्वर लगातार स्वतंत्रता की मनोभूमि से मिलती है। उनकी कविता में एक जागरण मिलता है। ‘जाग तुझको दूर जाना..’ में जागरण की आवाज लगातार दी है । बार-बार कहा जाता है कि आधुनिक युग में स्वतंत्र चेतना की भूमि से मनुष्य के दिन प्रतिदिन की चिंताओं से मुक्ति की आवाज का स्वर कहीं मिलता है तो महादेवी वर्मा की गीतों में मिलता है । महादेवी के गीत आत्मचेतना के गीत हैं । छायावाद , रहस्यवाद व चेतना से साक्षात्कार के क्रम में महादेवी के गीत जीवन पथ को आलोकित करते हैं।

















