
-अखिलेश कुमार-

(पत्रकार एवं फोटोग्राफर)
कोटा। आधुनिकता की होड़ का असर परंपरागत खान पान और पोशाक पर भी पड़ रहा है। राजस्थान में कई जातियों और समुदायों की पहचान उनकी पोशाक और पहनावे से होती थी लेकिन अब इन समुदायों की नई पीढ़ी इससे मुहँ मोड़ने लगी है। रेबारी राजस्थान का पशु पालन करने वाला समुदाय है। यह समुदाय वर्ष पर्यन्त पालतू पशुओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता रहता है। इस समुदाय के स्त्री और पुरुषों का रंग बिरंगा पहरावा सभी को आकर्षित करता है। कोटा में बुधवार को पाली से रेबारी समुदाय के लोग अपने पशुओं के साथ आए हुए थे।

यह लोग अपनी भेड़ों (गाडर) के झुण्ड के साथ पाली से आए थे। इन्होंने अभेड़ा के जंगल में डेरा डाला हुआ था। यहां से ये लोग अपने गाडर के साथ चित्तौड़ रोड की तरफ रवाना हो गए। टोली के चित्तौड़ की ओर रवाना होने से पहले यह रेबारी युगल कुछ आवश्यक सामान खरीदने नांता की तरफ आए थे। इनकी पाम्परिक पोशाक के बारे में पूछने पर इन्होंने बताया कि नई पीढ़ी इस तरह के परिधान नहीं पहनती।

इनकी बहुएं अब पारम्परिक पोशाक के अलावा पूरे हाथों में हाथी दांत (अभी ये प्लास्टिक के बनते हैं) के चूड़े पहनना पसंद नही क़रतीं। हमारी आने वाले समय मे नई पीढ़ी को यह पारम्परिक घुमंतू जीवन शैली और परिधान सिर्फ तस्वीरों में ही देखने को मिलेंगे।