-ए एच जैदी-

(नेचर, आर्ट्स एण्ड टूरिज्म प्रमोटर)
कोटा की ऐतिहासिक धरोहरों में एक है अभेड़ा महल। इस महल की दीवारों पर की गई चित्रकारी हाडोती की समृद्ध कला संस्कृति का नमूना पेश करती है। 18वीं शताब्दी में बने इस महल के आकर्षक झरोखे भी देखने लायक हैं। रियासत काल मे यहां शिकार गाह था। चारों ओर घने पेड़ थे। इनमें आम, जामुन और नारंगी के बाग थे। महल के सामने विशाल तालाब भी है। यह कोटा वासियों के लिए बारिश के मौसम में गोठ आयोजन का प्रमुख स्थल था। इस अनूठे महल में स्थित तालाब में प्रवासी व अप्रवासी पक्षियो का जमावड़ा रहता था। यहां तक कि सर्दियों के मौसम में 5 हज़ार से अधिक पक्षी तो मैने 20 वर्ष पूर्व तक देखे है। अब इनकी संख्या बहुत कम रह गई है। इसका कारण तालाब के चारों ओर कमल के पत्ते फैले होना है।

नए लुक में महल को बनाया गया है उसे पर्यटक बहुत पसंद करते हैं। लेकिन स्थानीय व नासमझ लोग इसकी दुर्दशा करने पर तुले है। रानी महल में यहां आने वाले पक्षियो के चित्र बने हैं राजा रानी के नायिकाओं के चित्र बने हैं जो महल की खूबसूरती को बढ़ाते है। लेकिन यहां आने वाले बदमाश किस्म के लोगों ने दीवार पर अपने नाम लिख दिए हैं। जबकि महल का यह हिस्सा गर्मियों में भी ठंडा रहता है। दीवार पर बने सवारी चित्र समय की मार से खराब हो गए है। इन्हें बने हुए 15 वर्ष हो चुके है। इन्हें फिर से पेंट कराया जाना चाहिए क्योंकि ये भी महल की खूबसूरती का एक हिस्सा हैं।
महल में मुगल शैली का गार्डन है। इसे रियासतकाल में चार बाग और चार चमन भी कहा जाता था। पर्यटकों के लिए रेस्टोरेंट तालाब में घूमने के लिए पेडल बोट है। यहां फव्वारे हैं।

इस महल के सामने दो छोटे-छोटे जलाशय हैं। उनमें से कमल को पूरी तरह से साफ कराया जाना चाहिए। फिर पानी मे महल की परछाई बहुत ही खूबसूरत लगेगी। यदि कोटा में पर्यटन को ओर बढ़ावा देना है तो वन्य जीव विभाग को इस तालाब से कमल की खेती को पूरी तरह से साफ करवाना होगा। इससे पक्षियों की संख्या तो बढ़ेगी ही तालाब भी साफ दिखाई देगा। पैडल बोट भी चलाई जा सकती है।
