-ए एच जैदी-

(नेचर एण्ड ट्यूरिज्म प्रमोटर)
मोहर्रम के अवसर पर कोटा में ताजिये निकाले जाने की अनूठी परंपरा रही है जो आज भी बरकरार है। हालांकि एक समय ताजिये लाडपुरा के कर्बला में चंबल नदी में ठण्डे किए जाते थे।

अब इन्हें घंटाघर क्षेत्र के हिरण बाजार इलाके से होते हुए जामा मस्जिद के रास्ते उमर कॉलोनी होते हुए कर्बला में नदी में ठण्डा किया जाता है। मोहर्रम के अवसर पर प्रशासन की ओर से सुरक्षा के माकूल इंतज़ाम किए जाते हैं।

इस साल भी ताजिये निकालने की परंपरा का निर्वहन किया गया। नदी किनारे हेलोजिन लाईट, नावे और पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था रही।

समाजों की ओर से अनेकों जगह तबरुख यानी प्रसाद की ब्यबस्था की गई। इस अवसर पर सबीले लगती है जहां शर्बत, दूध, पानी, खाने में पुलाव, गुलत्ती, ज़र्दा, खीर सबको तकसीम होते है। इस मौके पर कोई भूखा या प्यासा नहीं रहता।

कोटा के किशोरपुरा में भी बहुत ताज़िये निकलते है। यहां का खास राई का ताज़िया होता है। इसी तरह गुमानपुरा कोटरी, छावनी, विज्ञान नगर, कोटा जंक्शन आदि स्थानों पर भी ताज़िये निकलते है। ताजियों के साथ मातमी धुनें बजती रहती हैं।

मुहर्रम की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशूरा होता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनानते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, आशूरा के दिन ही इमाम हुसैन कर्बला की जंग में शहीद हुए थे।