book

ग़ज़ल

शकूर अनवर

शकूर अनवर
ज़ुल्म को दास्तान होना था।
फिर ये क़िस्सा बयान होना था।।
*
सरबुलंदी* पे मेरी चुप क्यों हो।
क्या मुझे आसमान होना था।।
*
खो चुके वो मुहावरे अपने।
जिनको अहले ज़ुबान* होना था।।
*
तीर ही तीर कब तलक खाते।
जिस्म को भी कमान होना था।।
*
बनके हमको भी मील का पत्थर।
मंज़िलों का निशान होना था।।
*
तुम भी तलवार ले के आये हो।
तुमको तो पासबान* होना था।।
*
उस जगह आसमान है “अनवर”।
जिस जगह सायबान* होना था।।
*

सरबुलंदी*इज़्ज़त सम्मान
अहले ज़ुबान*भाषा पर पकड़ रखने वाला
पासबान*रक्षक
सायबान* छप्पर
पता: शमीम मंज़िल सेठानी चौक श्रीपुरा कोटा 324006
Mob 9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments