पूर्वज कभी कहीं नहीं जाते…

deepak
photo courtesy Charu Chaturvedi

पितृपक्ष
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-सुजाता सुज्ञाता-

sujata sugyata
सुजाता ‘सुज्ञाता’

आज से पितृपक्ष शुरू हो चुका है .
आज 29 सितंबर से आरंभ हुआ यह पक्ष 14 अक्टूबर तक रहेगा.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार इन पंद्रह दिनों के दौरान हमें अपने पूर्वजों का पूरी श्रद्धा से स्मरण कर उनका तर्पण एवं श्राद्ध करना चाहिए .
पुराणों की मानें तो इन दिनों हमसे दूर गए हमारे पूर्वज हमारे पास आकर हमारे साथ ही रहते हैं.
न जाने क्यों इन मान्यताओं को लेकर अक्सर लोग सवाल करते पाए जाते हैं कि मरने के बाद भला कौन रहने-खाने आता है ?
इस प्रश्न से जुड़ी कुछ चीजें बेशक पुराणों में स्पष्टता से वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ लिखी गई हों लेकिन मैं तो बहुत ही साधारण तरीको से चीजों को समझने में विश्वास करती हूं !
पूरे साल हम एक दूसरे की पसंद-नापसंद, रुचि-अरुचि के हिसाब से भोजन बनाते हैं. केवल इन पंद्रह दिनों में हम बेशक ब्राह्मणों को जिमाने की रस्म के चलते ही सही उन सभी बिछड़े पितृों की भोजन संबधि पसंद नापसंद को याद करते तो हैं जो हमने उनके जीते जी कभी उनके साथ हंसी खुशी के पल बिताते साथ जी थी.
यदि पितृपक्ष न होते तो क्या हम अम्मा के जाने के बाद कभी याद करते कि अम्मा को दाल की कचौरी में हींग सही से न पड़ा हो तो स्वाद नहीं आता था ! और पिताजी को ज्यादा गाढ़ा रायता भला कहां पसंद था !
उनके श्राद्ध में तो लौकी की सब्जी भी ज़रूर चाहिए वही सबसे ज्यादा पसंद थी उन्हें वो भी टमाटर वाली !
सुना था हमने कि ननिया सास को ग्वार फली बहुत पसंद थी उनके श्राद्ध में वह तो बननी तय ही रहती है!
बड़े तईया ससुर को जलेबी दूध जरूर करना वरना नाराज हो जाते हैं !
सीधी सी बात है पूर्वज कभी कहीं नहीं जाते, वे सदैव हमारे साथ ही वास करते हैं. हर हाल में हमारी शुभेच्छा चाहने वाले हमारे पूर्वजों के लिए पितृपक्ष तो केवल बहाना है, वरना दिल में महसूस कर के देखिए तो ब्राह्मण के रूप में पाँव पखारकर, उनकी पसंद का भोजन बनाकर जब आप परोसते हैं तो अपने पूर्वजों की उपस्थिति का जो अहसास हम स्वयं दिल के भीतर तक महसूस कर पाते हैं उसका प्रमाण किसी और को देने की आवश्यकता ही नहीं !

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