
– विवेक कुमार मिश्र-

गोवर्धन परिक्रमा एक ऐसी पद यात्रा है जिसमें आस्था, विश्वास और समर्पण के साथ भगवद् भक्ति को इस तरह महसूस करते चलते हैं कि इसके अलावा कुछ और दिखता ही नहीं। ईश्वर की लीला को माटी के कण कण में अनुभव करना , अपने साथ उस माटी को मिलाना उसे जीना और इस भूमि में अपना सब कुछ सौंप कर चलने का जो विश्वास होता है वहीं शक्ति देता है। यह भक्ति, शक्ति और तप की ऐसी भूमि है जहां केवल राधे कृष्ण की गूंज हो रही है। सबके मुखारविंद से बस एक ही नाम उच्चरित होता है वह है राधे राधे। कृष्ण कृष्ण। या बिहारी जी कि जय । इस नाम साधना के साथ लोगों के कदम बढ़ते जाते हैं । यह लीला भूमि अपने साथ ईश्वर की लीला को ऐसे सामने रखती है कि इससे इतर आप कुछ सोच भी नहीं सकते । यहां आप कण कण पर ईश्वर को अनुभूत करते चलते हैं । ईश्वर यहां लोगों के मन में रच बस जाते हैं । जो जहां है वहीं से मन से परिक्रमा कर रहा है। भक्ति के लिए बस सहज मन की जरूरत है । आस्था इतनी की भगवान भक्त से मिलने आ जाते हैं।
गिरिराज परिक्रमा चल रही है । इस परिक्रमा में लोग अपनी आस्था के साथ विश्वास के साथ और अंतर्मन से चलते चले जा रहे हैं । यह यात्रा श्री कृष्ण के प्रति आस्था का प्रतीक है । अपने कर्म से अपने मन से अपने तन से श्री कृष्ण के प्रति समर्पित लोग चले जा रहे हैं । इस यात्रा में आप कभी भी सबसे आगे नहीं होते और ना ही सबसे पीछे । अनगिनत लोग आपके आगे चल रहे हैं । अनगिनत लोग आपके पीछे चल रहे हैं । यह यात्रा राधे-राधे , श्री कृष्णा श्री कृष्णा , राधे-राधे का उच्चारण करते हुए चली जा रही है । ब्रजभूमि में कृष्ण की लीला भूमि में राधे कृष्ण की भूमि में लोग बाग भूमि पर लिपट लिपट कर इस यात्रा में आगे बढ़ रहे हैं । दंडवत परिक्रमा करते हुए लोग चले जा रहे हैं । बहुत कठिन साधना है और इस कठिन साधना को गिरिराज जी के नाम अपनी आस्था के रूप में समर्पित करते हुए लोगबाग चलें जा रहे हैं । उनकी साधना को उनकी भक्ति को उनके समर्पण को बस देखते रह जाते हैं । कहां से यह आस्था आती है ? कहां से यह शक्ति आती है ? जो न तो भूख की चिंता करती ना प्यास की चिंता करती न किसी सुख सुविधा की चिंता करती । कठिन रास्ते पर सरकते हुए चले जा रहे हैं । जो पैदल परिक्रमा कर रहे हैं उन्हें भी किसी थकान की किसी तरह से विश्राम करने की इच्छा नहीं होती । सब अपने लक्ष्य पर आगे बढ़े जा रहे हैं यह कृष्ण की महिमा यह गिर्राज की महिमा यह राधे कृष्ण की महिमा ही है जो बच्चे , युवा युवती नौजवान और बुजुर्ग सभी को अपने पथ पर लिए जा रही है । गिरिराज परिक्रमा के अपने पड़ाव हैं और वहां उन पड़ाओ पर आस्था को समर्पित करते हुए सारे लोग आगे बढ़ते जा रहे हैं । यह अविरल यात्रा अनवरत यात्रा चली जा रही है । यह यात्रा कभी रुकती नहीं । यह यात्रा कभी थकती नहीं यह यात्रा कभी टूटती नहीं और इस तरह आप अपनी अडिग आस्था को लेकर बस मन में राधे राधे का संकल्प लेकर चलते चले जा रहे है । न जाने कौन शक्ति है जो लिए जा रही है । इस शक्ति को देखकर भारत माता कि शक्ति भारत की उस आम सांस्कृतिक चेतना और उस शक्ति का स्मरण हो जाता है जो अपनी अडिग आस्था के बल पर दुर्गम से दुर्गम बीहड़ से बीहड़ यात्रा को पूरी करती है । हमारी सभ्यता , हमारी संस्कृति में आस्था की चरण है और जब आस्था लेकर आदमी चलता है तो वह रुकता नहीं है । थकता नहीं और पराजित नहीं होता । बार-बार परिक्रमा के पथ पर आने का संकल्प लेकर वह आगे बढ़ता है । लोगों की जुबान पर लोगों के मन पर लोगों की आत्मा पर यह अंकित हो जाता है कि हमें आस्था लेकर चल रही है। यह श्रीकृष्ण की महिमा है । राधे सरकार की महिमा है जो अपने कण कण में मनुष्य को विचरण करने का अवसर देती है । ब्रजभूमि में आ जाना , कृष्ण की भूमि में होना और कृष्ण की महिमा का गान करना अपने आप को भक्ति में शक्ति में लीन करने जैसा है । आप कुछ भी हों यहां तो बस राधे राधे श्री राधे श्री कृष्णा श्री कृष्णा श्री राधे श्री राधे है । इस भूमि के कण कण में प्रभु बसे हैं पत्ते पत्ते पर प्रभु का वास है । हर गली में हर सड़क पर कोई और नहीं साक्षात ईश्वर का वास इस तरह है कि आप चमत्कृत होकर इस भूमि को देखते रहते हैं । कितना तप है कितना जाप है कितना प्रभु का नाम कि किसी की जिह्वा पर राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे । कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा । हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा । श्री राधे ।। श्री कृष्णा ।। के अतिरिक्त कुछ नहीं । प्रभु का दर्शन करने के लिए सब दौड़ रहे हैं। इस तरह यह देखते बन रहा है कि प्रभु आपके आसपास चारों तरफ प्रभु का वास होता है । प्राणों में रोम रोम में बसे प्रभु को सब बस एकटक निहार रहे हैं । यह दिव्यता, यह साधना और यह शक्ति कहीं और नहीं बस ब्रजभूमि में वृंदावन में मिलती है । यह तप की भूमि इस तरह है कि यहां आप ईश्वर को अपने भीतर रमण करते महसूस कर सकते हैं। यहां प्रभु दिखते हैं । बस एक बार आंख बंद कर अंतर की आंख से प्रभु को देखने की कोशिश कीजिए । प्रभु आपको दिख जायेंगे। यहां के कण कण में प्रभु विराज रहे हैं जिसे अपने भीतर बसाने के लिए कोई तो दंडवत करते हुए जा रहा है, कोई पैदल जा रहा है कोई रिक्शा पर जा रहा है कोई इलेक्ट्रिक रिक्शा पर जा रहा है पर सबका भाव एक है । प्रभु को अपने भीतर बसा लेना । यहां के कण कण में प्रभु को महसूस करते हुए भक्त नाचते गाते बस भक्ति की महिमा में चलें जा रहे हैं । यहां प्रभु की महिमा है । गिरिराज की महिमा है । हम तो बस निमित्त मात्र हैं। हम बस चल रहे हैं । मुझे तो गिरिराज जी लें चल रहे है । जब गिरिराज ने कान्हा ने कृष्ण ने हाथ पकड़ लिया है तो कितना ही मुश्किल हो कितना ही कठिन समय हो कितना ही कठिन दौर हो हर हालात हर विपरीत स्थिति से लड़ने की ताकत कृष्णा देता है । यह शक्ति कान्हा देता है । गिरिराज जी देते है । यदि अंदर से महसूस करना हो तो गिरिराज जी की परिक्रमा पथ से गुजरते हुए उन सारे लोगों को देखिए जो दंडवत परिक्रमा कर रहे हैं । जो पदयात्रा कर रहे हैं । उन्हें भूख पानी प्यास किसी चीज की चिंता नहीं है । बस चले जा रहे हैं । चले जा रहे हैं । यह उनकी लोक आस्था का… परिक्रमा पथ है जो उन्हें लेकर चला जा रहा है । आप यात्रा की शुरुआत किसी भी चरण से शुरू कर सकते हैं । वह राधा कुंड हो सकता है । वह गिर्राज जी का मंदिर हो सकता है । जब इस पथ पर आप चलते हैं तो बस चलते हैं । परिक्रमा पथ पर भक्ति नृत्य करते चलती है। यहां भक्ति चेतना से, आत्मविस्तार से व आत्मानुभूति करने में आह्लाद की जनक होती है । भक्ति रस में डूबे साधक को किसी अन्य की सुधि नहीं रहती । यहां आत्म का विस्तार परमात्म तत्व से इस तरह हो जाता है कि किसी और बात की जरूरत महसूस ही नहीं होती । न ही अलग से कुछ करने की आवश्यकता महसूस होती । चलते उठते बैठते हर क्षण नित्य प्रभु की लीला के ही दर्शन होते हैं। यह भक्ति कुछ अतिरिक्त की मांग करती ही नहीं । यहां जो है वहीं परमानंद है । यह परमानंद ही सभी समस्याओं का समाधान है । यह भक्ति रस प्रभु कृपा का सबसे सुंदर फल है ।
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