मिलें किस तरह?घरों के दरवाजे खुले दिखाई नहीं देते।

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 -मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

✍️__फ्लैट संस्कृति!

अब घरों में #देहरी नहीं होती
जिसे देख समझाया था, कभी
देहरी पार करने का मतलब,
अब घुटनों चलते बच्चे भी,
पार कर, हो जाते हैं घर से बाहर।

#परिंदों की तो क्या कहें,
मनुष्यों के बोल, सुनाई नहीं देते,
मिलें किस तरह?घरों के दरवाजे
खुले दिखाई नहीं देते।

दीवारों में #आले भी नहीं होते
जहां रख सकें एक उम्मीद का दीया
जो दिखा सके
भटके हुए को अंधेरे में रास्ता

अब कोई #आंगन नहीं होता
जहां शादी ब्याहों में गाया जाता था
हम तो रे बाबुल,
तोरे अंगना की गैया,चिरैया

#फिर भी कई बार
कैद कर दी जाती हैं स्त्रियां
बिना खूंटे, पिंजरे के भी
संस्कारों की दुहाई देकर।

 मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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