-कृष्ण बलदेव हाडा-

कोटा। राजस्थान के कोटा संभाग में कोटा बैराज से निकली दांई और बांई मुख्य नहरों से सिंचित होने वाले कृषि क्षेत्र को पानी की उपलब्धता के बावजूद पिछले एक दशक से भी अधिक समय से खरीफ के कृषि सत्र में सिंचाई के पानी से वंचित किया जा रहा है।
वर्ष 2012 में जब से कोटा के सीएड़ी विभाग के संपूर्ण क्षेत्राधिकार को जयपुर में बैठने वाले कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव के अपने हाथों में केंद्रीत किए जाने के बाद से ही विभागीय अधिकारी हर साल कोई न कोई बहाना गढ़कर खरीफ़ के कृषि सत्र में दाईं और बांई मुख्य नहरों के किसानों को सिंचाई के पानी से वंचित रखे हुए हैं जबकि खरीफ सत्र में कोटा, बूंदी और बारां जिले में किसान बड़े पैमाने पर धान की फसलों की बुवाई करते हैं जिसके लिए उन्हें पानी की आवश्यकता होती है लेकिन चूंकि खरीफ कृषि सत्र के दौरान दोनों ही मुख्य नहरों और उनकी वितरिकोंओं में जल वितरण बंद कर दिए जाने के कारण नहरी क्षेत्र के किसानों को पानी नहीं मिल पाता, इसके नतीजन किसानों को ट्यूबवेल जैसे अन्य निजी सिंचाई के संसाधनों से बिजली फ़ूंककर धान की फसल के लिए पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है जबकि इसी दौरान जब कभी भी बरसात होती है तो कोटा बैराज के गेट खोल कर लाखों क्यूसेक पानी व्यर्थ चंबल नदी में बहा दिया जाता है जिसका उपयोग दोनों मुख्य नहरों में छोड़कर धान की फसलों के लिए किया जा सकता है लेकिन प्रशासनिक अकर्मण्यता के चलते सिंचाई व्यवस्था लगभग चौपट है।
कोटा में काड़ा की हर बार होने वाली बैठकों में यह मसला प्रमुखता से उठसा जाता रहा है। जनप्रतिनिधि यह लगातार मांग करते रहे हैं कि खरीफ सत्र में किसानों को कोटा बैराज की दोनों मुख्य नहरों से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाया जाए लेकिन आमतौर पर इन बैठकों में विभागीय मंत्री शामिल नहीं होते और न ही जयपुर से चलकर काडा के सदस्य उच्च अधिकारी बैठक में भाग लेने के लिए कोटा आते हैं जिसके कारण कोटा संभाग के किसानों को खरीफ के सत्र में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाने का मुद्धा स्थानीय स्तर पर ही सिमट कर रह जाता है जिसकी राज्य सरकार के स्तर पर कोई सुनवाई नहीं होती। किसान अपने हर्जे-खर्चे पर करोड़ों रुपए की बिजली फ़ूंक कर धान की बुवाई करते हैं जबकि चंबल नदी में सिंचाई के लिए अजस्र जल स्त्रोत उपलब्ध है।
कोटा की सांगोद विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भरत सिंह कुंदनपुर ने इस पर गहरी नाराजगी जताई है और उन्होंने कहा कि प्रदेश में चाहे सरकार किसी भी राजनीतिक दल की हो, उसके मंत्री कोटा में होने वाली काड़ा की महत्वपूर्ण बैठकों में भाग नहीं लेते और उनके भाग नहीं लेने के कारण अन्य वरिष्ठ सदस्य अधिकारी जिनमें कुछ विभागों के प्रमुख शासन सचिव भी शामिल है, वे भी इन बैठकों में भाग लेने के लिए नहीं आते जिसके कारण किसानों से जुड़ी समस्याओं का निराकरण हो ही नही पाता। श्री भरत सिंह ने कहा कि साठ के दशक में जब कोटा बैराज के बनने के बाद दाईं और बांई मुख्य नहरों से कोटा, बारां और बूंदी जिले में सिंचाई की व्यवस्था की गई थी, तब यह तय था कि इन तीनों जिलों में दोनों मुख्य नहरों और उससे जुड़ी वितरिकाओं के जरिए किसानों को सिंचाई के लिए दोनों कृषि सत्रों रबी और खरीफ में पानी उपलब्ध करवाया जाएगा। यह व्यवस्था वर्षों तक जारी भी नहीं लेकिन वर्ष 2012 में कृषि सिंचित क्षेत्र विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव ने कोटा के सीएड़ी के संपूर्ण क्षेत्राधिकार अपने हाथों में लेकर कोटा में होने वाली बैठकों में फैसले का अधिकार छीन लिया। इसके बाद से कोटा में होने वाली काड़ा की बैठकें मात्र औपचारिकता बनकर रह गई है। यह न केवल जनप्रतिनिधियों का बल्कि पूरे कोटा संभाग के किसानों का अपमान है और यह अपमान पिछले एक दशक से भी अधिक समय से लगातार किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि? संभाग के इन तीनों जिलों में दाईं और बाईं मुख्य नहर से जुड़े 2.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है जिसमें। दांई मुख्य नहर से कोटा जिले के लाडपुरा, दीगोद, पीपल्दा और बारां जिले के अंता, मांगरोल के 1.27 लाख हेक्टेयर में सिंचाई का प्रावधान है जबकि बूंदी जिले में बाईं मुख्य नहर से 1.02 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई होती है।
श्री भरत सिंह ने शनिवार को कोटा में पत्रकारों को बताया कि कोटा में काड़ा की 40 वीं बैठक में उन्होंने और पीपल्दा से विधायक रामनारायण मीणा ने इस मसले को गंभीरता के साथ उठाया था और उसमें यह भी कहा था कि जो अधिकारी सदस्य होने के बावजूद काड़ा की बैठकों में शामिल नहीं होते, उन्हें सदस्यता से तत्काल प्रभाव से मुक्त कर देना चाहिए। दोनों नहरों से सिंचित किए जाने वाले क्षेत्र के बारे में फैसला करने का अधिकार कोटा के संभागीय आयुक्त को सौंप दिया जाना था लेकिन इस मांग पर भी आज तक कोई विचार नहीं हो पाया है जबकि पूर्व में कोटा के संभागीय आयुक्त रह चुके दीपक नंदी ने इस संबंध में कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव को जनप्रतिनिधियों की इस मांग से अवगत करवाया था।
श्री भरत सिंह ने कहा कि चूंकि सीएडी के मुख्य अभियंता जयपुर में बैठते हैं और नहरों के रखरखाव में दिए जाने वाले कामों के ठेकों का सर्वाधिकार उनके ही पास सुरक्षित है इसलिए कोटा संभाग की नहरों के रखरखाव के बारे में जो भी फैसले होते हैं, उनमें व्यापक पैमाने पर अनियमितता बरती जाती है जिसके कारण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ रहा है इसलिए या तो जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता का मुख्यालय कोटा किया जाए अथवा निर्माण कार्य से संबंधित कार्य आवंटन का अधिकार स्थानीय अधिकारियों को सौंपा जाए ताकि कोटा के क्षेत्रीय विकास आयुक्त (सीएडी) इन निर्माण कार्यों की प्रभावी तरीके से निगरानी रख सकें जिससे कार्य की गुणवत्ता बनी रह सके।
श्री भरत सिंह ने कहा कि हाल ही में जब कोटा संभाग के कोटा, बूंदी और बारां जिले के किसान धान की रोपाई कर रहे थे और उन्हें उस समय पानी की आवश्यकता थी। तब सीएडी प्रशासन ने इन दोनों मुख्य नहरों में पानी की निकासी को तो रोक रखा था लेकिन इसके विपरीत जल ग्रहण क्षेत्र से पानी की भरपूर आवक होने के कारण इस उपयोगी पानी को कोटा बैराज के गेट खोलकर चंबल नदी की डाउनस्ट्रीम में व्यर्थ बहाया जा रहा था जबकि इसका उपयोग धान की फसल में हो सकता था। श्री भरत सिंह ने इस संबंध में सीएडी मंत्री सालेह मोहम्मद को एक बार फिर से पत्र भेजकर कोटा में काड़ा की बैठकों में उठे मसलों को सामने रखा है और यह कहा कि विभागीय मंत्री होने के नाते उन्हें कोटा का दौरा करना चाहिए और यहां की व्यवस्थाओं की खामियों का व्यक्तिगत रूप से अवलोकन करना चाहिए ताकि किसानों की पीड़ा को समझा जा सके। उन्होंने कहा कि यह बड़ा दुर्भाग्य है कि पिछले पांच सालों से राजस्थान के किसी भी सीएडी मंत्री ने कोटा में हुई काड़ा की या अन्य किसी विभागीय बैठक में भाग तक लेना उचित नहीं समझा और इसी का नतीजा है कि जयपुर में बैठे प्रशासनिक अधिकारी किसानों की जरूरतों को नजरअंदाज करके अपनी मनमानी कर रहे हैं जिसके कारण किसानों पर सिंचाई के लिए बिजली का अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ रहा है और भूमिगत जल की उपलब्धता पर भी इसका प्रतिकूल असर हो रहा है। उनका कहना था कि कोटा में सीएडी के संभागीय आयुक्त अपने स्तर पर फैसले लेने में सक्षम है तो क्षेत्रीय किसानों की जरूरतों के अनुसार फैसला करने का अधिकार जयपुर में बैठे किसी अधिकारी को सौंपे जाने की जगह संभागीय आयुक्त को दिया जाना चाहिए ताकि वे प्रभावी तरीके से फैसला कर लागू कर सकें।