मोहब्बत के साथ चलेंगे तो यह देश बचेगा नहीं तो …

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-समाजवादी चिन्तक डा. सुनीलम से संवाद

-संजय चावला-
पिछले दिनों कोटा के कृषि सभागार में आयोजित शांति सद्भाव सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में मध्य प्रदेश से पधारे समाजवादी चिन्तक, किसान संघर्ष समिति के संस्थापक अध्यक्ष डा. सुनीलम से संवाद करने का अवसर मिला. प्रस्तुत है उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश…

प्रश्नः पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के एक प्रायमरी स्कूल की शिक्षिका द्वारा एक मुस्लिम छात्र को हिन्दू बच्चों के माध्यम से भरी कक्षा में पिटवाने की घटना को आप किस रूप में देखते हैं?

उत्तरः 1925 में स्थापित आरएसएस का लक्ष्य देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना था. वे अंग्रेजों से बड़ा दुश्मन देश में रहने वाले मुस्लिम और क्रिश्चयन को मानते थे. बिलकुल वैसे ही जैसे हिटलर की अपने देश में नीति थी. तो उन्होंने तब से ज़हर बोने का काम किया. इसी का असर है कि आज उस टीचर को बच्चे बच्चे नहीं दिखते बल्कि हिन्दू और मुसलमान दिखते हैं. इसी प्रकार एक आरपीएफ जवान चलती ट्रेन में गोली चला कर चुन चुन के मुस्लिम यात्रियों को टारगेट कर रहा है और फिर योगी और मोदी के नारे लगा रहा है तो हम समझ सकते हैं कि यह मोटिवेशन उसे कहाँ से मिल रहा है. इसके बीज कहाँ बोये गए हैं. तो यह जो नफरत की राजनीति है इससे हमारा देश बदनाम हो रहा है. जब नफरत को आप राजनीति का हिस्सा बना लेते हैं तो मणिपुर जैसी घटना होती है. महिलाओं को नंगा करके घुमाया जाता है. सिर्फ इसलिए कि वे एक विशेष समुदाय की महिला हैं. अल्पसंख्यकों को टारगेट करने का जो प्रयोग वहां चल रहा है उसे ही पूरे देश में लागू करने की योजना है. इसीलिए मैं यहाँ शांति सद्भाव सम्मेलन में आया ताकि इस पर बात हो सके. यदि हम कुछ नहीं करेंगे तो यह देश नहीं बचेगा. आज़ादी के समय तो मुट्ठी भर मुसलमान थे तब आप कुछ नहीं कर पाये. अब तो तीस करोड़ मुसलमान हैं. उनका आप क्या करेंगे? आप केवल नूंह जैसी घटना ही कर सकते हैं. आप केवल कत्लेआम कर सकते हैं. गुजरात जैसी घटना कर सकते हैं. आप उन पर बुलडोज़र चलवा सकते हैं. फिर इस पर रोक लगाने वाले पंजाब हाई कोर्ट के जज का आपको तबादला करना पड़ता है. तो इस तरह नफरत की भावना लोगों के दिलो दिमाग में गहरी पैठ जमा चुकी है. आरएसएस के मुखपत्र में लेख छपा है जिसमे फिल्म अभिनेता आमिर खान को राष्ट्रद्रोही बताया गया है क्योंकि तुर्की के राष्ट्रध्यक्ष की पत्नी के साथ उसका फोटो आया है. उसने सत्यमेव जयते जैस सीरियल और लगान जैसी उत्कृष्ट फिल्म बनायीं वो तो देशद्रोही हो गया सिर्फ इसलिए कि वह मुसलमान के घर पैदा हुआ. एक कलाकार के रूप में आप उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हो. हम जब किसान आन्दोलन चला रहे थे तो इन्होने हमें भी देशद्रोही, आतंकवादी न जाने क्या क्या कहा.तो इनकी हिन्दू राष्ट्र की जो फिलोसॉफी है उसमें सवाल करना मना है. यदि आप देश और संविधान की बात करते हैं तो आप एंटी नेशनल या अर्बन नक्सल हो जाते हो. इसके विपरीत यदि आप हिन्दू राष्ट्र की बात करते हो तो आप देश भक्त है. और विडम्बना है कि यह बात वे लोग कर रहे हैं जिनका देश की आज़ादी के आन्दोलन में कोई योगदान नहीं था. जिन्होंने हमेशा अंग्रेजों का साथ दिया वे लोग देश को इतिहास बदलने का काम कर रहे हैं. अब तो देश वासियों को तय करना है कि वे नफरत फ़ैलाने वालों के साथ चलना चाहते हैं या महोब्बत की बात करने वालों के साथ हैं. मोहब्बत के साथ चलेंगे तो यह देश बचेगा नहीं तो टूटेगा.

प्रश्नः इधर देश में लागू की गयी नई शिक्षा नीति 2020 में तो बात की गई है कि इसके माध्यम से बच्चों में क्रिटिकल थिंकिंग, प्रश्न करने की स्पीरिट बढ़ाना चाहते हैं और आप कह रहे हैं कि इन्हें प्रश्न करने वाले ही पसंद नहीं है. इसमें आपको कोई विरोधाभास नहीं दिखता?

उत्तरः आपने अभी देखा कि अशोका यूनिवर्सिटी में एक प्रोफ़ेसर को अपनी नौकरी इसलिए गंवानी पड़ी क्योंकि उसने एक शोध लेख ऐसा लिख दिया था जो शासकों को माफिक नहीं था. ऐसी घटनाये लगभग हर संस्थान में हो रही हैं. आप स्वतंत्र अभिव्यक्ति को चेलेंज करते हैं तो आप संविधान को चेलेंज करते हैं, आप राष्ट्रीय ग्रन्थ को चेलेंज करते हैं. पर उनके पास सत्ता है, ईडी है, सीबीआई है. जो चाहें जब चाहें वैसा कर सकते हैं. इधर हमारी न्याय पालिका इतनी निरीह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद संजय मिश्रा को एक्सटेंशन दिया चला जा रहा है. अब सरकार की योजना एक नई एजेंसी बनाने की है जिसमे उसी मिश्रा को हेड बना दिया जायेगा. तब कोर्ट भी कुछ नहीं कर पायेगा.

प्रश्नः सरकार आईपीसी, आईईए तथा सीआरपीसी को कोलोनियल लेगेसी के नाम पर हटा कर नये ‘भारतीय’ कानून ला रही है. इसके पीछे उनकी क्या मंशा है?

उत्तरः इसको इस तरह से समझिये. जैसे यूएपीए का कानून है उसे और ज्यादा सख्ती से इस नये कानूनों में डाल दिया गया है. वास्तव में क्या है कि युएपीए बदनाम हो गया था वैसे ही जैसे कभी मीसा बदनाम हो गया था, टाडा बदनाम हो गया था. तो उन्हें हटाना पड़ा. तो युएपीए के कंटेंट को नए नियमों में डाल दिया गया है नए नाम के साथ. शराब पुरानी है बोतल नई.

प्रश्नः तीन कृषि कानून जब आये थे तो वे अंग्रेजी में थे. उन्हें समझना, उनके पीछे के षड्यंत्र को भांपना इतना आसान नहीं था. कम पढ़े लिखे किसान इतनी जल्दी कैसे भांप गए? जबकि नयी शिक्षा नीति और नए कानूनों को भी उसी प्रकार शब्द जाल में ढाला गया है. हमारे बुद्धिजीवी भी सरकार की असली मंशा को इतनी जल्दी नहीं भांप सके है. ऐसा कैसे हुआ?

उत्तरः किसान को ज़मीन सबसे ज्यादा प्यारी है. जान से प्यारी है. उसे यह बात तुरंत समझ में आ गयी कि ये जो कोंट्रेक्ट फार्मिंग है उसके ज़रिये हमारी ज़मीन को कोर्पाेरेट के द्वारा कब्जाये जाने की योजना है. क्योंकि पूरी दुनियां का अनुभव उनके पास है. इसे ताकत पंजाब से मिली. पंजाब के जो किसान हैं वो दुनियां के चालीस देशों में खेती करते हैं. वहां पर यह सब हो चुका है. उन्हें मालूम था किस तरह से कंपनी आती है. वे जान गए कि अडानी अम्बानी अब इस सेक्टर में प्रवेश करेंगे. वे देख रहे थे कि अडानी के इतने सायिलोस बन गए हैं जिनमे असीमित भण्डारण किया जा सकता था. पहले किसानों ने वहां धरना दिया तीन महीने तक, आन्दोलन तो बाद में शुरू हुआ. फिर हम दिल्ली आये. सरकार का जो अहंकार था उसे हम तोड़ने में कामयाब हुए. हरियाणा सरकार ने कहा था कि कोई परिंदा भी बोर्डर पार नहीं कर पायेगा. इसे हमने चुनौती माना और परिणाम आपने देखा.

प्रश्नः आप शांति सद्भाव सम्मेलन में कोटा पधारे हैं. कोटा की जनता के नाम कोई सन्देश?

उत्तरः कोटा की संस्कृति समन्वय की संस्कृति है. गंगा जमुनी तहजीब की संस्कृति है. सहअस्तित्व की है. आज पूरा देश कोटा की ओर देखता है क्योंकि कोटा अब एज्युकेशन हब बन गया है.देश भर से छात्र छात्रा यहाँ आकर पढ़ते हैं. उनके माँ बाप सोचते हैं कि उनका बच्चा कोटा जायेगा तो उसका करियर बन जायेगा. अगर वास्तव में वे ऐसा चाहते हैं तो वे नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चों के दिमाग में साम्प्रदायिकता का ज़हर, धार्मिक कट्टरता का ज़हर प्रवेश करे. उन्हें यह यह सुनिश्चित करना होगा. अगर नूंह जैसी स्थिति कोटा में बन जाए तो कोई माँ बाप अपने बच्चे को कोटा भेजेगा क्या? सब लोग शांति चाहते हैं. अपने बच्चे का सुरक्षित जीवन चाहते हैं. तो कोटा वासियों को भी देखना होगा कि यह शहर शांति और सद्भावना का केंद्र बन करके रहे. तो साफ़ है कि आगामी चुनाव में कोटा वासी ऐसे प्रतिनिधियों को न चुने जो नफरत फैलाने का काम करते हैं. ये वो लोग हैं जो अपने बच्चों को तो पढने विदेश भेजते हैं और अपने कार्यकर्ताओं और उनके बच्चों को दंगाई बनाते है. ऐसे बच्चे तो अंततः जेल ही जायेंगे.तो कोटा वालों को ऐसे लोगों के हाथ मज़बूत करने होंगे जो शांति और सद्भाव की बात करते हैं. समाज में अमन चौन चाहते है.

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