इज़हारे अक़ीदत

-शकूर अनवर-
वैसे तो हर ज़ी रूह का फ़ना हो जाना यक़ीनी होता है मगर हमारे हर दिल अज़ीज़ हाज़ी अनवार अहमद साहब क़ाज़ी ए शहर कोटा का अचानक चले जाना हमारे लिए समाजी और मज़हबी तौर पर ऐसा नुक़सान है जिसकी तलाफ़ी ना मुमकिन नहीं तो मुश्किल ज़रूर होगी। क़ाज़ी अनवार अहमद साहब अपने अंदर एक ज़हीन और उसूल पसंद शख़्शियत रखते थे। उनके ख़ुलूस और सादगी की मिसाल मिलना मुश्किल है। उनकी ज़िन्दगी आपसी भाईचारे और क़ौमी यकज़हती को आगे बढ़ाने में ही गुज़री है। एक आवाज़ में हज़ारों की तादाद में लोगों का इकठ्ठा हो जाना क़ाज़ी अनवार अहमद साहब जैसी शख़्सियत का ही कमाल हो सकता है।
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
ये मेरी ख़ुश क़िस्मती है कि कई तकरीबात में उनके साथ शामिल होने का मौक़ा मिला और उनकी शफ़क़त हासिल रही।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मरहूम क़ाज़ी अनवार अहमद साहब की मग़फ़िरत फ़रमाए और लवाहेक़ीन को सब्र ए जमील अता करे।
आमीन
दुआगो
शकूर अनवर

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