दशहरा मेला आइये, नसीराबाद के कचौरा से लेकर गोभी के पकोड़े का लुत्फ उठाइये

जायके का मेला, कोटा का दशहरा मेला

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खान पान के स्टॉल के बाहर उमडी भीड। फोटो अखिलेश कुमार

-अखिलेश कुमार-

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अखिलेश कुमार

(फोटो जर्नलिस्ट)
कोटा। कोटा का दशहरा मेला अपने सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भारी भरकम भीड, दर्शनीय रावण दहन और लगभग एक माह तक चलने वाले रामलीला और अन्य कार्यक्रमों अथवा कवि सम्मेलन और मुशायरे के लिए तो विख्यात है लेकिन यहां मिलने वाले पकवान भी लोगों को अपनी ओर बरबस खेंच लेते हैं।

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दशहरा मेला में कडाही में तले जाते कुरकुरे नसीराबाद के कचौरा। फोटो अखिलेश कुमार

कई लोग तो दशहरा मेला के अवसर पर विशेष तौर पर शहर के बाहर से आई दुकानों के पकवानों के लिए ही यहां आते हैं। इनमें नसीराबाद का कचौरा और हाथी जाम भी शामिल हैं। एक समय दशहरा मेला के अवसर पर ही सोफ्टी खाने को मिलती थी। नाम के अनुरुप मंुह में सहजता से घुल जाने वाली सोफ्टी के लोग विशेषकर बच्चे दीवाने थे। इसके लिए साल भर इंतजार करते थे। बच्चों के लिए तो इसके कोन में आइसक्रीम को भरे जाने की प्रक्रिया ही कौतुहल जगाती थी। इनके अलावा गोभी के पकोडे बारां के नाम से बिकने आते थे। ये भी एक समय दशहरा मेला में ही खाने को मिलते थे। इनकी इतनी लोकप्रियता बढी की बाद में कोटा में ही कई जगह दुकानों पर मिलने लगे और फिर शादी विवाह तक में गोभी के पकोडे परोसे जाने लगे।

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दशहरा मेला में गोभी के पकोडों को आधा पकाकर रखते हैं फिर जरुरत के अनुरुप उनको दुबारा कुरकुरा होने तक तला जाता है। फोटो अखिलेश कुमार

कोटा की कई मशहूर खान पान दुकानों ने भी दशहरा मेले के अवसर पर यहां अपने आउट लेट खोले। अब हाल यह है कि जिस क्षेत्र में इनकी दुकानें हैं वहां पीक ऑवर में तो इतनी भीड उमडती है कि सामान्य जन को अपना नंबर आने के लिए इंतजार करना पडता है। अभी भी मेले में कई जगह हाथी जाम मिलता है लेकिन अब इसके प्रति वैसी दीवानगी नहीं दिखती जैसी 80 के दशक में देखने को मिलती थी। सोफ्टी के भी दर्जनों स्टॉल खुलने लगे। इन पर भीड उमडती है लेकिन वैसा स्वाद नहीं रहा जैसा 70 के दशक में था। लेकिन अब पन्ना लाल की पकौडी, नसीराबाद का कचौरा, पिज्जा और बर्गर, चाइनीज तथा कोटा के प्रमुख ढाबे और मिष्ठान भंडार के आउट लेट आकर्षण का केन्द्र हैं। प्रकाश की कुल्फी और शेरे पंजाब की आइसक्रीम के दीवानों की भी कमी नहीं है। छोले भटूरे के अलावा अब अमृतसरी नान भी मिलने लगी है और लोग स्वाद लेकर खाते हैं।

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दशहरा मेला में गोभी के पकोडों को तलता कारीगर। फोटो अखिलेश कुमार

पहले यह माना जाता था कि मेले में खान पान के सामान की गुणवत्ता चलताऊ रहती है और तथा कथित भद्र लोग इनसे परहेज करते थे।लेकिन जो शहर के प्रमुख रेस्तरां, होटल या खान पान के स्टाल वाले हैं वे अपनी गुणवत्ता को मेले में भी बनाए रखते हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य के लिए सावचेत रहने वालों के लिए मिनरल वाटर में निर्मित खाद्य सामग्री परोसी जाती है। इसमें गोलगप्पे भी शामिल हैं। एक दुकानदार तो मंूगफली के तेल में सामग्री के तले जाने के लिए सामने ही पीपा से तेल डालता था। यही वजह है कि लोग अब पहले की अपेक्षा मेले में खान पान का जमकर लुत्फ उठा रहे हैं।

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