तुम ‘बेल’ नहीं भरा-पूरा ‘पेड़’ बनोगी

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-सुनीता करोथवाल-

sunita karothwal
सुनीता करोथवाल लेखिका एवं कवयित्री

मां चोटी गूंथते हुए बीच की मांग निकाल कर कहती
बड़ी दूर सासरा मिलेगा लाडो का
लंबी मांग निकलती है।

दोनों हथेलियाँ मिला कहती
कि देखो हथेली में चाँद बन गया
चाँद सा बटेऊ मिलेगा।

रची मेहंदी पर कहती
मेहँदी फीकी रची है
सास की प्यारी रहेगी पति की नहीं।

जब कात्तक स्नान को जाती तो लड़कियाँ
सुंदर पति के लिए गहरे गोते मारती थी
उस वक्त चलन में ये बात थी
जो जोहड़ के कंठारे लौटेंगी
सुंदर पति उनके भाग में नहीं होगा।

जब भी देर से उठती
एक ही ताना मारती थी
सूरज उगने के बाद उठोगी तो घरबार अच्छा नहीं मिलेगा
याद रखना।

बचपन तो सारा घर घर खेल कर बिताया हमने
या फिर ये ताना सुनकर
कि घर के काम सीख ले
आगले घर जाना है
कोई रोएगा माथे हाथ रखकर।

हम घरेलू नर्सरी के लिए तैयार की गई पौध हैं
पढ़ने-लिखने और सपने जीने के अधिकार
तब उन औरतों को नहीं थे।

हाँ मैं अपनी बेटियों से नहीं कहती
चूल्हा जला
जल्दी उठ
रोटी तुम ही बनाओगे
तुम हमारी तरह सिर्फ गृहिणी नहीं बनोगी
तुम बेल नहीं
भरा-पूरा पेड़ बनोगी।

-सुनीता करोथवाल

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