
दहलीज
-प्रकाश केवडे-

दहलीज ने क्या नहीं देखा
किसी का मासूम बचपन
और किसी का बुढ़ापा देखा
किसी की राह ताकते देखा।
शर्मों लिहाज के परदे में
हसरतों को मरते देखा
सिसकियां को खौफ से
कभी दफ़न होते देखा।
कभी खुशी का समां देखा
कभी ग़म का साया देखा
भीतर रहने वाले लोगों की
तबियत का हर रंग देखा।
प्रकाश केवडे
Advertisement