एक दिन आयेगी रोशनी सप्त घोड़े पर बैठकर हमारे भी आंगन में….!!!

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– विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

धुआं ज्यादा आंच कम
पतीली बड़ी अनाज कम
इच्छाएं अपार
और सीझेगी चूल्हे पर भाजी
पी कर पानी भरे भाजी से पेट
काम पर जाना है
इस तरह काम पर चलना है कि
हाड़तोड़ काम में जुत जाना है
काम का कोई अंत नहीं
पर भाग में लिखा रहता
यहीं खाली थाली
इच्छा की पतीली को कैसे भरें
मन को कैसे सम्भाले
जब जीवन के हर कदम पर
युद्ध हो तो
जिन्दगी से भी क्या शिकायत करें
और इसी मनोभूमि पर बैठकर
आंच पर जीवन को सीझते रहे
अंततः जिन्दगी ही युद्ध हो जाती
यहां इच्छाएं दफन हो जाती….
और जिन्दगी खुले आसमान के घर में
आंच की उम्मीद पर सीझती रहती
आग और पानी के साथ अन्न के रिश्ते में
स्त्री इतिहास के पन्नों पर
समय असमय दर्ज करा जाती कथा …
होने के संघर्ष का
इस तरह एक सभ्यता
आंच के इर्द – गिर्द पलती रही
जिसमें मां अभावों के बीच
स्वाद का झौंक लगा जाती
और हम सब सपने देखने में
लग जाते कि इस धुंआ के आगे
एक रास्ता होगा …
एक दिन आयेगी रोशनी
सप्त घोड़े पर बैठकर
हमारे भी आंगन में….!!!

– विवेक कुमार मिश्र

सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002

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