एक शय* खोयेंगे तब दूसरी पाना होगा। रोशनी के लिये अब घर को जलाना होगा।।

shakoor anwar 129
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

एक शय* खोयेंगे तब दूसरी पाना होगा।
रोशनी के लिये अब घर को जलाना होगा।।
*
आज तन्हा हूँ मगर ये मुझे उम्मीद तो है।
कुछ ही दिन बाद मेरे साथ ज़माना होगा।।
*
क़द्र* बढ़ जाती है जितनी भी पुरानी हो शराब।
ज़ौक़* निखरेगा मेरा जितना पुराना होगा।।
*
फिर तो हो जाओगे सुक़रात* की मानिंद अमर।
ज़ह्र थोड़ा सा फ़क़त* तुमको भी खाना होगा।।
*
कौन देता है यहाँ साथ किसी का “अनवर”।
अपने हिस्से के दुखों को तो उठाना होगा।।
*

शय*चीज़ वस्तु
क़द्र* इज़्ज़त मूल्य
ज़ौक़*शौक़ आनंद
सुकरात*एक दार्शनिक जिसे ज़ह्र दिया गया था
फ़क़त*केवल

शकूर अनवर
9460851271

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