रात तलक रहा है, तमस का सघन पहरा । फिर भी आज;फिर से,नई भोर हो रही है ।।

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फोटो अखिलेश कुमार

-डॉ.रमेश चंद मीणा-

ramesh chand meena
डॉ. रमेश चंद मीणा

फ़िरका फिरस्ती के इस दौर में,
जहर घोला जा रहा है;विचारों में?
मन मैले हो रहे है; इस शोर में,
पीढ़िया डूब रही है;गलत जोर में,
नस्लों ने सीचा है; जिसे आँचल में,
निरपेक्षता बंजर हो रही – वैमनस्य में?
अच्छाईयों की बुराइयों से ,मुठभेड़ हो रही है।
देखो रे देखो ! ये कैसी मुँहजोर हो रही हैं।
रात तलक रहा है, तमस का सघन पहरा ।
फिर भी आज;फिर से,नई भोर हो रही है ।
अंधेरे को बुलावा है;इस उजाले में-
सद्भाव का वहम है;बंधुता सहमे,
दिखता क्यो वैर है?यहाँ दिलो में,
दूरियां क्यो खैर है?हम प्यालों में,
सुकूँ कहाँ खोया,जो था-अमन राग में,
रमेश आबाद रहे संविधान-चमन बाग में ।।

डॉ.रमेश चंद मीणा

सहायक आचार्य
चित्रकला

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